‘ढोलां री मूमल चाले तो ले चालूं मरूधर देस…’

विश्व संगीत दिवस पर विशेष : नागौर के चुई निवासी हजारीलाल का परिवार मांड गायकी को दे रहा नई ऊंचाइयां

<p>Hazarilal&#8217;s family of Nagaur is giving new heights to Mand singing</p>
नागौर. राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में 10वीं व 11वीं शताब्दी में विकसित हुई मांड गायन शैली को नागौर के चुई गांव निवासी गायक हजारीलाल व उनक परिवार नई ऊंचाइयां प्रदान कर रहा है। अब तक कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हजारीलाल जब ‘केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारो देश…’ के सुरीले शब्द कानों में मिसरी घोलते हैं तो सुनने वाले वाह-वाह कह उठते हैं।
यूं तो बीकानेर की अल्लाह जिलाई बाई, पाली की गवरी देवी व मांगी बाई ने मांड गायकी को राजस्थानी लोक संगीत की पहचान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अब उनकी विरासत को हजारीलाल व उनके परिवार के गायक आधुनिक संगीत के बीच इस लोक गायन परम्परा को जीवित रख रहे हैं। मांड गायन शैली में गाया जाने वाला एक अन्य गीत ‘ढोलां री मूमल चाले तो ले चालूं मरूधर देस…’ जैसे गीत राजस्थानी संस्कृति का देश-विदेश में परिचय कराते हैं। आधुनिक संगीत के बीच मांड गायकी का अपना वजूद आज भी मौजूद है।
इस परिवार का हर सदस्य मांड गायकी का कलाकार है। 70 वर्षीय हजारीलाल ने बताया कि उसके पिता रणजीतलाल चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी करे, लेकिन उन्होंने 5वीं तक ही पढ़ाई कर स्कूल छोड़ दी और कलाकार बनने के लिए रवाना हो गए। उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ निवासी ओमप्रकाश चंचल से नाटक की शिक्षा ली तथा 15 वर्ष तक उनके साथ ही रहे। यहां आकर रियां निवासी पं. श्रीकिशन की पार्टी में काम किया और आज अपने भाई मुंशी खां, बद्रीखां, रूकनदीन, नानू खां, पुत्र हिदायत खां सहित बहनों को भी मांड गायकी का कलाकार बनाया। इनकी मां हीरा बाई तथा दादाजी मोमदीन भी लोकगीत गाते थे। हालांकि परिवार की आजीविका का सहारा आज भी खेती है, लेकिन वे देशभर में होने वाले कार्यक्रम में कला का प्रदर्शन करने जाते हैं।
मिले ये पुरस्कार
मांड गायकी के तहत हजारीलाल को गत एक जनवरी को ही दिल्ली में भारत गौरव अवार्ड फाउण्डेशन नई दिल्ली द्वारा भारत गौरव पुरस्कार दिया गया। वेस्ट जोन कल्चर सेंटर उदयपुर की ओर से 3 नवम्बर 2020 को पद्मश्री अल्ला जिल्हा बाई मांड गायकी प्रशिक्षण संस्थान बीकानेर में प्रस्तुति देने पर सम्मानित किया गया। 14 अगस्त 2019 को जोधपुर के पूर्व नरेश गजेसिंह द्वारा हजारी लाल को वीर दुर्गादास अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसी प्रकार राजस्थानी लोक गीत गाने पर राजस्थान रत्नाकर दिल्ली की ओर से 51 हजार रुपए का पुरस्कार मिला था। हजारी लाल को वेस्ट जोन कल्चर सेंटर उदयपुर की ओर से गुरु शिष्य परपंरा के तहत चार बच्चों को मांड गायकी सिखाने के लिए चुना गया।
रजवाड़ों के समय काफी लोकप्रिय थी
गेट को मारवाड़ी में मांडा बोलते हैं। शादी विवाह में दूल्हा जब दूल्हन के घर पहली बार आता है तो इस अवसर पर गाने वाले गीत को ही मांड कहा जाता है। वहीं कुछ अन्य इतिहासकार की माने तो महाराजा जसवंत सिंह, महाराजा विजय सिंह, अजीत सिंह व महराजा मानसिंह जैसे राजाओं ने मांड गायकों को काफी बढ़ावा दिया। महल में दर्जनों संगीतयज्ञी भी गाया करती थी, जिन्हें गायक या गायणी कहते थे। जैसलमेर इलाके को मांड कहा जाता है। ऐसे में वहां के नाम से भी इस शैली को जोड़ा जाता है। मांड गायकी की संस्कृति रजवाड़ों के समय में काफी लोकप्रिय थी। आज भी राजस्थान के शाही परिवारों में होने वाले उत्सवों, शादियों आदि में मांड गायकी ही होती ही है, जिसमें ऐतिहासिक गाथाओं को गायक बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है।
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