प्रसंगवश : कानून बनाने के मामले में भी जल्दबाजी क्यों?

अब राजस्थान सरकार को विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक वापस लेना पड़ रहा है। सरकार ने अपनी जिद पर अड़ते हुए पिछले महीने विधानसभा में विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक पारित करवाया, तब से विवाद कायम है।

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विधेयक पारित होने के तत्काल बाद जब उसे वापस लेने की नौबत आ जाए, तो यह बात साबित हो जाती है कि विधेयक तैयार करते समय पर्याप्त चिंतन-मनन नहीं किया गया। राजस्थान विधानसभा में पारित एक विधेयक इसका ताजा उदाहरण है। किसी पारित विधेयक पर पहली बार विवाद नहीं हुआ है। पिछले भाजपा शासन की घटना अब भी सभी को याद है। एक काला कानून बनाया गया था। इसके जरिए पत्रकारों को बांधने का प्रयास हुआ था। तब कांग्रेस विपक्ष में थी, जिसने विधानसभा में इस काले कानून का जमकर विरोध किया था। इसका सदन से सड़क तक विरोध हुआ। जब कोई विकल्प नहीं बचा, तो इसे वापस लेना पड़ा। ठीक ऐसी ही स्थिति वर्तमान में बन गई है। सरकार ने अपनी जिद पर अड़ते हुए पिछले महीने विधानसभा में विवाह का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक पारित करवाया, तब से विवाद कायम है।

विधेयक पर बहस के दौरान विपक्ष ने इसके विरोध में तर्क रखे थे। बाल विवाह का भी पंजीकरण संभव है, यह जान कर हर कोई किसी को हैरत हुई। सवाल उठा कि क्या इससे बाल विवाह को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा? बहस के बीच संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल अपनी कुर्सी से बार-बार उठ अधिकारियों की लॉबी तक चर्चा करते नजर आए। यदि सभी पहलुओं को अच्छी तरह से परख लिया होता, तो यह हालत नहीं होती। आखिर विधेयक का मसौदा तैयार करने वाले अधिकारियों को एक साधारण बात कैसे नहीं सूझी कि पंजीकरण किसी को वैध करने के लिए होता है, लेकिन जो अवैध हो, उसका पंजीकरण कैसे हो सकता है?

विधेयक पारित होने पर इस विसंगति की चर्चा राजस्थान तक ही सीमित नहीं रही। हर स्तर पर विरोध होता देख राज्यपाल कलराज मिश्र इस संशोधन विधेयक को वापस भेजने की तैयारी में थे। आखिर सरकार को खुद ही इस विधेयक को राज्यपाल से वापस मांगना पड़ रहा है। अब सरकार को अपने बचाव में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देना पड़ रहा है। सवाल यह है कि क्या वाकई सुप्रीम कोर्ट के आदेश की यह भावना थी? क्या यह अधिकारियों की गंभीर चूक नहीं है? सरकार को राजस्थान की जगहंसाई करवाने वाले ऐसे अधिकारियों को चिह्नित कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी ही चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराई जाए। (स.श.)

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