अतिसंवेदनशील लोगों को प्राथमिकता से मिले वैक्सीन

‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ जरूरतमंदों तक वैक्सीन पहुंचाने में बाधक है। वास्तविकता यह है कि बीते सप्ताह तक विश्व के समृद्ध देशों ने दुनिया की 80 प्रतिशत कोरोना वायरस वैक्सीन पर अधिकार कर लिया है।

<p>Corona vaccine</p>
– डेरेन वॉकर, अध्यक्ष, फोर्ड फाउंडेशन
अमरीका में तेजी से चल रहे कोरोना टीकाकरण कार्यक्रम से कई अमरीकियों ने राहत की सांस ली है। एक मई तक हर अमरीकी वयस्क टीकाकरण करवाने की अर्हता प्राप्त कर लेगा। लेकिन यह अर्हता, स्वाभाविक न्याय से बहुत दूर है, जबकि दुनिया भर में महामारी के खत्म होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। वैक्सीन तक पहुंच में समानता कहीं नहीं दिखाई दे रही, न तो देशों के भीतर और न देशों के बीच – खास तौर पर एफ्रो वंशजों और स्वदेशी समुदायों को लेकर व्यापक विषमताएं उभर रही हैं। देश के भीतर ही भेदभाव साफ दिखाई देता है। मार्च के अंत तक श्वेत रंग वाले लोगों को अन्य लोगों के मुकाबले वैक्सीन लगने की संभावना दो गुनी रही।
वास्तविकता यह है कि गत सप्ताह तक विश्व के समृद्ध देशों ने दुनिया की 80 प्रतिशत कोरोना वायरस वैक्सीन पर अधिकार कर लिया है। निम्न आय वाले देशों को एक प्रतिशत वैक्सीन का भी दसवां भाग ही मिलेगा। विश्व में अब तक वैक्सीन की केवल 60 करोड़ खुराक ही लगाई जा सकी हैं (विश्व की 7.8 बिलियन आबादी में केवल 4 प्रतिशत लोगों को)।
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टीकाकरण में असमानता का कारण स्पष्ट है कि संपन्न देश वैक्सीन की जमाखोरी कर रहे हैं। यूरोपीय संघ ने वैक्सीन निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी है और अमरीका ऐस्ट्राजेनेका की 30 मिलियन खुराक पर अधिकार जमाए हुए है।
वैक्सीन राष्ट्रवाद की यह लहर विश्व में जरूरतमंदों तक वैक्सीन पहुंचाने की राह में बाधक बन गई है। वैक्सीन राष्ट्रवाद के परिणाम घातक हो सकते हैं। इससे वैश्विक स्तर पर महामारी से बचने की गति धीमी होगी। दुनिया में कोरोना से जंग का सामना कर रहे अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों की मृत्यु होने की आशंका है, जिसमें फोर्ड फाउंडेशन के कई एनजीओ साझेदारों की मृत्यु भी शामिल है। हमारे दर्जनों साहसी साथी कोरोना संक्रमण से मारे गए। यह बहुत बड़ी क्षति है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो वैक्सीन असमानता ने विश्व में व्याप्त असमानता को उजागर कर दिया है। इससे निपटने के लिए तीन उपाय हैं।
पहला, अमरीका अपने पास जमा बड़ी संख्या में वैक्सीन खुराकों को अमरीकी सेना अैर अन्य स्रोतों के जरिये विश्व भर में वितरण का जिम्मा उठाए जैसे पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने एड्स से राहत के लिए अपात योजना बनाकर किया था। दूसरा, यूरोपीय संघ, यूके और अमरीका पेटेंट संरक्षण हटा कर अधिक देशों को वैक्सीन बना कर इस्तेमाल करने की अनुमति दें। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसके तहत कोरोना वायरस वैक्सीन से अस्थायी तौर पर पेटेंट संरक्षण हटाने की मांग की गई है और 57 देशों ने उनका समर्थन किया है। पेटेंट से अस्थायी तौर पर पाबंदी हटाने से लोकतांत्रिक मूल्यों और पूंजीवाद के बीच संबंध बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। तीसरा उपाय है – हमें बहुपक्षीय पहल कर अधिक सुदृढ़ और
लचीला स्वास्थ्य तंत्र तैयार करना होगा ताकि इस महामारी व अन्य किसी भावी महामारी का मुकाबला किया जा सके।
बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स के संगठन ने गैर लाभकारी साझेदारों, सरकारों और डब्ल्यूएचओ के साझा कार्यक्रम कोवैक्स का समर्थन कर वैश्विक संस्थानों को वैक्सीन राष्ट्रवाद से विमुख हो कर वैक्सीन समानता की ओर प्रेरित किया है।
हमें उन लोगों व समुदायों पर फोकस करना होगा, जो कोविड-19 के सर्वाधिक शिकार हुए हैं। वैक्सीन असमानता संकट का समाधान व्यक्तिगत, संस्थानिक और औद्योगिक स्तरों पर स्वास्थ्य तंत्र, अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र को बेहतर बनाने का अवसर है।
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