वैश्विक महामारी :महाशक्तियों में टकराव की आशंका

वैश्विक महामारी कोरोना के बादल इतने गहरा जाने के बावजूद भी विश्व की दो बड़ी महाशक्तियाँ अमरीका व चीन का ग़ैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार समस्त मानव जाति को ख़तरे में डालने के लिए पर्याप्त है । दोनों राष्ट्रों के नेतृत्व द्वारा समय-समय पर आरोप- प्रत्यारोप वाले बयानों ने इस मुसीबत की आग में घी का काम किया है।
 

<p>वैश्विक महामारी : महाशक्तियों में टकराव की आशंका</p>

आजाद सिंह राठौड़

कोविड -19 महामारी के कारण , आने वाले समय में कई दुष्परिणाम सामने आने के आसार बनने लगे हैं। इसके नतीजे हमारी कल्पना से कई गुना अधिक भयावह हो सकते हैं। एक ओर जहां लाखों लोगों को यह महामारी अकाल मौत की तरफ ले जा रही है , हज़ारों हंसते खेलते परिवारों के तबाह होने की नौबत आन खड़ी है तो वहीं लाखों परिवारों के लिए आने वाले समय में रोज़ी रोटी का संकट मुँह उठाये खड़ा है। दूसरी ओर विश्व के दो बड़े राष्ट्रों के इस संकट की घड़ी में आमने-सामने खड़ा हो जाना भी दुनिया के बाकी राष्ट्रों के लिये चिंता का विषय बन गया है। इन दो महाशक्तियों , चीन व अमरीका के पिछले कुछ दशकों से लगातार चले आ रहे मतभेद या मनभेद का इस तरह खुल कर सामने आना एक नए शीत युद्ध की शुरुआत की आशंका पैदा करता है जो कि विश्व के अन्य देशों और उनके नागरिकों के लिए कम ख़तरनाक नहीं है।

कोविड-19 महामारी आने वाले समय में विश्व व्यवस्था को कई रूप में बदलने जा रही है। यह संयुक्त राष्ट्र को भी प्रभावित करती नज़र आ रहा है। विशेष रूप से यह कि चीन द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का इस्तेमाल जानकारियों को छुपाने और महामारी के शुरुआती केंद्र होने से बनने वाली ग़लत छवि से बचाने के लिये किया जाने का प्रयास निस्संदेह ख़तरनाक है। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प पहले ही विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ ) को आर्थिक सहयोग रोकने के बारे में बयान देकर उसे चीन द्वारा कोरोना वाइरस सम्बन्धी ग़लत जानकारी का आरोप लगा कर अपने सख़्त इरादे ज़ाहिर कर चुके हैं। दोनो बड़े राष्ट्रों के नेताओं के आमने – सामने हो जाने से विश्व व्यापार संगठन सहित कई बहुपक्षीय संगठनों के टूटने का जोखिम, व विश्व स्वास्थ संगठन जैसी संस्थाओ का कमजोर होने का ख़तरा वास्तविकता रूप में नज़र आने लगा है जिसकी क़ीमत विकासशील देशों को ही चुकानी पड़ेगी।

ऐसा कई मर्तबा हुआ है कि किसी प्राकृतिक आपदा ( हालांकि कोविड-19 के प्राकृतिक होना भी संदेह के दायरे में है ) का उपयोग अक्सर बड़े राष्ट्र पोलिटिकल व डिप्लोमैटिक हितों को साधने में भी करते आये हैं। अमेरिका कोविड-19 का उपयोग भी चीन के ख़िलाफ़ कुछ इसी तरह करता नज़र आ रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस आपदा के प्रथम चरण में इसे चाइना वाइरस नाम से प्रचारित कर चीन को विश्व के सामने एक अपराधी के रूप में पेश करना चाह रहे है।

अमरीकी प्रशासन कोरोना वाइरस को वुहान वाइरस तक कह कर चीन से इसकी उत्पति व इसके बारे में जानकारियों को छुपाने का खुला आरोप लगाकर उसे क़सूरवार ठहरा चुका हैं। साथ ही कोरोना वाइरस से जुड़ी जानकारियों को विश्व पटल पर रखने की माँग कर चीन को विश्व की नज़र में अपराधी बताकर शेष विश्व से अलग थलग करने के प्रयासों को कई बार दोहरा चुके हैं। वही दूसरी तरफ़ चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, लिजियन झाओ, वायरस प्रकोप में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठाने के लिए विशेष रूप से मुखर रहे हैं।

