रिश्वत ही रिश्वत

हमारे प्रधानजी ने जब गद्दी संभाली थी तो उन्होंने सीना तान कर कहा था न
खाऊंगा, न खाने दूंगा। लेकिन तीन बरस बाद यह तो तय हो गया कि न खाने देना
उनके बस की बात नहीं। सरकारी तंत्र में रिश्वतखोरी बाकायदा बेहिसाब चल रही
है

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