नीति नवाचार : जलवायु पर असर हमारी विकास नीतियों से दूर क्यों

climate change : प्रकृति इशारा कर रही है कि हमें पर्यावरण को लेकर आज और अभी गंभीर होना पड़ेगा।प्रकृति के व्यवहार को समझते हुए उसके अनुसार ही चलने में हमारा भला संभव है। हमें समझना होगा, हमें प्रकृति के साथ चलना है न कि प्रकृति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चलाना है।

<p>नीति नवाचार : जलवायु पर असर हमारी विकास नीतियों से दूर क्यों</p>

अनिल प्रकाश जोशी

(लेखक पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित पर्यावरणविद हैं)

संयुक्त राष्ट्र United Nations के जलवायु परिवर्तन climate change पर अंतरसरकारी पैनल (आइपीसीसी, यूएन) की 2021 की रिपोर्ट बहुत ज्यादा चौंकाने वाली अपने देश के संदर्भ में इसलिए नहीं कही जा सकती, क्योंकि यहां होने वाली तमाम जलवायु परिवर्तन वाली घटनाएं पहले ही इस तरह का इशारा कर चुकी हैं। फिर भी यह रिपोर्ट इस बात का खुलासा करती है कि आने वाले समय में देश-दुनिया के हालात किस कदर बिगडऩे वाले हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार अभी अगर हमने तत्काल बड़े कदम कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों greenhouse gases के उत्सर्जन को रोकने के लिए नहीं उठाए तो आने वाले समय में पृथ्वी का तापक्रम इस हद तक बढ़ जाएगा, जो जीवन को दूभर कर देगा। 1850-1900 के दौरान जो तापक्रम था, उसकी तुलना में बीते एक दशक में तापक्रम औसतन 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है, लेकन यही हालात रहे तो बहुत जल्द 0.4 डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ जाएगा और इसके दुष्परिणाम हीटवेव और अति गर्मी, अतिवृष्टि, लंबे गर्म दिन और छोटी सर्दियों के रूप में सामने आएंगे।

सबसे बड़ा खतरा समुद्री जलस्तर बढऩे का होगा। यों तो बीते एक दशक से ही पूरी दुनिया में बदलती परिस्थितियों का असर देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया या छोटे से छोटे देश जो कि समुद्र के किनारे हैं, जलवायु परिवर्तन के उस असर को साफ तौर पर झेल रहे हैं, जिसको हम गंभीरता से अपनी विकास से जुड़ी नीतियों के अंतर्गत नहीं लाना चाहते हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सभी देशों से अपील की है कि तत्काल हमें ‘जीरो इमिशन’ की तरफ बढ़ जाना चाहिए। उनका यह खास अनुरोध पहले ‘जी20’ देशों से है, जहां इस संबंध में शुरुआती निर्णय लिए जा सकते हैं और फिर ग्लासगो में होने वाली ‘सीओपी26’ से। इससे पहले गुटेरेस तमाम भागीदार देशों से यही अनुरोध करना चाहते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर तत्काल प्रभावी नियंत्रण की दरकार है। यह बात बड़ी साफ-सी है कि पिछले एक-दो दशकों में उत्तरी अक्षांश के देशों, खास तौर से ग्रीनलैंड, अंटार्कटिका आदि, ने जलवायु परिवर्तन को बड़े रूप में झेला है। अभी अंटार्कटिका में ग्लेशियर का एक बड़ा हिस्सा टूटा, जो इसी की ओर बड़ा संकेत कर रहा है कि हम पृथ्वी के तापक्रम नियंत्रण में विफल रहे हैं।

आज तक कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप) की 25 बैठकें और कई तरह के निर्णयों के बावजूद हम जहां के तहां खड़े हैं। अब दुनिया भर में समुद्र जलस्तर ३ से 4 मिलीमीटर प्रति वर्ष के हिसाब से उठता चला जा रहा है। सच यह भी है कि जो पहले 100 सालों में हुआ, वह अब प्रतिवर्ष होगा। यह भय आइपीसीसी ने स्पष्ट कर दिया है।

कितनी अजीब-सी बात है कि हम इन तमाम घटनाओं को देखते हुए भी कई तरह के नियमों और निर्णयों से दूर हैं। आइपीसीसी की रपट से इतर पिछले एक दशक से लगातार बदलता मौसम और प्रकृति, इशारा कर रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है। यदि सब कुछ ठीक होना है तो हमें आज और अभी गंभीर होना पड़ेगा। प्रकृति के व्यवहार को समझते हुए उसके अनुसार ही चलने में हमारा भला संभव है। हमेंसमझना होगा, हमें प्रकृति के साथ चलना है न कि प्रकृति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार चलाना है।

अभी हिमालय में होने वाली अतिवृष्टियों के तमाम दुष्परिणाम सामने हैं। इतना ही नहीं, अन्य क्षेत्रों में बाढ़ का आना, भूमिगत जल का लापता हो जाना यह सब जलवायु परिवर्तन की ओर ही इशारा करता है। आज की हमारी नीतियां, सोच और वर्तमान विकास की शैली एक बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकती है। एंटोनियो गुटेरेस के अनुसार, अभी भी शायद हमारे पास समय है कि हम संभल जाएं, ताकि आने वाली पीढ़ी को एक सुंदर दुनिया दे सकें।

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