तुम भी राख से उठो!

कांग्रेस में जो संघर्ष चल रहा है, वह सत्ता का है, देश के बारे में नहीं है। अब तक गांधी परिवार का सारा जोर सत्ता को लेकर ही रहा।

– गुलाब कोठारी
कौनसा जहाज डूब रहा है? कांग्रेस का! एक:-जहाज में तेजी से पानी भर रहा है। कई बड़े-बड़े छेद (गड्ढे) हो गए हैं चारों ओर। दो:-नकारा, चापलूस, भ्रष्ट लोगों की भीड़ भरी है। आज के हालात में कोई संभावना नजर नहीं आती कि जहाज बच सकेगा। कांग्रेस में जो संघर्ष चल रहा है, वह सत्ता का है, देश के बारे में नहीं है। अब तक गांधी परिवार का सारा जोर सत्ता को लेकर ही रहा। इन्दिरा गांधी के बाद का सम्पूर्ण इतिहास गवाह है कि कांग्रेस के तथाकथित स्तम्भों ने पुरानी कमाई को ही खर्च किया है। नया कुछ कमाया ही नहीं।
इन्दिरा गांधी दृढ़ इच्छाशक्ति वाली नेत्री थी, फिर भी कांग्रेसी नेताओं में संघर्ष का साहस था। तब भी वैचारिक मतभेद होते थे। उस पर विभाजन भी हुए। आज कांग्रेस में क्या रह गया? देश की दृष्टि से केवल भाषणबाज, अंग्रेजीदां सफेदपोश नेताओं का जमघट। कितने चुनाव हुए पिछले महीनों में? कौन-कौन नेता गए चुनाव प्रचार में? सब कोरोना के नाम पर घरों में दुबके पड़े थे। मतदाता से उम्मीद थी कि वह बिना डरे कांग्रेस के पक्ष में मतदान कर दे। वाह रे नेतृत्व! सन् 1971 के युद्ध में स्वयं इन्दिरा गांधी ने एटीसी में बैठकर जनरल अरोड़ा को ढाका के लिए कूच कर जाने का आदेश दिया था। मुझे पता है कि तब मेरी यूनिट में (अग्रिम मोर्चे पर) क्या जश्न मनाया गया था।
आज सब भीरू हो गए। नए खून को संघर्ष ही नहीं आता। पुराना, आज काम का ही नहीं रहा। तब कौन बचा? प्रयोग के तौर पर राहुल गांधी रह गए घर में। उन्होंने भी कांग्रेस को दो फाड़ करके देख लिया। सब जगह राहुल भी फेल, उनकी युवा बिग्रेड के लगभग सभी सैनिक शहीद बराबर हैं। आज तो कांग्रेस में कट्टर कार्यकर्ताओं के बस अवशेष बचे हैं। जो हैं, उनमें भी अधिकांशत: निजी स्वार्थों के कारण गांधी परिवार का जय-जयकार करने वाले हैं। कांग्रेस को किसी साइज की छलनी से छानकर देख लें। राष्ट्रीय मुद्दों या जनजीवन के हालात पर बात करने वाला कोई भी नहीं मिलेगा। सब केवल कांग्रेस की चिन्ता में डूबते जान पड़ रहे हैं आज। अब तक तो सोनिया गांधी भी चिन्तित नहीं दिखाई दे रही थीं। उनको सिंहासन पर राहुल दिखाई दे रहा था। इस ट्रायल में कांग्रेस आज इतनी नीचे गिरती जा रही है कि इसको भी मोहन भागवत जैसा नेता तलाश करना पड़ेगा। जो यह कह सके कि ‘कांग्रेस को राख से खड़े होना आता है।’
कांग्रेस की कमजोरी विदेशी विरासत है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक कांग्रेस ने विकसित देशों की तर्ज पर राज किया है। वैसा ही संविधान, कानून, कार्यप्रणाली और कार्यपालिका। कांग्रेसी नेताओं ने भारतीय संस्कृति को जीने में रुचि नहीं दिखाई। इसी का परिणाम है कि नई पीढ़ी के नेताओं को देश की जीवनशैली और परम्पराओं/मान्यताओं की जानकारी ही नहीं। वे विदेशी शासक की श्रेणी के दिखाई पड़ते हैं। उनकी स्वयं की जीवनशैली और दृष्टिकोण इसका स्वयं प्रमाण है। तब कैसे वे पुरानी कांग्रेस का स्थान लेकर खड़े हो सकेंगे?
