अफसोस की बात है कि कोवैक्सीन की निर्माता कंपनी भारत बायोटेक को जो आवश्यक औपचारिकताएं काफी पहले पूरी कर लेनी चाहिए थीं, अब तक पूरी नहीं की गईं।
डब्ल्यूएचओ ने हाल ही ईयूएल का हवाला देकर अंतरराष्ट्रीय यात्रा के बारे में जानकारी साझा की, तो भारत बायोटेक के साथ-साथ भारत सरकार का ध्यान भी इस तरफ गया। भारत बायोटेक का कहना है कि डब्ल्यूएचओ की ईयूएल में शामिल होने के लिए वह काफी पहले आवेदन कर चुकी है। डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन के बारे में और जानकारी मांगी थी, इसलिए प्रक्रिया अटकी हुई है। बेशक वैक्सीन के उत्पादन को लेकर कंपनी पर अतिरिक्त दबाव है, लेकिन वह मांगी गई जानकारी समय पर देकर ईयूएल में अपनी वैक्सीन की जगह सुनिश्चित कर सकती थी।
बहरहाल, देर आयद-दुरुस्त आयद। भारत सरकार अब भारत बायोटेक के साथ मिलकर इस प्रक्रिया को तेज करने में जुट गई है। विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला सोमवार को भारत बायोटेक के अफसरों के साथ बैठक करने वाले हैं। भारत सरकार की चिंता यह है कि कोरोना के खिलाफ ज्यादा प्रभावी होने के बावजूद देशी कोवैक्सीन को अब तक डब्ल्यूएचओ की ईयूएल में जगह क्यों नहीं मिली। भारत सरकार की कोशिश है कि कोवैक्सीन का नाम जल्द ईयूएल में सुनिश्चित हो जाए, ताकि भारतीय नागरिकों को ‘नॉन-वैक्सीनेटेड’ बताकर अंतरराष्ट्रीय यात्रा से वंचित नहीं किया जाए। ईयूएल में शामिल होने के बाद दूसरे देशों में कोवैक्सीन के उत्पादन का रास्ता भी खुल सकता है। वैक्सीन पर डब्ल्यूएचओ की प्री-सबमिशन बैठक इसी महीने या जून में हो सकती है। इसमें कंपनी के डोजियर की समीक्षा के बाद वैक्सीन को ईयूएल में शामिल करने पर फैसला होगा। जाहिर है, भारत बायोटेक को काफी जांच-परखकर डोजियर तैयार करना होगा। इसमें किसी भी तरह की कमी-बेशी से कोवैक्सीन को कुछ और समय के लिए डब्ल्यूएचओ की ईयूएल से दूर रखने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए।