आज की बात, क्या देश की बुनियादी समस्याओं की अनदेखी हो रही है?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

<p>आज की बात, क्या देश की बुनियादी समस्याओं की अनदेखी हो रही है?</p>
बुनियादी समस्याओं की तरफ ध्यान ही नहीं
आजकल पक्ष और विपक्ष के नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने में ही लगे रहते हैं। वे व्यक्तिगत आक्षेप लगाकर अपने आपको बड़ा नेता मानते हैं। धर्म और जाति के आधार पर टिप्पणियां की जाती हैं। देश की बुनियादी समस्याओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं र्है। आजादी के सात दशक बाद भी बिजली, पानी, सड़क जैसी सामान्य सुविधाओं के लिए देश की बड़ी आबादी तरस रही है। आज भी देश के कई गांवों में ठीक-ठाक सड़क तक नहीं है। कई गांवों में बिजली बराबर नहीं मिलती। कई शहरों में लंबी बिजली कटौती होती है। पानी के लिए आम जन ट्यूब वेल पर ज्यादा निर्भर है, क्योंकि उनके पास नल कनेक्शन नहीं है, कनेक्शन है तो पानी नहीं आता।
–डॉ. किशोर कुमार पाहुजा, उदयपुर
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योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं
आजादी को 70 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, पर अब भी देश बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है। सड़क बनती है, पर गुणवत्ता वाली नहीं। आज भी कई गांव पानी की कमी से जूझ रहे हैं। शिक्षा के लिए जो विद्यालय बने हैं, वहां भी शिक्षक नहीं। शिक्षा, सड़क, पानी, बिजली जैसी सुविधाएं हर जगह उपलब्ध कराने के लिए एक मजबूत ढांचे की जरूरत है। योजनाएंं बनती तो बहुत हंै, पर उनका सही क्रियान्वयन नहीं होता।
-नटेश्वर कमलेश, चांदामेटा, मध्यप्रदेश
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युवा मांगे रोजगार
देश में भय और भूख का माहौल है। देश के नौजवानों के सामने रोजगार की समस्या है, किसानों के सामने कृषि उत्पाद के उचित मूल्य की समस्या है। पूरे देश मे अराजकता की स्थिति बनी हुई है। बजाय इन समस्याओं को सुलझाने के केंद्र सरकार या राज्य सरकारें लोगों का ध्यान भटकाने वाले मुद्दों को तूल देती रहती हैं। यह चिंताजनक स्थिति है।
-अशोक कुमार शर्मा जयपुर
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आर्थिक विषमता बढ़ी
राज्य सरकारों व केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह लोगों को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, पानी, बिजली, सुरक्षा, न्याय सुलभ कराने की जिम्मेदारी निभाए। मगर वे अपना दायित्व निभाने में असहाय लग रही हैं और बेरोजगारी, आर्थिक विषमता की चौड़ी होती खाई चुनौती बनी हुई है। लोगों को समस्याओं से रूबरू होना पड़ रहा है। गरीब और गरीब व अमीर और अमीर होने का सिलसिला जारी है।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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नेताओं को जनता की परवाह नहीं
सरकार बुनियादी समस्याओं की अनदेखी कर रही है। गरीबी, जातिवाद, बेरोजगारी,अशिक्षा जैसे समस्याओं पर ध्यान ही नहीं दिया जा र रहा। नेताओं का लक्ष्य सिर्फ चुनाव जीतकर सत्ता पर कब्जा करना ही रह गया है। उनको जनता की समस्याओं से लेना-देना नहीं है।
-खीवप्रकाश बोराणा, मेड़ता सिटी, नागौर
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शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार पर ध्यान दे सरकार
देश की बुनियादी समस्याओं की अनदेखी हो रही है। शासकीय चिकित्सालयों में चिकित्सकों एवं तकनीकी संसाधनों का अभाव है। अब भी शासकीय शालाओं में शिक्षकों का अभाव है। चिकित्सा, शिक्षा और रोजगार पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।
-भगवती प्रसाद गेहलोत, मंदसौर, मप्र
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राजनीति से नुकसान
बुनियादी समस्याएं हंै गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, निरक्षरता आदि। हालांकि सरकार ने जनता के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू कर रखी हैं, लेकिन इनसे खास फायदा नहीं मिल रहा। राजनीति के चलते नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने में ही लगे रहते हैं। इससे देश को नुकसान झेलना पड़ सकता है।
-दीप्ति जैन, उदयपुर
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बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाए सरकार
हम बिल्कुल ऐसा तो नहीं कह सकते हंै कि समस्याओं की अनदेखी हो रही है, पर हां इनके समाधान की गति धीमी जरूर है। इसलिए सरकार के प्रति जनता में असंतोष नजर आता है। सरकार को हर क्षेत्र तक पानी, बिजली, शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं तो उपलब्ध करवानी ही चाहिए।
-सागर सिंह राव, सिरोही
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योजनाओं का सही क्रियान्वयन जरूरी
निश्चित रूप से देश की बुनियादी समस्याएं आज भी जस की तस हैं। यदि जन कल्याण के लिए बनाई गई सरकारी योजनाएं सही तरीके से क्रियान्वित की जाएं ,तो हालात बदल सकते हैं। लोगों को उत्तम चिकित्सा, शिक्षा, भोजन एवं रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए सरकारी योजना का सही तरीके से क्रियान्वयन आवश्यक है। ।
अमृतलाल आचार्य, नागौर
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राजनीति से नुकसान
देश की ज्वलंत समस्याओं जैसे बेरोजगारी, बदहाल चिकित्सा व्यवस्था, गरीबी, आर्थिक असमानता, जनाधिक्या आदि की अनदेखी हो रही है। वोट हासिल करने के चक्कर में कर्ज माफ करना और अन्य तरीकों से मुफ्त में तरह-तरह की सुविधाएं देने पर जोर दिया जा रहा है। इससे नुकसान ज्यादा हो रहा है। बेहतर तो यह है कि सरकार एवं सभी राजनीतिक दलों को देश की ज्वलंत समस्याओं का स्थायी हल खोजने पर ध्यान देना चाहिए। वोट बटोरने के लिए लोक-लुभावनी नीतियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
-कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर, चूरु
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