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‘आपराधिक प्रवृत्ति का पशु क्रूरता से संबंध’

– हिंसक गतिविधियों पर आधारित वीडियो गेम्स बच्चों के मानसिक विकास और भावनात्मक समझ को प्रभावित करते हैं – पशुओं के साथ हिंसा करने वाले लोग मनुष्यों के साथ भी हिंसक हो सकते हैं। हिंसा के अनुभव मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता से लेकर डीएनए तक में बदलाव ला सकते हैं।

नई दिल्लीJan 13, 2021 / 11:41 am

विकास गुप्ता

‘आपराधिक प्रवृत्ति का पशु क्रूरता से संबंध’

हम सब इस धरा पर शांति चाहते हैं लेकिन जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, हम और अधिक परेशान और एक-दूसरे से अधिक दूर होते जा रहे हैं। अफसोस कि हम सौहार्दपूर्ण ढंग से नहीं रहते। हमने इस दुनिया को घृणा से ग्रस्त छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया है। हम केवल एक दूसरे पर ही प्रहार नहीं कर रहे, बल्कि हम अपने ही ग्रह पर हमला कर रहे हैं और बिना विचारे यहां रह रहे प्रत्येक व्यक्ति को अपना निशाना बना रहे हैं।

क्या हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी ऐसे ही बड़े हों, जैसे कि हम? नहीं। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे खुशहाल हों लेकिन खुशहाली के लिए कुछ अनुशासन होते हैं, जैसे सज्जनता, विवेक, सम्मान, शांति की कामना और प्रकृति से प्रेम। परंतु क्या हम उन्हें इसी प्रकार की परवरिश दे रहे हैं? या हम उन्हें शुरू से ही धूर्तता और भय की शिक्षा दे रहे हैं? हम उन्हें अन्य जीव-जंतुओं से डरना सिखाते हैं और डर से ही हिंसा का भाव पैदा होता है। पशु क्रूरता देखने और उसका हिस्सा बनने का बच्चों के व्यवहार पर क्या असर पड़ता है? इस बारे में ऑस्ट्रिया के तंत्रिका विज्ञानी और मनोविज्ञान विश्लेषक सिगमंड फ्रायड का मानना है कि मानव का मनोविज्ञान (व्यक्तित्व) तीन चीजों से मिलकर बना है – पहचान, अभिमान और अति अभिमान। बच्चे मानव व्यवहार से मिली सीख के आधार पर अपनी पहचान बनाते हैं, लेकिन उन्हें स्वयं को समझने की भावना विकसित करने में समय लगता है और यही समझ उन्हें भले-बुरे की पहचान करवाती है। यही वजह है कि पांच से दस वर्ष की उम्र तक के बच्चे नैतिक रूप से सही और गलत का भेद नहीं समझ पाते और आम तौर पर अपने स्वभाव के अनुसार व्यवहार करते हैं या दूसरों की नकल करते हैं। हम अगर बच्चों को ऐसे कार्टून शो दिखाएंगे, जिनमें पशु क्रूरता दिखाई जाती है तो वे उसे ही सही मान बैठेंगे। हिंसा दिखाने वाले गेम्स उनके मानसिक विकास और भावनात्मक समझ को प्रभावित करते हैं। 90 फीसदी वीडियो गेम्स में हिंसक गतिविधियों की भरमार होती है।

शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग के तहत पाया कि अगर बच्चों को किसी एक चीज से डराया जाए तो वे वैसी ही दिखने वाली अन्य चीजों से भी डरने लगते हैं। जैसे कि एक प्रयोग में अल्बर्ट नाम के एक बालक को सफेद चूहे से डराया गया तो वह सफेद श्वान और सफेद खरगोश, यहां तक कि सफेद बालों से भी डरने लगा। बच्चों के मन में यदि धारणा बिठा दी जाए कि पशुओं के साथ हिंसा गलत नहीं है तो इस बात की संभावनाएं अत्यधिक हैं कि वे हर प्रकार की हिंसा को उचित मानने लगें। इसी प्रकार मस्तिष्क विज्ञानियों की एक कॉन्फ्रेंस में निष्कर्ष निकाला गया कि जो लोग हिंसक प्रवृत्ति वाले होते हैं, उनके मस्तिष्क का अग्रभाग बच्चों के समान छोटा और कम सक्रिय होता है। पशुओं के साथ हिंसा करने वाले लोग मनुष्यों के साथ भी हिंसक हो सकते हैं। हिंसा के अनुभव मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता से लेकर डीएनए तक में बदलाव ला सकते हैं। यानी जो बच्चा आज हिंसक प्रवृत्ति सीख रहा है, उसकी अगली पीढिय़ों में यह प्रवृत्ति भी जन्मजात ही स्वत: आ जाएगी। क्या हमें ऐसा विश्व चाहिए?

