प्रसंगवश : मच्छर मारने के लिए तोप का इस्तेमाल

– बंद या आंदोलन के दौरान ही नहीं परीक्षा के दौरान भी प्रशासन नेट बंद करने के आदेश देने लगा है।

<p>प्रसंगवश : मच्छर मारने के लिए तोप का इस्तेमाल</p>

राजस्थान की आला अफसरशाही के पास एक नायाब चिराग-ए-जिन्न हाथ लग गया है। वह बिना कुछ सोचे समझे आए दिन चिराग को रगड़ कर जिन्न का इस्तेमाल करने लग जाती है। बात कर रहे हैं प्रदेश में इंटरनेटबंदी के आदेश की। कानून-व्यवस्था का मामला हो, कोई बंद हो, कोई आंदोलन हो और अब तो यहां तक कि कोई परीक्षा भी हो, प्रशासन को और कुछ सूझे ना सूझे सबसे पहले नेट बंद करने के आदेश देने की याद आती है। भले ही यह मच्छर मारने के लिए तोप का गोला दागने जैसा है, पर प्रशासन को इससे कोई सरोकार नहीं है। हालात यह हैं कि राजस्थान जिसे देश के सबसे शांत प्रदेशों में से एक माना जाता है, वह इंटरनेट बंदी में देशभर में जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर हैं। इस पैमाने से देखें, तो राजस्थान देश का दूसरा संवेदनशील राज्य हो गया है।

तकनीक के इस दौर में इंटरनेट एक प्रकार से नई जीवनशैली का प्राण तत्व है। आज कोई भी काम ऐसा नहीं है, जिसमें इंटरनेट का प्रयोग नहीं हो रहा हो। लाखों लोगों का रोजगार सीधे तौर पर इंटरनेट से जुड़ा है। यदि इंटरनेट नहीं, तो उनका रोजगार ठप। ऑनलाइन पढ़ाई, ऑनलाइन बुक हो रही टैक्सी, टेक होम सर्विसेज जैसे शॉपिंग, फूड इत्यादि तो पूरी तरह से इंटरनेट पर ही निर्भर हैं। कोरोना के खतरे से बचने के लिए बुकिंग, टिकटिंग, बोर्डिंग इत्यादि भी ऑनलाइन हो रही है। बैंकिंग भी पूरी तरह से ऑनलाइन हो गई है। इस समय बहुत बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट के जरिए वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। सरकार को इन सबके रोजगार की चिंता करनी चाहिेए। सुप्रीम कोर्ट एक मामले में कह भी चुका है कि इंटरनेट मौलिक अधिकार की तरह हो गया है। बिजली पानी की ही तरह नेट भी आवश्यक जरूरत की वस्तु बन गया है और प्रशासन को भी इसे इसी तरह से लेने की आवश्यकता है। राजस्थान में पिछले पांच साल में पचहत्तर बार इंटरनेट बंद हुआ है और अफसर तर्क दे रहे हैं कि वे बहुत जरूरी होने पर ही इंटरनेट बंद करने के आदेश देते हैं।

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नकल रोकने जैसे कार्यों के लिए पूरे जिले का इंटरनेट बंद किया जाना जिले के अन्य सभी नागरिकों के साथ अन्याय है। इंटरनेट बंद करने को लेकर अफसरशाही की जवाबदेही तय कर स्पष्ट नीति निर्धारित की जाए और इसे केवल आपातकालीन परिस्थितियों में ही उपयोग की इजाजत दी जाए। (अ.सिं)

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