इस ऐतिहासिक घटना से प्रेरणा लेकर आज भी गांधी परिवार द्वारा ऐसा ही कुछ प्रयास किया जा रहा है। अलीगढ़ से अलग हुए जिला हाथरस के थाना चंदपा के ग्राम बुलगढ़ी में एक वाल्मीकि दलित लड़की को अत्यंत घायल अवस्था में 14 सितंबर को खेत में पाया गया। पुलिस ने घर वालों की रिपोर्ट पर हत्या के प्रयास का मामला पंजीबद्ध किया, जबकि आरोपित है कि उन्हें बताया गया था कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। कई दिन बाद अलीगढ़ के अस्पताल में लड़की के बयान के आधार पर बलात्कार की धारा बढ़ाई गई। अंत में नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में उसकी मृत्यु होने पर हत्या का अपराध भी जोड़ दिया गया। कानून व्यवस्था बिगडऩे की तथाकथित संभावना के कारण शव लाकर रात में ही जला दिया गया।
इसके बाद की आपाधापी में सही तकनीकी विवेचना नहीं हो सकी। चौतरफा आलोचनाओं से घिरे योगी ने पुलिस अधीक्षक का स्थानांतरण कर दिया और अज्ञात कारणों से जिला मजिस्ट्रेट को हटाने से इंकार कर दिया। हर प्रकार के विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का गांव पहुंचने का तांता लग गया। थोड़ा संभलने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा मामला सीबीआइ को सौंपने तथा सुप्रीम कोर्ट से इसका पर्यवेक्षण करने का निवेदन किया गया है। अपनी चिर-परिचित शैली में उन्होंने यह भी घोषणा की कि पूरे उत्तर प्रदेश में जातीय दंगे कराने का कुत्सित षडयंत्र किया जा रहा है। चार लोगों को अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट के अंतर्गत जेल में डाल दिया गया है। योगी समर्थकों के एक बड़े वर्ग का यह भी मत है कि लड़की परिवार के ही हाथों ऑनर किलिंग का शिकार हुई। अब सीबीआइ जांच जारी है।
भारतीय संविधान के सभी मूल सिद्धांत इंग्लैंड और अमरीका आदि के प्रजातांत्रिक संविधानों पर आधारित हैं, पर भारत में पुलिस और अन्य एजेंसियां किस के इशारे पर काम करती हैं. यह सर्वविदित है। अमरीका में पुलिसकर्मी के हाथों एक अश्वेत व्यक्ति की निर्मम हत्या को लेकर वहां बड़े हिस्से में लूटपाट और दंगे भड़क गए थे, लेकिन वहां इस प्रकरण की जांच किसे सौंपी जाए, घटना स्थल पर विपक्षी नेताओं को जाने दिया जाए या नहीं, ऐसी कोई समस्या नहीं थी। न्यायालयों के हस्तक्षेप की जरूरत पड़े, ऐसा वहां कोई अवसर नहीं होता क्योंकि एफबीआइ की कार्यपद्धति निर्धारित है, लेकिन भारत में सीबीआइ का कोई एक्ट ही नहीं है। सीबीआइ राज्य सरकारों की अनुशंसा, केंद्र की मर्जी या न्यायालयों के आदेश पर ही कार्रवाई करती नजर आती है। मानो राज्यों के पुलिस मुख्यालयों ने स्वविवेक से काम करना ही बंद कर दिया है, गृह विभाग निर्जीव हो गए हैं।
हमारे देश के नेता, स्थान और समय देख कर, आपराधिक घटनाओं पर घडिय़ाली आंसू गिराते रहते हैं, पर आपस में बैठकर एक स्वस्थ प्रजातांत्रिक पुलिस और आपराधिक न्याय व्यवस्था को विकसित करने का कोई प्रयास नहीं करते। ऐसा नहीं है कि हमारे नेता यह समझते नहीं हैं, पर अपने निहित स्वार्थों के कारण उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता। वे अपनी माया में फंसे हैं, ‘कबीरा कहे ये जग अंधा’ को चरितार्थ कर रहे हैं।