लॉकडाउन में पशुओं पर दया भाव रखें

प्रधानमंत्री ने भी संकट के इस काल में बेघर जानवरों का खयाल रखने को कहा है। इसलिए दया भाव रखें।

<p>लॉकडाउन में पशुओं पर दया भाव रखें</p>

मेनका संजय गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री

जैसे ही लाॅक डाउन के पहले चरण की घोषणा हुई, मैंने तुरंत ही देश भर के पशु सेवकों के साथ अपना फोन नम्बर साझा किया। मुझे लगा था कि शायद कुछ ही संगठन सम्पर्क करेंगे। लेकिन हजारों फोन आए। ये फोन करने वाले लोग वे थे-जिन्हें पशुओं को खाना खिलाने के लिए पास की जरूरत थी, जिन लोगों को पशुओं को खाना खिलाते हुए पुलिस को सफाई देनी पड़ी और वे जिन्हें रहवासी कल्याण संगठनों(आरडब्लूए) का सामना करना पड़ा। अब मैं देश भर में पशुओं के लिए काम करने वाले लोगों को पहचानती हूं, बस अब अगला कदम उन्हें उनके ही राज्यों में नीति निर्धारकों के रूप में संगठित करना। झारखंड और तेलंगाना के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को छोड़ कर मेरी सारे राज्यों के मुख्यमंत्री से बातचीत हुई और वे सभी लाॅकडाउन अवधि में पशुओं के खान-पान संबंधी चिंताओं से सहमत थे।

उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने तुरंत घोषणा की कि पशुओं के दाना-पानी की व्यवस्था के लिए राज्य की नगरपालिकाओं और नगर निगमों को फंड दिया जाएगा। प्रत्येक राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों एसएचओ, डीसीपी से लेकर कमिश्नर तक सबका सहयोग हमें मिला। वे छोटी से छोटी समस्या को बड़े ध्यान से सुनते और सहयोग करते। दिल्ली , मुंबई और बंगलौर पुलिस कमिश्नर का सहयोग उल्लेखनीय रहा। उन्होंने पशु सेवकों की मदद की।

हरियाणा का उल्लेख करना जरूरी है,जहां पशु उत्पीड़न के मामले सबसे कम सामने आए। मैं गुड़गांव नगरपालिका आयुक्त और हरियाणा के मुख्यमंत्री का भी धन्यवाद करना चाहूंगी कि उन्होंने व्यावहारिक स्तर पर हमारा सहयोग किया। दूसरी ओर, अहमदाबाद, हैदराबाद और ठाणे में पुलिस पशुसेवकों को सहयोग नहीं कर रही थी। झारखंड में पास होने के बावजूद सादा वर्दी में रहने वाले पुलिसकर्मी वसूली करने पर उतर आए। वे पास धारकों से पैसा न मिलने तक उनहें गिरफ्तार करने की धमकी देते रहते थे। एक बार मुझे ऐसे मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। दिल्ली के एसएचओ रात को गश्त के दौरान पशु प्रेमी महिलाओं को पकड़ कर थाने ले जाते और रात 12 बजे या उसके बाद तक बिठाए रख कर उनसे बातें करते। अनुशासनात्मक कार्रवाई की जगह यह अशिष्टतापूर्ण व्यवहार था। मैंने इस संबंध में तीन बार शिकायत की तब जाकर यह सिलसिला थमा।

पशु सेवा में हमें जिला कलक्टरों का भी भरपूर सहयोग मिला। समस्याओं के निदान के उनके तरीकों से स्पष्ट हो गया कि प्रशासनिक नेतृत्व कुशल हो तो सब संभव है। चंडीगढ़ में पास सुविधा को लेकर थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। प्रभारी ने वहां प्रत्येक आवेदक को दो घंटे प्रतिदिन की अनुमति दी लेकिन उन पर हर रोज वहां से गुजरने का दबाव डाला, जिससे कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा था। स्थानीय पशु चिकित्सालय एसपीसीए भी बिना किसी वजह बंद था। ऐसे मुश्किल वक्त में मोहाली, दायलान, पंचकुला प्रमुख ने तुरंत मदद की। उन्होंने स्थानीय लोगों और एनजीओ संगठनों की सहायता ली। उन्हांेने पशु चिकित्सकों की सहायता लेकर बीमार एवं दुर्घटना में घायल पशुओं का घटनास्थल पर ही इलाज किया।

