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आधी आबादी : कोरोना काल में महिलाओं पर बढ़ गया बोझ

न महिलाओं के श्रम को सम्मान मिलता और न आराम…महामारी के दौरान वर्क फ्रॉम होम और स्टडी फ्रॉम होम ने तो महिलाओं पर ज्यादा दबाव डाल दिया है। इससे महिलाओं का काम बढ़ गया है।

Jun 14, 2021 / 08:37 am

विकास गुप्ता

आधी आबादी : कोरोना काल में महिलाओं पर बढ़ गया बोझ

सीमा हिंगोनिया, (वरिष्ठ पुलिस अधिकारी)

कोरोना काल ने परिवार के सदस्यों को एक छत के नीचे रहने का अवसर दिया है, वहीं महिलाओं का जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है। घरेलू महिला के काम का न तो समय निश्चित है, न ही उसके कार्य को श्रम की श्रेणी में स्वीकार किया गया है। अब तो घर-परिवार की हालत यह है कि उसके किए गए कार्य के प्रति किसी के मन में सम्मान की भावना भी नजर नहीं आती। हमारा सामाजिक परिवेश व मानसिकता ऐसी है कि एक महिला, चाहे वह घरेलू महिला हो या कामकाजी, उसे घर का काम तो करना ही पड़ता है। कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम और स्टडी फ्रॉम होम ने तो महिलाओं पर ज्यादा दबाव डाल दिया है। इससे महिलाओं का काम बढ़ गया है, जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक समस्याएं भी बढ़ गई हैं। मुश्किल यह है कि महिलाओं में भी अपने आपको सुपर वुमन के रूप में स्थापित करने की भावना पैदा हो गई है। इसलिए वे सारी जिम्मेदारियां अपने ऊपर ओढ़ कर अपनी परेशानियां बढ़ा रही हैं।

हमारे सामाजिक ताने-बाने के चलते समाज एक महिला से हर तरह के काम की उम्मीद करता है और यही समाज एक पुरुष को घर में सहयोग करते हुए नहीं देख सकता। घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं भी घर में पुरुष को सहयोग करते हुए देखना पसंद नहीं करती हैं। ऐसे में कोरोना काल में महिलाएं सुबह से शाम तक घरेलू कार्य में व्यस्त नजर आती हैं। कामकाजी महिलाएं घरेलू कार्य के साथ-साथ वर्क फ्रॉम होम में भी व्यस्त हैं, तो साथ में बच्चों की स्टडी फ्रॉम होम की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है। इस दौरान घरेलू हिंसा, अनावश्यक यौन संबंध, अनावश्यक गर्भपात जैसी समस्याओं की वजह से उनकी मुश्किल बढ़ गई है। ऐसे में महिलाओं को इस महामारी में खुश रखने, उन्हें आराम देने और उनके श्रम को उचित सम्मान देने की जिम्मेदारी क्या घर के हर सदस्य की नहीं है? क्या उनके कार्य में सहयोग देने की जिम्मेदारी घर के प्रत्येक सदस्य की नहीं है? पुरुषों और बड़े-बुजुर्गों को चाहिए कि महिलाओं को तनाव, अवसाद, घरेलू हिंसा, घरेलू यौन शोषण जैसी गंभीर समस्याओं से निजात दिलाने का प्रयास करें। उनकी बात सुनें। उनको भी आराम दिया जाए।

कोरोना से पूर्व बच्चों के स्कूल जाने और घर के पुरुष सदस्यों के अपने-अपने कार्य पर जाने के बाद कुछ समय तो महिलाएं स्वतंत्रता पूर्वक बिताती थीं। इसी दौरान वे अपने मानसिक तनाव को कम करने के साथ-साथ शारीरिक थकान को भी कम कर लेती थीं। वे आस-पड़ोस, दोस्तों के साथ या कार्यस्थल पर गपशप और विचार-विमर्श से अपने आपको मानसिक और शारीरिक रूप से संतुलित रख पाती थीं। आजकल घरों में बंद होने से उनको यह अवसर नहीं मिलता। यह सब कोरोना काल ने उनसे छीन लिया है।

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