ट्रंप बरी तो हुए, लेकिन राजनीतिक परिवेश में गहरा असर छोड़ेगा महाभियोग

– महाभियोग की प्रक्रिया ने ही भारत में साम्राज्यवादी प्रशासन में सुधार की आवश्यकता के बारे में रचनात्मक बहस को जगह दी। 

<p>ट्रंप बरी तो हुए, लेकिन राजनीतिक परिवेश में गहरा असर छोड़ेगा महाभियोग</p>

लॉरा बिअर्स

अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भले ही महाभियोग से बरी हो गए हों, पर महाभियोग के दौरान पेश किए गए सबूत आधुनिक राजनीतिक परिवेश में गहरे प्रभाव की वजह बन सकते हैं। जैसे बंगाल के प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के भारत से इंग्लैंड लौटने पर भ्रष्टाचार में संलिप्तता को लेकर उनके खिलाफ हुई महाभियोग की कार्यवाही ने राजनीतिक परिवेश को प्रभावित किया था। दरअसल, ट्रंप के वक ीलों ने दलील दी थी कि राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप का कार्यकाल खत्म हो गया है, ऐसे में महाभियोग की कार्यवाही असंवैधानिक है। लेकिन मुख्य अभियोजक जेमी रास्किन ने वारेन हेस्टिंग्स मामले का हवाला दिया कि ब्रिटिश शासन में पद का दुरुपयोग करने वालों को महाभियोग के दायरे में लाया जाता था।

रास्किन ने देश के १८वें राष्ट्रपति रहे युलीसेस ग्रांट के रक्षामंत्री विलियम बेल्कनैप के महाभियोग का भी उदाहरण दिया, जिन्हें 1876 में भ्रष्टाचार के आरोप से बरी कर दिया गया था। कैबिनेट से इस्तीफा देने के एक दिन बाद एक नागरिक के रूप में सीनेट में उनके खिलाफ महाभियोग लाया गया था। रास्किन ने यह भी कहा कि हेस्टिंग्स ईस्ट इंडिया कंपनी की 35 वर्ष तक सेवा करने के बाद 1785 में इस्तीफा देकर इंग्लैंड आ गए थे। दो साल बाद उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही हुई। यह कार्यवाही 1787 में तब हुई जब फिलाडेल्फिया में अमरीका का संवैधानिक सम्मेलन चल रहा था। हेस्टिंग्स के खिलाफ प्रख्यात सांसद एडमंड बर्क ने आरोप पेश किए थे। बर्क का मानना था कि ईस्ट इंडिया कंपनी के भ्रष्ट प्रशासन ने भारतीयों को ही कराहने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि ब्रिटेन में ब्रितानियों की आजादी के अस्तित्व के लिए भी खतरा पैदा किया।

ब्रिटेन के संविधान के लिए पैदा हुए खतरे की पराकाष्ठा ही थी, जिसके चलते बर्क को आधुनिक राजनीति के इतिहास में शायद ही कभी इस्तेमाल किए गए उपचार – महाभियोग – का सहारा लेना पड़ा। जून 1791 में लॉड्र्स के सामने हेस्टिंग्स ने अपना पक्ष रखते हुए दलील दी कि भारत में उनके द्वारा अपनाए गए तौर-तरीके वैध थे, जहां ‘मनमानी शक्तियों का हमेशा एक जैसा इस्तेमाल’ खेल का नियम था। संक्षेप में बर्क हार गए, लेकिन नैतिकता के आधार पर जीत गए। महाभियोग की प्रक्रिया ने ही भारत में साम्राज्यवादी प्रशासन में सुधार की आवश्यकता के बारे में रचनात्मक बहस को जगह दी। प्रधानमंत्री विलियम पिट, जिन्होंने हाउस ऑफ कॉमन्स में महाभियोग के लिए मतदान किया था, ने अपनी पार्टी के भीतर काफी विरोध के बावजूद ईस्ट इंडिया कंपनी के नियामकों को कड़ा करने वाला कानून पारित कराया, जिसके कारण ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों की संसदीय निगरानी के प्रति जवाबदेही बढ़ी।
लेखिका ‘रेड एलेन: द लाइफ ऑफ एलेन विलकिंसन, सोशलिस्ट, फेमिनिस्ट, इंटरनेशनलिस्ट’ की लेखिका हैं और अमेरिकन यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाती हैं।

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