इस संदर्भ में तमिलनाडु का विशेष उल्लेख करना होगा, जहां मुझे सबसे कम हस्तक्षेप करना पड़ा। उद्योगपति, होटल और पशु समूह सब एक साथ मिल कर पशु सेवा और उन्हें खाना खिलाने के कार्य में ‘ब्लू क्राॅस’ के रूप में सामने आए। जिंदल यूनिवर्सिटी के 600 छात्र पशु कल्याण क्लब में शामिल हुए। पूना में मुझे सबसे ज्यादा मुश्किलें सामने आईं, जबकि वहां पशुओं को खाना खिलाने वाले लोग 2000 से ज्यादा थे। बंगलौर में पशुओं को खाना खिलाने वाले आपसी विवाद में उलझ गए और ठाणे मीरा रोड पर लोगों ने पशु सेवकों के पास ले लिए और उनका दुरूप्योग किया।

अपने कार्य में मुझे मीडिया और रहवासी कल्याण संगठनों की ओर से भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। एक चैनल पर कुछ गलत या झूठी अफवाह दिखाई जाती और मैं दखल देकर उसे रूकवाती तो दूसरे चैनल पर वही दिखाना शुरू कर दिया जाता। एक चैनल ने कोलकाता ने बिल्लियों को लगातार निशाना बनाया। इसके चलते हजारों बिल्लियों के साथ बुरा बर्ताव किया गया और इनमें से कई बिल्लियों की मृत्यु भी हो गई। मीडिया ने तब तक इस मुद्दे को उठाना बंद नहीं किया जब तक कि डाॅक्टरों ने इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया। भारत के सामुदायिक दवा प्रभारी डाॅ.सी.के पांडव, एम्स के डाॅ.गुलेरिया और सभी वेटरिननरी यूनिवर्सिटी के प्रमुख चिकित्सकों ने हस्तक्षेप कर मामले में लोगों को सच्चाई से अवगत करवाया।

क न्यूज चैनल ने कुत्तों को वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया, जबकि अभी तक एक भी कुत्ते या बिल्ली में कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि नहीं की गई। लेकिन पशुओं से नफरत करने वाले निस्संदेह इस संकट काल में सहयोग करेंगे। बंगलौर के एक स्थानीय चैनल और प्रिंट मीडिया ने भी ऐसी खबरें दिखाई थीं। मीडिया ऐसा क्यों कर रही है? कोविद-19 के अलावा कोई और खबर न दिखा कर टीआरपी बटोरने के लिए ये चैनल केवल भय का माहौल पैदा कर रहे हैं। कल को हो सकता है ये चैनल कह दें कि चींटीयों और काॅकरोच से भी वायरस फैल सकता है!
काॅलोनियों में आम तौर पर सेवानिवृत्त लोगों की अध्यक्षता में बने आरडब्लूए संगठनों ने तो देश भर मे ही निराश किया। बिना किसी कानूनी आधार के बने ये संगठन तो खत्म ही कर देने चाहिए। ये अपने समुदाय में पशुओं को खाना खिलाने वाले लोगों को दूसरों की आपत्ति से नहीं बचा पाए। लोगों को सड़क पर पालतू जानवरों को घुमाने से रोका, फेसबुक कम्युनिटी पर इन लोगों के खिलाफ गुस्सा उतारना, लोगों के घर में घुस कर उन्हें वहां से चले जाने का नोटिस देना, वैध पास होने के बावजूद लोगों को पशुओं को खाना खिलाने से रोकने के लिए काॅलोनी के सुरक्षा गार्ड से गेट बंद करवा देना। इनके हौंसले तब और बुलन्द हो जाते हैं, जब पालतू पशुओं की मालकिन एकल महिला हो। देश भर में तीसरे विश्व युद्ध के हालात हैं।

मुझे रोजाना 50 से ज्यादा मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ता। कानून का हवाला देने पर ही बात बनती थी लेकिन इन सबके दौरान काफी नफरत देखने को मिली, जो तकलीफदेह है। यह ऐसा वक्त है, जब हमें सर्वाधिक शांत और उदार रहने की जरूरत है। हमें इस बात पर गौर करना होगा कि इन क्षेत्रों में चुनाव कौन लड़ता है,क्योंकि यहां क्षेत्रीय नेता का चुनाव सांसद या विधायक के चुनावों से अधिक महत्वपूर्ण है। अब हम दूसरे चरण में प्रवेश कर रहे हैं। पास की मांग भी अब खत्म सी हो गई है। अब मैं प्रतिदिन 20 से कम( प्रतिदिन 500 के मुकाबले) पास की ही मांग करूंगी। परन्तु आरडब्लूए संगठनों की क्रूरता बढ़ती ही जा रही है। वे नाखुश रहने और लड़ने के बहाने ढूंढते रहते हैं। योग करने, ताश खेलने, पढने में व्यस्त रहो, टीवी मत देखो, पक्षियों और पशुओं को खाना खिलाओ और सबसे बढ़ कर दयालु बनो। प्रधानमंत्री ने भी संकट के इस काल में बेघर जानवरों का खयाल रखने को कहा है। इसलिए दया भाव रखें।

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