Guru Purnima Special : यह समझना जरूरी है कि वास्तव में गुरु होता क्या है?

गुरु पूर्णिमा Guru Purnima सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इस दिन पृथ्वी पर जो होता है, उसकी वजह से भी इसका महत्त्व है। ग्रीष्म संक्रांति के बाद पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है।

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सद्गुरु जग्गी वासुदेव, (संस्थापक, ईशा फाउंडेशन)

Guru Purnima : सवाल यह है कि गुरु होता क्या है? गुरु का मतलब कोई उपदेश, सिद्धांत या विचारधारा नहीं है। इसका मतलब बस कृपा है। अगर आपके जीवन में कृपा की चिकनाई नहीं है, तो आपके पास जो कुछ भी है, वह किसी न किसी रूप में आपके खिलाफ काम करेगा। अधिकतर लोग आमतौर पर उसी चीज से कष्ट झेलते हैं, जिसे उन्होंने काफी मेहनत से हासिल किया होता है, जैसे उनका कारोबार, करियर, दौलत और परिवार। ऐसा सिर्फ इसलिए होता है, क्योंकि भले ही आपने जीवन के इन सभी हिस्सों को इकट्ठा कर लिया है, लेकिन उन हिस्सों के बीच में कोई चिकनाई नहीं है। इससे वे आपके फायदे के लिए अच्छे से काम नहीं कर पा रहे हैं। अगर कृपा न हो तो जिन चीजों को पाने के लिए आप कोशिश करते हैं, वही आपके खिलाफ हो जाती हैं।

गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक प्रतीक नहीं है। इस दिन पृथ्वी पर जो होता है, उसकी वजह से भी इसका महत्त्व है। ग्रीष्म संक्रांति के बाद पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। इसी दिन आदियोगी आदिगुरु बन गए थे। प्रथम योगी ने खुद को प्रथम गुरु बना लिया था। आपको कहानी जाननी चाहिए।

लगभग 15,000 साल पहले, हिमालय के ऊपरी इलाके में एक प्राणी प्रकट हुआ। कोई नहीं जानता था कि वह कौन है या कहां से आया है। इस शानदार प्राणी का मूल अज्ञात था। जब उसके परमानंद से उसके शरीर में कुछ हलचल हुई, तो वह प्रचंड नृत्य करने लगा। जब तीव्रता अपने चरम पर पहुंच गई, तो वह एकदम स्थिर हो गया। लोगों ने देखा कि वह ऐसे आयामों का अनुभव कर रहा था, जिसके बारे में न तो कभी किसी ने जाना था, न उसकी कल्पना की थी। उसका परमानंद और तीव्रता उसे अपने भौतिक रूप से परे ले गए। एक मनुष्य को ब्रह्मांड के साथ मेल में देखकर, वे उसे योगी बुलाने लगे। चूंकि वे पहले योगी थे, इसलिए वे आदियोगी हुए। जब उनकी अचलता लगातार कई साल तक बनी रही, तो दर्शकों की भीड़ छंटने लगी। सिर्फ सात साधक वहां बने रहे, क्योंकि वे खुद को उनसे दूर नहीं कर पा रहे थे। आदियोगी ने योग के गहन विज्ञान को उसकी पूरी गहराई और आयाम में उनको दिया। उन्होंने मुक्ति के 112 तरीके सिखाए और अपने शिष्यों को सृष्टि के सबसे गहरे तल तक पहुंचने का तरीका बताया। योग की इस शानदार अवस्था में सृजित और असृजित के कई रहस्य उनकी जटाओं पर उतर आए।

आदियोगी की वह दृष्टि अथाह और भव्य थी और ब्रह्मांड के अथाह रहस्यों से भरी थी। ऐसी अभिभूत कर देने वाली दृष्टि ऋषियों और देवी पार्वती ने कभी नहीं देखी थी। आदियोगी को परमानंद की स्थिति में देखकर देवी पार्वती ने कहा, ‘मुझे वह चाहिए, जो आपके पास है। मुझे तरीका बताइए।’ आदियोगी ने उन्हें अपने अंदर समा लिया और अपना एक हिस्सा बना लिया। इसलिए वे अर्धनारी हैं – एक आदर्श पुरुष, जिसका एक हिस्सा स्त्री का है। इस शानदार मेल की भव्यता को देखकर, हमेशा उनके साथ रहने वाले गणों ने पूछा, ‘हमारा क्या होगा?’ आदियोगी बोले, ‘बस मुझे पी लो’, जिसने उन्हें मदमत्त जीवों में बदल दिया। सात ऋषि जिन्हें सप्तऋषि कहा गया, योग के पवित्र विज्ञान को उसके सभी रूपों में दुनिया की मानव आबादी तक ले गए, जिसने सभ्यताओं को पैदा किया। यह शानदार प्राणी अतीत का नहीं है, बल्कि मानव जाति का भविष्य है – जो मानवता को उतार-चढ़ाव के मतिभ्रम से भीतरी परमानंद की ओर ले जा सकता है।

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