आत्म-दर्शन : उत्तम तप क्या है ?

सवाल यह है कि उत्तम तप को कैसे अपनाएं? अपने मन को प्रसन्न रखें, सौम्य भाव रखें, पवित्रता को अपने हृदय में विकसित करें, इन्द्रियों का निग्रह करें, विषयों की आसक्ति को नियंत्रित करें,

मुनि प्रमाण सागर
आसक्ति से विरक्ति, अशांति से शांति की ओर प्रस्थान का नाम ही उत्तम तप है। तपस्या को कर्म की निर्जरा का साधन कहा गया है। उत्तम तप के तीन प्रकार हैं-

1. व्रत करना, त्याग करना, उपवास करना तपस्या करना आदि ये सब शारीरिक तप हैं।
2. वाचिक तप मतलब वाक-संयम, अर्थात कोई अपशब्द बोले तो उस समय मौन रख लें।

3. मानसिक तप मन में समता, प्रतिकूल प्रसंगों को समता से सहना।

सवाल यह है कि उत्तम तप को कैसे अपनाएं? अपने मन को प्रसन्न रखें, सौम्य भाव रखें, पवित्रता को अपने हृदय में विकसित करें, इन्द्रियों का निग्रह करें, विषयों की आसक्ति को नियंत्रित करें,

इच्छाओं का शमन करें; ये सब तपस्या है। अगर ऐसी तपस्या हम सबके जीवन में प्रकट हो जाए, तो कोई समस्या शेष नहीं रहेगी और जीवन का उद्धार होगा।

(मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज दिगंबर जैन साधु हैं। मुनि प्रमासागरजी हिंदी, संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेजी भाषाओं के एक प्रसिद्ध विद्वान हैं। उन्होंने जैन धर्म और जैन दर्शन पर कई ग्रंथों की रचना की हैं.)

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