एक जमाना था जब देश में और देश के बाहर भारतीय राजनेताओं की तूती बोला करती थी। महात्मा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक कितने भी नाम लिये जा सकते हैं जो देश की समस्याओं पर आगे आकर बोलते थे। ये लोग पक्ष-विपक्ष में कहीं भी रहे हों अपने स्पष्ट विचारों के लिए जाने पहचाने जाते थे।निर्णय भी लेते थे और उन्हें लागू भी करते थे। लेकिन अब ऎसा होता नहीं दिख रहा। वोटों के लालच में उलझी सरकारें और हमारे राजनेता किसी भी विषय पर कोई निर्णय नहीं ले पाते। उन विषयों पर भी, जो उनके अपने होते हैं। जिन्हें सीने से लगाकर उन्होंने अपनी राजनीति शुरू की उन्हीं मुद्दों को अब वे भूल जाना चाहते हैं। हाथ में लेने की मजबूरी भी आ फंसे तो तब जब कोर्ट बीच में आ जाए। समान नागरिक संहिता का उदाहरण ताजा है।सारा देश जानता है कि “समान नागरिक संहिता” जनसंघ के जमाने से ही भारतीय जनता पार्टी के दिल से जुड़ा मामला है लेकिन अब लगता है कि वह सत्ता पाने के लिए ही है। अन्यथा करीब डेढ़ साल होने को आया केन्द्र में सरकार बने, भारतीय जनता पार्टी ने उसे लेकर कोई बात ही नहीं की। धारा 370 और राम मंदिर तो बहुत दूर की बात है। और तो और अब जबकि तलाक के एक मामले को लेकर समान नागरिक संहिता का विष्ाय सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया, तब भी हमारी सरकार उस पर अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है।आखिर न्यायालय को वो भाषा बोलनी पड़ी जो सरकार के विरूद्ध वह आम तौर पर नहीं बोलता। शायद लोकतंत्र में, उसके जनता की सीधी प्रतिनिधि होने का लिहाज करता हो। सरकार को भी अपनी इज्जत खुद बचाने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब देश की सबसे बड़ी अदालत, देश की सबसे बड़ी सरकार से उसकी राय पूछे और वह महीनों तक उसका जवाब नहीं दे तो उसे क्या माना जाए? बेशक इसके पीछे न्यायालय के अपमान की मंशा नहीं होगी।या तो लालफीताशाही अथवा फिर किसी निष्कष्ाü पर नहीं पहुंच पाना ही कारण रहा होगा लेकिन अनिर्णय की इस स्थिति के निहितार्थ और फलितार्थ दोनों बहुत गहरे और व्यापक असर वाले हैं। यदि आगे किसी मौके पर न्यायालय ने अपनी ओर से कोई आदेश सुना दिया तो वह सरकार पर ही नहीं इस देश की विधायिका पर होगा और यह मान लिया जाएगा कि या तो वह निर्णय करने की स्थिति में नहीं है या फिर करना नहीं चाहती। इससे पहले कि ऎसी कोई स्थिति बने सरकार को आम भारतीय से जुड़े ऎसे तमाम मसलों पर एक स्पष्ट मत के साथ देश के सामने आना चाहिए। तभी उसकी और लोकतंत्र की इज्जत बढ़ेगी।