सीरियल हत्यारों की पृष्ठभूमि देखी जाए तो निश्चित रूप से वे पशुओं के प्रति क्रूर रहे होंगे। एक अन्य अध्ययन के अनुसार ज्यादातर हिंसक यौन अपराधी युवावस्था में पशुओं के साथ हिंसक व्यवहार किए हुए होते हैं। बचपन में अगर मन-मस्तिष्क में पशुओं के प्रति क्रूरता घर कर जाए तो वह बच्चा भविष्य में जरूर अन्य इंसानों के प्रति भी क्रूर ही होगा। बच्चों के प्रति यौन अपराधों में लिप्त अपराधियों में से 36 प्रतिशत बचपन में पशु क्रूरता में लिप्त थे। 46 प्रतिशत किशोरावस्था में पशुओं के साथ क्रूरता करते पाए गए और 36 प्रतिशत वयस्क उम्र में पशुओं के प्रति हिंसक प्रवृत्ति अपनाते देखे गए। जाहिर है बचपन में पशुओं के साथ क्रूरता देखने-करने वाले उम्र बढऩे के साथ इंसानों के प्रति भी हिंसक हो जाते हैं।

एक अध्ययन के मुताबिक, पशुओं के साथ बर्बरता का हिंसा व अन्य समाज विरोधी व्यवहार से गहरा संबंध है। अन्य किसी भी हिंसा के बजाय पशुओं के प्रति हिंसक प्रवृत्ति इंसान को अपराध करने को प्रवृत्त करती है, जिसमें हिंसक अपराध भी शामिल हैं। अमरीकी एजेंसी एफबीआइ ने पशु क्रूरता और अन्य अपराध जैसे आगजनी, चोरी, मारपीट व हत्या संबंधी आंकड़े जुटाए। इसके लिए 18000 पशु क्रूरता संबंधी कानूनी एजेंसियों से आंकड़े एकत्र किए गए। इसमें अनदेखी, प्रताडऩा, संगठित अपराध और यौन अपराध शामिल थे। एफबीआइ के आपराधिक डेटाबेस एनआइबीआरएस के एक अधिकारी के अनुसार, पशुओं के साथ हिंसा बड़े अपराधों की ओर बढऩे से पहले का कदम है। नेशनल शै रिफ एसोसिएशन ने भी इस बात का पुरजोर समर्थन किया है। यह एसोसिएशन सालों से पशु अपराधों व अन्य अपराधों जैसे घरेलू हिंसा और बाल अपराधों के बीच संबंध बताती आई है। एसोसिएशन ने लोगों से अपील की है कि वे इस अवधारणा को समझें कि पशु क्रूरता केवल पशुओं के प्रति अपराध नहीं है बल्कि यह समाज के प्रति अपराध है। इन पर ध्यान देकर हम समाज का भला कर सकते हैं।

क्योंकि हमारे देश में पुलिस पशु क्रूरता अपराधों को दर्ज करने से या तो बचती है या फिर उनकी गंभीरता को कमतर आंकती है, इसलिए पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों में इस संबंध में प्रशिक्षण अति आवश्यक है। अमरीकी न्यायिक विभाग की एक रिपोर्ट ‘पशु क्रूरता यानी अपराध के द्वार खोलना’ के अनुसार, पशुओं के साथ क्रूरता करने वाले लोगों में अन्य के मुकाबले पांच गुना अधिक आपराधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। संपत्ति संबंधी अपराधों में इनकी भागीदारी चार गुना अधिक होती है जबकि ड्रग्स व अन्य असंगठित अपराधों में तीन गुना।

– मेनका गांधी
लोकसभा सदस्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता

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