दो कदम: मंशा या जुमला

संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष अधिवेशन में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की मुलाकात संभव है, जिससे नई सरकार के साथ आपसी भरोसा बनाने में मदद मिल सकती है।

<p>imran khan, pm narendra modi</p>
– शोभना जैन, वरिष्ठ पत्रकार
पाकिस्तान के गत 25 जुलाई को हुए आम चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जीत दर्ज करने वाले क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान ने पूरे जोश के आलम में अपने समर्थकों को ‘नए पाकिस्तान’ का सपना दिखाया। उन्होंने अजगर की तरह मुंह बाए खड़े ज्वलंत घरेलू मसलों को हल करने का ‘हसीन ख्वाब’ दिखाया और ‘कश्मीर’ का भावनात्मक कार्ड भी उछाला, लेकिन अपने आस-पड़ोस का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि पाकिस्तान पड़ोसी भारत के साथ संबंधों को सुधारने के लिए तैयार है और उनकी सरकार चाहती है कि दोनों पक्षों के नेता बातचीत के जरिए कश्मीर के ‘मुख्य मुद्दे’ समेत सभी विवादों को सुलझाएं। इमरान खान ने जोर देकर कहा, ‘अगर वह हमारी तरफ एक कदम उठाते हैं, तो हम दो कदम उठाएंगे लेकिन हमें कम से कम एक शुरुआत की जरूरत है।’
तो फिर वही सवाल उठता है कि गत सत्तर वर्षों मे दोनों देशों के बीच युद्ध हुए, समझौते हुए, बैक चैनल डिप्लोमेसी के जरिए संबंध पटरी पर लाने की कोशिशें हुईं, जटिल मुद्दों के हल के लिए समग्र वार्ताओं के दौर हुए, भारत ने एक बार नहीं बल्कि कई बार कदम बढ़ाए, लेकिन पाकिस्तान दो कदम न सही, एक ही कदम अगर भरोसे से उठा लेता तो भारत-पाकिस्तान संबंधों की इबारत कुछ और ही होती। अपेक्षा के विपरीत हुआ यह कि पाकिस्तान ने बीते दशकों में सीमापार आतंकी गतिविधियों को हवा दी और भारत आज तक पाकिस्तान के सही दिशा में ‘दो कदमों’ का इंतजार ही कर रहा है।
दरअसल यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इमरान खान द्वारा संबंध सामान्य बनाने की जिम्मेदारी भारत पर डाल देना निश्चय ही अंतरराष्ट्रीय जगत के दिखावे के लिए है। आखिर पाकिस्तान को भारत से किस तरह के ‘पहले कदम’ की अपेक्षा है? यह बयान क्या महज जुमलेबाजी है? नई सरकार के गठन के फौरन बाद भी पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इमरान खान को लिखे बधाई पत्र को लेकर फिर वही पुरानी पैंतरेबाजी की। पत्र में लिखा गया कि भारत पड़ोसी के साथ अच्छे संबंधों का पक्षधर है और दोनों देशों के लोगों के फायदे के लिए सृजनात्मक नजरिया अपनाया जाना चाहिए, लेकिन पाक विदेश मंत्री ने कह दिया कि भारत ने इस पत्र में बातचीत की पेशकश की है। भारत की अपत्ति के बाद आखिरकार पाकिस्तान ने स्पष्ट किया कि बातचीत के बारे में भारत की तरफ से कुछ नहीं कहा गया है।
बहरहाल इमरान खान मजबूत बहुमत के साथ सत्ता में नहीं आए हैं और उनकी सरकार का भविष्य पाकिस्तानी सेना और पाक गुप्तचर एजेंसी आइएसआइ की बैसाखियों के भरोसे टिका है। पिछले सबक यही कहते हैं कि ऐसे हालात में पाकिस्तानी सेना भारत विरोधी एजेंडा और सरकार के जरिए आतंकी गतिविधियों को प्रश्रय जारी रखेगी ताकि भारत को संबंध सामान्य बनाने की पहल के जरिए कोई राजनयिक सफलता न मिल पाए।
इन आशंकाओं के बीच पाकिस्तान की राजनीति में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है। इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले सप्ताह भारत और पाकिस्तान के बीच पहली आधिकारिक द्विपक्षीय बातचीत सिंधु जल समझौते को लेकर हुई। इसी महीने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष अधिवेशन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी से मुलाकात की उम्मीद है, जिससे नई सरकार के साथ आपसी भरोसा बनाने में मदद मिल सकती है।
एक वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार पाकिस्तान की अभी तक की नकारात्मक हरकतों के बावजूद सच यही है कि डिप्लोमेसी असंभव को संभव बनाने की कला है। ऐसे में पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के गठन के बाद दोनों देशों के बीच एक नई शुरुआत और अच्छे संबंधों की उम्मीद की ही जानी चाहिए। दूसरी ओर पाकिस्तानी मामलों के एक अन्य जानकार एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक का मानना है कि जिस तरह इमरान खान सरकार के पाक सेना की बैसाखियों पर चलने की आशंका जताई जा रही है, उससे द्विपक्षीय संबंधों के और अधिक तनावपूर्ण होने का गहरा अंदेशा है।
संबंधों को पटरी पर लाने को लेकर इमरान खान अगर वाकई नेकनीयत हैं तो सबसे पहले उन्हें सीमापार से आतंकी गतिविधियों को रोकना होगा, हाफिज सईद जैसे जेहादी गुटों पर लगाम लगानी होगी, लेकिन सवाल यह है कि इमरान खान के अतिवादी धार्मिक गुटों से संबंधों के चलते क्या ऐसा हो पाएगा। भारत, पाकिस्तान से बार-बार कहता रहा है कि तोपों की गडग़ड़ाहट और बंदूकों की गोलियों के बीच वार्ता कतई संभव नहीं है।
पाकिस्तान के साथ फिलहाल समग्र वार्ता के कोई आसार नजर नहीं आते, क्योंकि भारत भी अब आम चुनाव के मोड में आ चुका है। ऐसे में समग्र वार्ता फिलहाल भले ही न हो, लेकिन अगर पाकिस्तान सीमापार से आतंकी और जेहादी गतिविधियों पर अंकुश लगाए, संघर्ष विराम का सम्मान करते हुए आतंकवाद को प्रश्रय देना और कश्मीर राग अलापना बंद करे और हाफिज सईद जैसे आतंकी के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, तो दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्तों के लिए माहौल भी बनेगा, विचाराधीन मुद्दों पर बातचीत और व्यापार वार्ताएं भी संभव हो सकेंगी और दोनों देशों के बीच निश्चित ही फासले भी कम होंगे।
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