जम्मू-कश्मीर के उरी में भारतीय सैन्य कैंप में आतंकी हमले में हमारे जवानों की शहादत के बाद समूचे देश में लोगों का गुस्सा उबाल पर है। ये प्रतिक्रिया स्वाभाविक भी है। गुस्से के अतिरेक में लोग एक ही बात कहते नजर आते हैं कि पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया जाना चाहिए। लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं अपनी जगह हैं। यह बात सही भी है कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाना चाहिए। यह सबक भी माकूल होना चाहिए ताकि वह फिर कभी ऐसा दुस्साहस नहीं कर सके। लेकिन जवाब देते समय हमें यह भी सावचेती रखनी होगी कि पहले से ही सुलग रहे कश्मीर में हालात और न बिगड़ जाएं और हमारा अपना खतरा नहीं बढ़े। अलगाववादियों को और मौका देने का यह वक्तनहीं है। ऐसे में हो सकता है कि कुछ लोग इस पक्ष के हों कि पाकिस्तान पर हमला कर दिया जाना चाहिए। उसकी सैन्य चौकियों को नेस्तनाबूद कर आतंकियों के ठिकानों की तलाश कर उनको भी नष्ट किया जाना चाहिए। सारे उपाय जनभावना के अनुरूप तो हो सकते हैं, लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि युद्ध ही किसी राजनीतिक समस्या का समाधान नहीं है। यह हथियार तो तब काम में लेना होगा जब दूसरे सारे रास्ते बंद होते दिखेें। मेरा मानना है कि पाकिस्तान को जवाब देने के लिए हमें सोच-समझकर कदम उठाना होगा। इसका बेहतर उपाय उसको कूटनीतिक जवाब देना ही हो सकता है। सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि हमें तत्काल पाािकस्तान से अपने कूटनीतिक और आर्थिक सम्बन्ध समाप्त कर लेने चाहिए। पाकिस्तान में स्थित भारतीय उच्चायोग को बंद कर भारत से पाकिस्तान के राजनयिकों को वापस भेज देना चाहिए। पाकिस्तान के साथ जितनी भी तरह का व्यापारिक आदान-प्रदान होता है उसको भी तत्काल बंद कर हम अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं।मैं समझता हूं कि दोनों देशों के उच्चायोगों के न रहने से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। वर्ष 1971 में बांग्लादेश के मामले पर हुए युद्ध के बाद भी लम्बे समय तक दोनों देशों के उच्चायोग बंद रहे थे। लेकिन राजनयिक सम्बन्ध समाप्त कर हम पाकिस्तान के असली चेहरे को शेष दुनिया के सामने ला सकते हैं। यह बात भी सही है कि ऐसे माहौल में पाकिस्तान से किसी भी किस्म की बातचीत संभव नहीं है और न ही हमें बातचीत का प्रयास करना चाहिए। दुश्मन देश पर गोलाबोरी करने के बजाए उसको आर्थिक रूप से पंगु करने का काम होना चाहिए। भारत के पास इसके कई रास्ते हैं। आर्थिक चोट पहुंचाकर किसी भी देश का युद्ध से ज्यादा नुकसान किया जा सकता है।सवाल इस बात का नहीं है कि युद्ध नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि वक्त की मांग यही है कि युद्ध किसी समस्या का आखिरी समाधान नहीं है। यह बात सही है कि युद्ध की नौबत आई तो पाकिस्तान हमारे सामने काफी कमजोर साबित होने वाला है। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि परमाणु बम दोनों देशों के पास है और युद्ध के उन्माद में पाकिस्तान जैसा देश इसका इस्तेमाल कर बैठे तो जानमाल का काफी नुकसान हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय पाकिस्तान की हरकतों से अच्छी तरह वाकिफ हो चुका है। इसलिए यह बेहतर मौका है जब हम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने का काम करें। पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने के लिए हमें संयुक्त राष्ट्र के आगामी अधिवेशन में अपनी बात मजबूती से रखनी होगी। यहां तक कि अमरीका, चीन, रूस व ब्रिटेन सरीखे देशों को पाकिस्तान की करतूतें बतानी होगी और उन पर दबाव बनाना होगा कि वे पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करने में पहल करें। रूस ने पाकिस्तान से संयुक्त सैन्याभ्यास न करने व उसे हेलीकॉप्टर की आपूर्ति रोकने का फैसला किया है।यह स्वागत योग्य है लेकिन पाकिस्तान के मददगार बने अमरीका पर सबसे ज्यादा दबाव डालने की जरूरत है। इस बात का दबाव कि वह पाकिस्तान को बाध्य करें कि अपने यहां आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर बंद करें। पाकिस्तान में पनाह पाने वाले आतंकी गुटों के सरगनाओं को भारत को सौंपे अथवा उनको जेलों में बंद करें तथा भविष्य में भारत के आंतरिक मामलों में दखल देना बंद करें। रूस की अंतरराष्ट्रीय जगत में अब भूमिका सिमट गई है।ऐसे में अमरीका के बाद चीन ही ऐसा देश है जो पाकिस्तान को दबाव में ला सकता है। लेकिन भारत के साथ चीन के सम्बन्ध कोई खास बेहतर नहीं है। ऐसे में उससे कोई उम्मीद रखना व्यर्थ होगा। वैसे भी शक्ति संतुलन के लिहाज से चीन सदैव पाक का ही साथ देता रहा है। हमें यह भी देखना होगा कि अमरीका दुनिया के हर देशों तक घुसा हुआ है। अभी पाकिस्तान की हरकतों का विरोध वह जानबूझ कर नहीं कर रहा। यही वजह है कि आतंकवाद से लडऩे के नाम पर वह पाकिस्तान को लगातार हथियार व रक्षा उपकरणों की सहायता देता रहा है। मेरा मानना है कि अमरीका की अब पाकिस्तान पर दबाव बनाने में अहम भूमिका रहेगी। ऐसा भी नहीं है कि अमरीका पाकिस्तान की करतूतों से बेखबर है। जब चौतरफा दबाव पडऩे लगेगा तो पाकिस्तान खुद-बखुद पस्त हो जाएगा।