अमरीका वर्तमान समय को चीन के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने का पूरा प्रयास कर रहा है। अमरीका में कुछ माह बाद होने वाले चुनाव व ट्रम्प के येन-केन-प्रकरेण अमरीकी अवाम को चीन के ख़िलाफ़ लामबंद कर उसे चुनावी मुद्दे के रूप में भुनाने के प्रयास भी इसकी पृष्ठभूमि में एक बड़ा कारण नज़र आ रहा है। अमेरिका समेत विश्व के कई राष्ट्र उसके शह पर चीन से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आ रही गिरावट से मुआवजे का दावा करने के मामले में चीन के ख़िलाफ़ खड़े नज़र आ रहे हैं जिससे उसे बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार जी – 7 देश चार ट्रिलियन डालर के मुआवजे की माँग चीन से कर सकते हैं । यदि ऐसा कोई दावा उसके ख़िलाफ़ दायर होता है तो चीन द्वारा किसी भी मुआवजे का भुगतान करने की उम्मीद तो नहीं है , उल्टा चीन अपनी मज़बूती का उपयोग इन राष्ट्रों के आर्थिक हितों को कुचलने में ही करेगा जिसकी क़ीमत अंततः विश्व के अन्य राष्ट्रों को भी भुगतनी होगी। एक तरफ़ चीन इस आपदा को अपने राजनयिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए मित्र देशों को चिकित्सा उपकरण आपूर्ति कर रहा है तो दूसरी तरफ़ चीन के कारण व्यापार में पिछड़ रहे यूरोपियन व अन्य पश्चिमी देश अमेरिका की शह पर स्वयं को चीनी रिक मॉडल से अलग करने की फ़िराक़ में है। कुछ दिन पहले ही जापान सरकार ने अपनी कंपनियों को चीन में अपनी निर्माण इकाइयों को हमेशा के लिये बंद करने के फ़ैसले के चलते 2.2 बिलियन डॉलर का मुआवज़ा आवंटन भी किया है।

लगतार पिछले कुछ सालों से महाशक्तियों के चले आ रहे व्यापारिक युद्ध में अमेरिकी कंपनियों ने चीन से बाहर जाना पहले से ही शुरू कर दिया था, उनके बाहर निकलने की गति में बढ़ोतरी की पूरी सम्भावना है। विगत दिनों अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के तीन राष्ट्रों के साथ बने पुराने समूह कवाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग, जिसे क्वाड ग्रूप भी कहा जाता है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, जापान समेत भारत भी महत्वपूर्ण सदस्य है की दो दौर की बैठकों का नेतृत्व किया है। अमेरिका ने बड़ी चतुराई से इसमें तीन और नये राष्ट्र वियतनाम, साउथ कोरीया व न्यूज़ीलैंड को शामिल कर इसे एक तरह से चीन विरोधी संघ ही बना डाला। गौरतलब है कि जापान, वियतनाम, साउथ कोरिया के सम्बंध चीन से बेहतर सम्बन्धों के लिये नहीं जाने जाते हैं और भारत के अलावा शेष दो राष्ट्र अमेरिका के निकटस्थ ही माने जाते हैं। इस तरह से इस समूह में चीन के ख़िलाफ़ पारित होने वाले प्रस्तावों में भारत का शामिल रहना उसकी मजबूरी बनी रहेगी।

दूसरी तरफ़ चीन अपने राजनैयिको की लम्बी चौड़ी फ़ौज के साथ निरंतर अमेरिका विरोधी राष्ट्रों से सम्पर्क में रहकर उन्हें हर सम्भव सहायता पहुँचाकर अपने ख़ेमे में बनाये रखना चाह रहा है। इस महीने की शुरुआत में, जब अमेरिका ने घोषणा की थी कि वह इटली सहित कई यूरोपीय संघ के देशों के यात्रियों के लिए अपनी सीमाओं को बंद कर रहा है, तो चीन की सरकार ने घोषणा की , कि वह कोरोनो वायरस महामारी से जूझ रहे इन देशों में चिकित्सा दल और आपूर्ति भेजेगा। चीन ने ईरान और सर्बिया को भी मदद भेज अमेरिका की बादशाहत व दुनिया के रखवाले वाले तमग़े पर कई सवाल खड़े कर दिये।

ज़ाहिर है कि दुनिया के लिए यह अच्छा समय नहीं है और यह अमेरिका और चीन के बीच संबंधों के लिए भी अच्छा समय नहीं है। आज सम्पूर्ण विश्व के लिये बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि यह दोनों महाशक्तियाँ इस महामारी की आड़ में एक दूसरे पर प्रहारों को बंद कर मानवता पर मंडरा रहे ख़तरे से निपटने के लिये साझा प्रयास करे जिससे पूरे विश्व को खतरे से बचाया जा सके। (विदेश मामलों के जानकार, कारगिल – द हाइट्स ऑफ ब्रेवरी पुस्तक के लेखक)

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