एपीजे अब्दुल कलाम जयंती: युवाओं का भविष्य नीतियों के केंद्र में, तो ही विकास

विजन 2030 का संकल्प हम अवश्य करें, जिसमें देश की युवा शक्ति देश की बुनियाद बन कर देश को प्रगति की ओर अग्रसर करे

 

<p>President of India Ranmath Kovind in jdohpur, Dr. APJ Abdul Kalam is also associated with Jodhpur</p>
जब राष्ट्रपति कलाम ने 1998 में वाई.एस. राजन के साथ विजन इंडिया 2020 लिखी, तो इस पुस्तक ने कई युवकों को प्रेरणा दी। ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी ने ऐसा स्वप्न आलेखित किया जिसमें हमारे जीवनकाल के अंतर्गत भारत पुन: एक समृद्ध राष्ट्र की ओर अग्रसर होता। कलाम ने गरीबी हटाओ की जगह गांव-गांव में समृद्धि बढ़ाओ का नारा दिया। किंतु आज कलाम का यह स्वप्न व्यंग्य की भांति सच हो रहा है।
कलाम ने यह स्वप्न देखा था कि भारत विश्व की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। आज यह सत्य हो रहा है। हमारी अर्थव्यवस्था अब केवल अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी से ही छोटी है। किंतु कलाम ने शायद ही ऐसा सोचा होगा कि विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में 35 करोड़ से अधिक जनता गरीब कहलाएगी (28%), करोड़ों बच्चे उचित शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाएंगे और करोड़ों स्त्रियों घर तक ही सीमित होंगी। विकास होगा – किंतु किस्मत पूंजीपतियों का साथ अधिक देगी, न कि युवकों, गरीबों या छोटे व्यापारियों का। अस्पतालों में आम जनता के लिए जगह हो या न हो, वीआइपी के लिए विशेष स्थान अवश्य होगा। विपदा आएगी तो जनता को आत्मनिर्भर होना होगा, क्योंकि सरकारी तंत्र पर नेता-अफसर ही निर्भर होंगे।

यह पूछना आवश्यक है कि ऐसी परिस्थिति में हम कैसे पहुंच गए? देश की आधी जनता की उम्र 28 से कम है। हर सरकार ने युवाओं के लिए कुछ नई योजनाएं अवश्य ही शुरू की हैं, किंतु कितनी सरकारों ने युवाओं और उनके भविष्य को अपनी नीति के केंद्र में रखा है। शंका यह है कि जो नेता करोड़ों की तादाद में नौकरियों का वायदा करते हैं, वे कई बार अर्थशास्त्र के सिद्धांतों को नहीं समझते। अर्थशास्त्र एक अहम शिक्षा है, जिसमें हमारे नेता और अफसर दक्ष नहीं।
मौर्य साम्राज्य का भी सृजन एक अर्थशास्त्री कौटिल्य ने ही किया। आज का युवा गिने-चुने सरकारी पदों के लिए प्रयत्न कर रहा है। नेता भी सरकारी नौकरी के वायदे कर रहे हैं, किंतु कुछ लाख सरकारी पद करोड़ों युवकों को रोजगार नहीं दे सकते। हां, कुछ ऐसी बुनियादी नौकरियां अवश्य हैं, जहां अवसर हैं। स्वास्थ्य सेवा में कई रोजगार हैं। जहां अपेक्षा होती है कि हर 1000 की आबादी में 2 से अधिक व्यक्ति डॉक्टर हो, भारत में यह संख्या लगभग एक तिहाई है। हिंदी प्रांत जैसे झारखंड में तो डॉक्टर न के बराबर हैं।
भारत की जीडीपी का बहुत छोटा भाग (1%) सार्वजनिक स्वास्थ्य पर केंद्रित है। यदि सरकार संकल्पित हो तो सही शिक्षा और निवेश से कई लाख स्वास्थ्य सेवा रोजगार सृजित हो सकते हैं – डॉक्टर, नर्स, फार्मेसी, स्वास्थ्य प्रशासन – जिनसे सबका भला होगा। स्वास्थ्य सेवा की ही भांति शिक्षा, पुलिस और दूसरी सामाजिक सेवाओं में लाखों रोजगार के अवसर हैं। ये अच्छे रोजगार हैं, जिनसे समाज और अर्थव्यवस्था दोनों सशक्त होंगे, ग्रामोद्योग को भी बल मिलेगा।
सामाजिक सेवाओं के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक और वाहन उत्पादन में कई अवसर हैं। किंतु हमने इलेक्ट्रॉनिक और वाहन दोनों पर इतने कर लगा रखे हैं कि इनकी घरेलू मांग कम हो जाती है। किंतु भारत में उत्पादन केंद्र धर्म व जातीय उन्माद से ग्रस्त प्रांतों में नहीं बनेंगे और न ही ऐसे स्थानों पर, जहां राजनीतिक, धार्मिक और जातीय पक्षपात अस्थिरता पैदा करता हो। निवेशक शांति और स्थिरता की इच्छा करते हैं, और रोजगार और विकास भी ऐसे ही स्थानों में होता है। दक्षिण भारत ने विकास के इस नुस्खे को बेहतर तरीके से जाना-समझा है।
आवश्यकता है, उचित आर्थिक, तथ्य आधारित सोच की। विजन 2020 न सही, तो कम से कम विजन 2030 का संकल्प हमें अवश्य करना चाहिए, जिसमें देश की युवा शक्ति देश की बुनियाद बन कर देश को प्रगति की ओर अग्रसर करे।

shailendra tiwari

राजनीति, देश-दुनिया, पॉलिसी प्लानिंग, ढांचागत विकास, साहित्य और लेखन में गहरी रुचि। पत्रकारिता में 20 साल से सक्रिय। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्य में काम किया। वर्तमान में भोपाल में पदस्थापित और स्पॉटलाइट एडिटर एवं डिजिटल हेड मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी।

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