कांग्रेस को बहुत पहले यह अनुमान हो गया था कि संस्था कमजोर होने लगी है। जिस प्रकार राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई, सोनिया गांधी पर भी प्रधानमंत्री बनने का दबाव डाला गया, आज राहुल को भी अध्यक्ष बनाए रखने की मुहिम, प्रियंका को राजनीति में आगे रखने के प्रयास क्या प्रकट करते हैं-पुराने कांग्रेसियों से पूछकर देखो। सत्ता का मोह ही कांग्रेस को खाए जा रहा है।
कांग्रेस को आज भी इस बात का अनुभव नहीं लगता कि पं. नेहरू ने जिस राष्ट्रीय अखण्डता की शपथ ली थी, कांग्रेस ने उसे, सत्ता के जाने के डर से, खण्ड-खण्ड करके रख दिया। वोटों की राजनीति के कारण अल्पसंख्यकों को मुख्यधारा से अलग कर दिया। कांग्रेस से अलग ममता और मुलायम ने इन्हीं पत्तों को हथियार बनाया। वीपी सिंह ने आरक्षण के नाम पर शेष हिन्दुओं को आधा-आधा बांट दिया। आज एक देश में तीन देश, आपसी शत्रुता के बीच, जी रहे हैं। क्या कांग्रेस ने गांवों में इसका प्रभाव देखा है-नई पीढ़ी पर? देख नहीं पाएगी।
नई टीम है ही नहीं। वंशजों की फौज किसी भी दल को अथवा नागरिकों को निहाल नहीं करने वाली। प्रशिक्षण बन्द है। जिन 23 नेताओं ने अध्यक्ष बदलने का पत्र लिखा है, उनका भी अन्दरूनी रिकॉर्ड देखा जाना चाहिए। अचानक उनको ऐसा कौनसा झटका लगा। उन्होंने स्वयं राष्ट्र को क्या योगदान दिया? क्या वे इस बात से चिन्तित दिखाई देते हैं कि कांग्रेस डूबी तो देश का लोकतंत्र डूब जाएगा? अथवा अपने को पुन: सत्ता में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं?
केवल केन्द्रीय समितियां बना देना इस समस्या का समाधान नहीं है। कांग्रेस को पुनर्जीवित करना ही पड़ेगा। विकल्प नहीं है। देश के लोकतंत्र की आजादी का सपना फिर से देखना पड़ेगा। धन बटोरने का काम भूखों-नंगो का होता है। देशहित का संकल्प करना पड़ेगा। गांधी परिवार को स्वेच्छा से सही अपने अधिकारों का समर्पण कर देना चाहिए। इसके लिए अलग नेता अनुभवी, राष्ट्रीय स्तर का गंभीर चिन्तक और ईमानदार होना भी आवश्यक है जो नई टीम तैयार कर सके। कुछ पुराने पापियों से भी छुटकारा पाना होगा।
कांग्रेस ही लोकतंत्र है। विपक्ष का अर्थ ही लोकतंत्र है। अगले चुनाव तक भी समय है। अभी भी पुनर्निर्माण हो सकता है। कांग्रेस के मरने का किसी को अफसोस नहीं होगा। लेकिन लोकतंत्र के जाते ही बाहरी शक्तियां झपटने लग जाएंगी। लोकतंत्र की कमान अभी तो सोनिया गांधी के हाथ में है। आजादी की दूसरी लड़ाई से कम नहीं है।
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