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अफगानिस्तान में पाक का नया खेल ‘मासूमियत भरा’

अफगानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने का विचार पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात के बाद सार्वजनिक किया था। देखा जाना है कि पाकिस्तान विश्व समुदाय और अफगान नेतृत्व को किस तरह शांति और स्थिरता के इरादों के प्रति आश्वस्त करता है।

नई दिल्लीJul 16, 2021 / 10:46 am

विकास गुप्ता

अफगानिस्तान में पाक का नया खेल ‘मासूमियत भरा’

अरुण जोशी, (दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलों के जानकार)

पाकिस्तान अपने पड़ोसी देश अफगानिस्तान पर एक विशेष सम्मेलन करने जा रहा है ताकि युद्ध से ध्वस्त देश में एक और गृहयुद्ध फैलने से रोकने का उपाय खोजा जा सके। पाकिस्तान के आधिकारिक शब्दों पर भरोसा करें तो यह सम्मेलन अफगान नेतृत्व के सभी पक्षों और अन्य सभी को, जिनका मुख्यरूप से तालिबान, अफगान सरकार और विभिन्न जातीय समूहों के बीच सामंजस्य है, अफगानिस्तान में राजनीतिक समझौते के लिए एक मंच प्रदान करेगा।

अफगानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने का विचार पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात के बाद सार्वजनिक किया था। 14 जुलाई की शाम टेलीफोन पर बातचीत में इमरान खान ने करजई को भरोसा दिया कि उनका देश अफगानिस्तान में शांति-व्यवस्था बहाल करने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा। अफगानिस्तान, तालिबान की बेतहाशा तरक्की की पृष्ठभूमि भी है जहां एक के बाद एक क्षेत्रों पर उसका नियंत्रण होता जा रहा है। यह साबित हो चुका है कि सरकारी बल तालिबान के हमलों का मुकाबला नहीं कर सकेगा। अफगान सेना के जवान सीमापार कर पड़ोसी देश ताजिकिस्तान भाग रहे हैं। ये पीछे हटना नहीं है, यह तो अपने देश और अपने लोगों को छोड़ देना है जिनके प्रति वे अपनी अंतिम सांस तक कर्तव्यबद्ध थे।

इस प्रस्तावित सम्मेलन को लेकर पाकिस्तान के जहन में दो और मुद्दे हो सकते हैं। हालांकि इसका कार्यक्रम अभी तक सामने नहीं आया है। पहला, या तो पाकिस्तान तालिबान की आक्रामकता से हैरान है या वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तटस्थ खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए जमीन तैयार कर रहा है। दूसरा, उसे डर है कि अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते कदम से उसे और नुकसान होगा। ऐसी आशंका के मद्देनजर वह अंतरराष्ट्रीय समर्थन चाह रहा है या अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उस अराजकता के चलते निकट भविष्य में सामने आने वाले नतीजों से आगाह कर रहा है, जिससे अफगानिस्तान जूझ रहा है।

हालांकि एक स्पष्ट तथ्य है – यह बात भरोसा करने लायक नहीं है कि अफगानिस्तान में घटित घटनाओं के बारे में पाकिस्तान कुछ नहीं जानता था। पाकिस्तान हमेशा से ही अफगानिस्तान को अपने बैकयार्ड के रूप में देखता रहा है ताकि रणनीतिक उद्देश्यों के लिए वह उसके ठिकानों का इस्तेमाल कर सके। यह भारत को लेकर पाकिस्तान के काल्पनिक डर का ही परिणाम था और भारत के लिए समस्याएं पैदा करना, कश्मीर में छद्मयुद्ध के प्रयासों की जड़ भी वही डर रहा। कश्मीर पर उसका मंसूबा 1947 से ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखने लगा था। दिसम्बर 1971 में उसका पूर्वी हिस्सा बांग्लादेश बन गया। सारे हालात खुद पाकिस्तान के ही पैदा किए हुए थे।

अफगानिस्तान में सम्मेलन आयोजित करने की योजना पर पाकिस्तान के साथ कोई बहस नहीं हो सकती है। पाकिस्तान युद्धग्रस्त देश का निकटतम पड़ोसी है। वास्तव में, वहां गृहयुद्ध आसन्न है क्योंकि वहां हालात ऐसे बन रहे हैं। यह भयावह अनुमान है कि कुछ ही हफ्तों या महीनों में वहां बंदूकें गरजेंगी। अब जब अफगानिस्तान में हालात चरम पर हैं तो पाकिस्तान दुनिया को यह जताना चाहता है कि वह पश्चिम के अपने पड़ोसी देश में शांति और वास्तविक राजनीतिक समाधान के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। अब देखा जाना है कि वह विश्व और विशेष रूप से अफगान नेतृत्व को अपनी ईमानदारी के प्रति कैसे आश्वस्त करता है और किस तरह विश्व समुदाय के सामने अपने इरादे जाहिर करता है।

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