भारत तो आज भी गांवों में बसता है। आदिवासी, ग्रामीण इलाकों तक कोविड टीके पहुंचाने का क्या अनुभव रहा?
शुरुआत में इसे लोगों ने शहरी बीमारी मान लिया। टीकाकरण भी शुरुआत में शहरी इलाकों में ज्यादा केंद्रित रहा। मई मध्य के बाद पूरी कोशिश की गई है कि टीकों को आदिवासी और सुदूर इलाकों तक प्राथमिकता से पहुंचाया जाए। अब कल के आंकड़े देख लीजिए। करीब 70 फीसदी टीके ग्रामीण क्षेत्र में ही लगे हैं। बहुत-सी भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, पर आम जनता बहुत समझदार है। अब हिचकिचाहट नहीं, स्वागत है। गांवों के टीका केंद्रों पर भी लोग उमड़ रहे हैं।
हिचकिचाहट तो शहरों में भी है… क्या लोगों को आश्वस्त किया जा सकता है कि सभी टीके पूरी तरह सुरक्षित हैं?
दुनिया में पहली बार वयस्कों का इतना बड़ा टीकाकरण हो रहा है। लोगों में अक्सर अनजानी चीज का भय होता है। वैसे ही टीके का है। दूसरी बात है कि उम्र बढऩे के साथ बीमारियों और मृत्यु की आशंका भी बढ़ती है। बहुत से लोग गंभीर बीमारियों या बहुत ज्यादा उम्र वालों को टीका लगवाने से डरते हैं, जबकि वैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि टीकों का सबसे ज्यादा लाभ ऐसे लोगों को ही है। यह इनकी कोविड से मृत्यु की आशंका को बहुत कम कर देता है। आज जब भारतीयों को 48 करोड़ खुराक लगाई जा चुकी हैं, सुरक्षा के बारे में शक-शुबहा गैर-जरूरी ही होगा।
जो अधिकतम साइड इफेक्ट हो सकते हैं, पारदर्शिता से बताने से क्या लोगों का विश्वास और नहीं बढ़ेगा?
बिल्कुल टीकाकरण में विश्वास बढ़ाने के लिए पारदर्शिता बहुत जरूरी है। इस पर पूरा जोर भी है। लगातार आंकड़े जारी किए जाते हैं। लोगों को बताया जाता है कि कुछ दुर्लभ मामलों में गंभीर साइड इफेक्ट भी हो सकता है। कुछ टीकों में खून का थक्का बनने या रिसाव होने की आशंका होती है। यूरोप में एक लाख में एक व्यक्ति को, लेकिन भारत में 10 लाख लोगों में एक से भी कम को यह आशंका है। लोगों को गंभीर एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है। शरीर पर चकते बन जाना, सांस में तकलीफ, ब्लड प्रेशर गिरना, बेहोशी आदि की भी आशंका हो सकती है। जून तक सिर्फ एक मामला है जिसमें एलर्जी की वजह से किसी की जान गई। जागरूकता से ऐसी समस्या होते ही व्यक्ति समाधान हासिल कर सकता है।
बच्चों को कब तक और कौन-से टीके लग सकेंगे?
भारत ने काफी प्रगति कर ली है। बहुत जल्दी जायडस कैडिला का डीएनए आधारित टीका आ रहा है, जिसका 12 से 17 साल की उम्र के बच्चों में परीक्षण पूरा हो चुका है। रेगुलेटर अगर मंजूरी दे देते हैं तो बच्चों का यह पहला उपलब्ध टीका होगा। कोवैक्सीन का 2 से 18 साल तक के बच्चों में ट्रायल चल रहा है, जो अक्टूबर तक पूरा हो जाएगा। दो और ट्रायल के नतीजे भी साल के अंत तक आ जाएंगे। दो बातें देखनी हैं- सुरक्षित हों और बच्चों को प्रतिरोधक क्षमता दें।
तो क्या स्कूल खोल देने चाहिए?
