चीन और पाकिस्तान के लिए वे पल खुशी के थे, जब उनके दोस्त तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था और भारत रणनीतिक रूप से हाशिए पर चला गया था। हालांकि, इसकी वजह युद्धग्रस्त देश में शासन करने आई नागरिक सेना से संपर्क की कमी थी और भारत को अमरीका का सहयोगी होने की कीमत भी चुकानी पड़ी। पर बीजिंग और इस्लामाबाद में वह खुशी अल्पकालिक ही रही। अफगानिस्तान में अस्थिरता, अराजकता के जो हालात उत्पन्न हो रहे हैं और जिस तरह वहां किसी भी समय गृहयुद्ध छिडऩे के जबरदस्त आसार नजर आ रहे हैं, उनसे यही साबित होता है।
भारत ने जोरदार दस्तक देते हुए नहीं, बल्कि शांतिपूर्ण तरीके से वापसी की है, क्योंकि रणनीतिक लक्ष्य अनावश्यक और अर्थहीन शोर किए बिना ही बेहतर तरीके से हासिल किए जाते हैं। भारत अपनी सामरिक स्थिति को नए सिरे से मजबूत कर रहा है। भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ टू प्लस टू मंत्रिस्तरीय वार्ता में अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत किया है। इस वार्ता ने चीन और पाकिस्तान को बहुत ज्यादा विचलित किया है। दोनों देशों के बीच सभी क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग, विशेषकर आतंकवाद के सभी रूपों से लडऩे की प्रतिबद्धता ने क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर किया है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त बयान में पाकिस्तान व इसके राज्य-प्रायोजित आतंकवाद के सभी संदर्भ थे – ‘ऑस्ट्रेलिया, भारत में 26/11 मुंबई, पठानकोट व पुलवामा हमलों समेत आतंकी हमलों की फिर से निंदा करता है।’ संयुक्त बयान में यह भी कहा गया कि दोनों देश ‘कट्टरपंथ और हिंसक उग्रवाद का मुकाबला करने, सूचनाएं साझा करने और क्षमता निर्माण सहित आतंकरोधी क्षेत्र में सहयोग जारी रखने’ पर सहमत हुए हैं। संयुक्त बयान का संदर्भ स्पष्ट था – पाकिस्तान और तालिबान शासित अफगानिस्तान। इसने सभी देशों को तत्काल, निरन्तर सत्यापन योग्य और अपरिवर्तनीय कार्रवाई करने की जरूरत को रेखांकित किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके नियंत्रण वाली धरती का इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए नहीं किया जाए।
इससे पाकिस्तान में हडक़ंप मच गया है। पाकिस्तान अब यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि अफगानिस्तान में जो भी कुछ गलत हुआ, हो रहा है या होगा, उसके लिए वह जिम्मेदार नहीं। अफगानिस्तान में मानवता के हालात पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा – अफगानिस्तान में स्थायी विकास सुनिश्चित करने और मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए वहां राजनीतिक स्थिरता और शांति जरूरी है।
यह बयान तालिबान को लेकर भयावह व्याख्या है जो पुराने तौर-तरीकों पर वापस लौट रहा है। इसमें घातक संदेश भी है कि 9/11 जैसी घटनाओं को दोहराया जा सकता है। वैसे तो यह अमरीका के बारे में है लेकिन भारत को भी चेतावनी संकेतों को स्वीकार करना चाहिए। दूसरी ओर, चीन का मानना है कि भारत क्वाड के तीन अन्य देशों- अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। चीन वाकिफ है कि क्वाड दुनिया में उभरता हुआ गठबंधन है। और अब, तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद चीन की विस्तारवादी नीतियों के बारे में क्वाड ने ज्यादा चिंता साझा की है।
‘ग्लोबल टाइम्स’ में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ लिन मिनवांग ने चिंता जताते हुए लिखा कि ऑस्ट्रेलिया अब ‘चीनी धमकी के सिद्धांत को पूरी ताकत से उजागर करने में जुटा है।’ मिनवांग ने लिखा कि ऑस्ट्रेलिया व भारत की निकटता से क्वाड में भारत के और मजबूत होकर उभरने और चीन को टक्कर देने की स्थिति पैदा हो सकती है।