कूटनीतिक चुनौतियों पर चर्चा के मंच रायसीना डायलॉग के दूसरे एडिशन को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ पाकिस्तान को उसकी हरकतों के लिए चेताया बल्कि चीन को भी हिदायत दी है कि उसे भारत का हित समझना चाहिए। उभरती शक्ति के रूप में भारत ने दोनों देशों को आइना दिखाने का काम किया है। पाकिस्तान से भारत के रिश्तों में पिछले साल भर के दौरान आई कड़वाहट को देखते हुए प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी काफी अहम है कि भारत अकेला शांति के रास्ते पर नहीं चल सकता। चीन भी गाहे-बगाहे जिस तरह से पाकिस्तान को शह देता रहता है यह बात सबको पता है। ऐसे में इस सम्मेलन में दोनों देशाों को प्रधानमंत्री ने खरी-खरी सुनाई है। प्रधानमंत्री का यह उद्बोधन कूटनीतिक दृष्टि से इसलिए भी काफी अहम समझा जाना चाहिए क्योंकि दुनिया के 65 देशों के प्रतिनिधि इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि तमाम मतभेदों के बावजूद प्रधानमंत्री ने चीन के साथ आर्थिक साझेदारी बढ़ाने की बात भी कही है। एक बात हमें समझनी होगी, चीन कभी भी यह नहीं चाहेगा कि एशिया में भारत को नम्बर वन का दर्जा हासिल हो। पिछले सालों में चीन आर्थिक रूप से बड़ी ताकत के रूप में उभर रहा है। एशिया ही नहीं बल्कि वैश्विक परिदृश्य मे अहम स्थान रखने की चाह रखने वाले चीन के लिए असली चुनौती भारत की ही है। लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो भारत और चीन दोनों के लिए ही मौजूदा दौर में आर्थिक साझेदारी की बड़ी जरूरत है। मैं मोदी की इस बात से सहमत हूं कि दो देशों के बीच मतभेद होना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन ये मतभेद दूर नहीं किए जाएं तो समस्याएं ज्यादा बढ़ सकती है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में यह साफ संकेत दिया है कि भारत अपने पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध चाहता है। लेकिन ताली एक हाथ से तो नहीं बज सकती। जिस एकीकृत पड़ोस का मोदी ने जिक्र किया उसमें चीन व पाकिस्तान दोनों ही आते हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि दोनों ही देशों से भारत के संबंध मैत्रीपूर्ण रहें। पिछले सालों में दुनिया के राजनीतिक परिदृश्य में भी काफी बदलाव आया है। अमरीका में नए राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप कार्यभार संभालने वाले हैं। रूस व अमरीका के बीच भी संबंधों में दोस्ताना माहौल बनने की उम्मीद है। ऐसे में मेरा यह मानना है कि किसी भी देश से स्थायी मित्रता या शत्रुता नहीं होती। लेकिन पड़ोस में यदि शत्रुता का माहौल रहता है तो वह किसी भी तरक्की पसंद देश के लिए खतरनाक है। संवाद ही बेहतर रिश्तों का जरिया हो सकता है। प्रधानमंत्री ने रूस से भारत की पुरानी मित्रता का भी जिक्र किया। विकास के मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप से हुई बातचीत का भी। इस तरह से उन्होंने यह साफ कर दिया है कि भारत किसी एक देश का पिछलग्गू नहीं होना चाहता। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में भारत की नीति के बारे में स्पष्ट कहा है कि अपने बारे में सोचना न हमारी संस्कृति में है और न ही स्वभाव। जिस बहुपक्षवाद को प्रभावी तरीके से लागू करने की उन्होंने बात कही वह ‘सबका साथ, सबका विकासÓ के नारे की तरह ही हैं। अब सीधा सवाल यह उठता है कि क्या प्रधानमंत्री की नसीहत के बाद चीन, पाकिस्तान को लेकर अपने मौजूदा नजरिए में बदलाव लाएगा? मेरा यह मानना है कि प्रत्येक देश दूसरे देशों से सम्बन्धों के मामले में राष्ट्रीय हितों की चिंता करता है। भारत भी यही करता आया है। ऐसे में चीन को जहां अपने आर्थिक हित नजर आएंगे वह करेगा ही। पाकिस्तान के साथ चीन के आर्थिक व सामरिक हित जुड़े हुए हैं। ऐसे में बहुत उम्मीद करना व्यर्थ होगा। लेकिन आतंकवाद किसी एक देश की समस्या नहीं है। आईएसआईएस के खतरा भी बढ़ा है। आतंकियों को शह देने वाले पाकिस्तान को भी आतंक की समस्या से दो-चार होना पड़ा है। ऐसे में जरूरत इसी बात की है कि विश्व मंच पर इस बात को जोर-शोर से उठाया जाए कि आतक का साथ देने वाले देशों को अलग-थलग किया जाए। तमाम मतभेदों के बावजूद भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की संभावनाओं को खुला रखा है। लेकिन प्रधानमंत्री ने यह साफ कर दिया है कि इससे पहले पाकिस्तान को आतंकवाद से दूर रहना होगा। आतंक को धर्म से अलग करना होगा। दरअसल, पाकिस्तान व उसके शासक खुद काफी दबाव में हैं। लेकिन अपनी खुशहाली के लिए उसको इन दबावों से मुक्त होना ही होगा। घर की समस्याओं को कोई बाहर वाला दूर करने नहीं आएगा। लेकिन मैं आशावादी हूं और यह उम्मीद करता हूं कि पाक से बातचीत के रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं। आगामी दिनों में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है। देखना होगा कि वैश्विक माहौल में सरकारें कैसे काम करने वाली हैं? उनकी नीतियां क्या रहेंगी? दुनिया की बड़ी शक्तियों में शुमार रूस व अमरीका का क्या रवैया रहेगा? लेकिन यह बात सही है कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे देशों पर निर्भर रहने का दौर है। कोई देश आपसी सहयोग की भावना नहीं रखेगा तो अलग-थलग पड़ जाएगा। चाहे चीन हो या पाकिस्तान या फिर कोई दूसरा देश सबको इस बात को समझना होगा। बेहतर पड़ोस हो तो परिवारों में जिस तरह बेहतर सामंजस्य होता है वैसे ही देशों में होता है। भारत, पाक और चीन तीनों को ही यह समझना होगा। प्रो.बदरुल आलम अंतराष्ट्रीय मामलों के जानकार