यूरोपीय देशों ने अपने प्राथमिक स्कूल बंद ही नहीं किए। बच्चों से फैले संक्रमण की वजह से शिक्षकों और घर के बड़ों की मृत्यु भी हुई, पर बच्चों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा। बच्चों के बौद्धिक क्षमता विकास के लिए स्कूल बहुत जरूरी हैं। स्कूल खोलने की प्रक्रिया पर विचार करना होगा। स्कूल शिक्षकों, कर्मचारियों और अभिभावकों को टीका लग जाए तो बच्चों में लगाने की उतनी जरूरत नहीं होगी। दिसंबर तक अधिकांश वयस्कों का टीकाकरण हो जाए तो अगले साल की पहली तिमाही में बच्चों का टीकाकरण शुरू किया जा सकता है।
जिन लोगों ने बारी-बारी दोनों डोज लगवाई, उन्हें भी कोरोना हो रहा है…
संक्रमण रोकने से मृत्यु रोकने तक टीकों का असर चार तरह से मापा जाता है। इसमें सबसे अहम है गंभीर बीमारी और मृत्यु को रोकना। दोनों डोज लेने के तय समय के बाद व्यक्ति इस स्थिति में होता है कि इन दोनों स्थिति को काफी हद तक टाल पाता है। दोबारा संक्रमण तो लगभग 2 से 10 प्रतिशत तक मामलों में हो सकता है।
दूसरी डोज किसी अन्य टीके की लगवाने को लेकर क्या सलाह देंगे?
शोध से प्रतिरोधक क्षमता बढऩे के साक्ष्य मिलने पर ही मिक्स और मैच की सलाह दी जा सकती है। पिछले हफ्ते रेगुलेटर ने इस पर अध्ययन की इजाजत दी है।
तीसरी लहर की आशंका का क्या अनुमान है व कैसे टाला जा सकता है?
पिछले दिनों बढ़े मामले दूसरी लहर की पूंछ भर है। अगले दो हफ्ते में स्थिति काफी हद तक संभल जाएगी। यह तीसरी लहर नहीं है। इसे भांपने के लिए इंसाकॉग के स्तर पर प्रयोगशालाओं के नेटवर्क को तैयार कर बेहतरीन जीनोमिक सर्विलांस की व्यवस्था की गई है। हाल में ऐसा कोई नया बदमाश वायरस नहीं मिला है जो तीसरी लहर का डर पैदा करे। तीसरी लहर जब भी आएगी, वह नए वेरिएंट की वजह से आएगी। हमें स्वास्थ्य सेवा का ढांचा मजबूत रखना होगा।
क्या छोटी क्लास के स्कूल पहले खोलने चाहिए?
बिल्कुल। पहले प्राथमिक कक्षाएं खुलें, क्योंकि उनके संपूर्ण विकास के लिए स्कूल की आवश्यकता सबसे ज्यादा है। फिर उनसे बड़े बच्चों को बुलाया जाए।
क्या बच्चों के लिए कोरोना का खतरा बढ़ गया है?
कोविड की दोनों लहर में हमने देखा कि इसका बच्चों पर ज्यादा गंभीर प्रभाव नहीं होता है। पिछले हफ्ते आए सीरो सर्वे में बच्चों में भी संक्रमण के उतने ही मामले मिले हैं जितने बड़ों में। लेकिन लक्षण पैदा होने, गंभीर बीमारी और मृत्यु की आशंका बच्चों में बहुत ही कम है। भारत में कोविड से हुई कुल मृत्यु में 0.3 प्रतिशत बच्चे थे। अब तक मिले लक्षण वाले मरीजों में 3त्न बच्चे थे। आने वाले समय में भी स्थिति बदलने की आशंका नहीं।
तीन हफ्ते के अंदर आएगा नया एप-
अब भी कुछ शिकायतें आती हैं कि साइड इफेक्ट होने पर कहां जाएं, कुछ पता नहीं चलता…
निगरानी व्यवस्था बढ़ाते हुए आम लोगों के उपयोग के लिए एक एप बनाया जा रहा है। यह आरोग्य सेतु एप में भी होगा और अलग से भी डाउनलोड किया जा सकेगा। जैसे ही टीकाकरण उपरांत कोई समस्या होती है आप इसमें दर्ज करेंगे और नजदीकी स्वास्थ्य कर्मी आपके घर आ कर आपकी मदद करेगा। यह पूरा डेटा जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर उपलब्ध होगा। अगले एक से तीन हफ्ते में यह आम लोगों के लिए उपलब्ध हो जाएगा। इसके अलावा 1075 हेल्पलाइन पर भी इसकी सूचना दी जा सकती है।