हालांकि सभी धर्म एक अंदरूनी मार्ग के रूप में शुरू हुए, लेकिन वे समय के साथ विकृत होते चले गए और उन्होंने धीरे-धीरे कोरी मान्यताओं और विश्वासों का रूप ले लिया, जो लोगों के अनुभव में नहीं थे। इसके चलते समाज में टकराव बढ़ा। योग विज्ञान विश्वास पर नहीं, खुद के अनुभवों पर आधारित है। योग का मुख्य उद्देश्य हमेशा से धर्म को विश्वास के रूप में खोजने की बजाय आंतरिक-अनुभव के तौर पर खोजने का रहा है। योग मार्ग में अपने भीतर देखना अहम है।
योग के जरिए एक इंसान अपने उच्चतम स्वरूप, ईश्वर या चैतन्य या इसे आप जो भी कहना चाहें, तक पहुंच सकता है, विकास कर सकता है। ऐसा वह अपने शरीर, मन, भावनाओं या आंतरिक-ऊर्जाओं के जरिए कर सकता है। केवल यही चार हकीकत आप जानते हैं। बाकी दूसरी हर चीज आपकी कल्पना होती है या सिखाई गई होती है। योग का सार यही है कि ‘मैं खुद को बदलने के लिए तैयार हूं।’ यह दुनिया को बदलने के लिए नहीं है। दुनिया में असली बदलाव तभी आएगा, जब आप खुद को बदलने के लिए तैयार हों। अगर आप बदलने के लिए तैयार हैं, केवल तभी रूपांतरण होगा।