डायरेक्शन : माजिद मजीदी
स्टोरी : माजिद मजीदी
स्क्रीनप्ले: माजिद, मेहरान काशानी
डायलॉग्स : विशाल भारद्वाज
जोनर : ड्रामा
म्यूजिक : ए. आर. रहमान
एडिटिंग : हसन हसनदूस्त सिनेमैटोग्राफी : अनिल मेहता
रेटिंग : 2.5 स्टार
रनिंग टाइम : 122.55 मिनट
स्टार कास्ट : ईशान खट्टर, मालविका मोहनन, गौतम घोष, जी वी शारदा, ध्वनि राजेश, तनिष्ठा चटर्जी, शशांक शिंदे
स्टोरी : माजिद मजीदी
स्क्रीनप्ले: माजिद, मेहरान काशानी
डायलॉग्स : विशाल भारद्वाज
जोनर : ड्रामा
म्यूजिक : ए. आर. रहमान
एडिटिंग : हसन हसनदूस्त सिनेमैटोग्राफी : अनिल मेहता
रेटिंग : 2.5 स्टार
रनिंग टाइम : 122.55 मिनट
स्टार कास्ट : ईशान खट्टर, मालविका मोहनन, गौतम घोष, जी वी शारदा, ध्वनि राजेश, तनिष्ठा चटर्जी, शशांक शिंदे
ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी का नाम वर्ल्ड सिनेमा में रियलिस्टिक फिल्मों के लिए एक खास मुकाम रखता है। ‘फादर’, ‘चिल्ड्रन ऑफ हैवन’, ‘मुहम्मद’ सरीखी फिल्में बनाने वाले माजिद ने अब हिन्दी फिल्म ‘बियॉन्ड द क्लाउड्स’ बनाई है, जो मुंबई के स्लम एरिया में रहने वाले भाई-बहन के रिश्ते की गहराई को दिखाती है। फिल्म से शाहिद कपूर के भाई ईशान खट्टर और दक्षिण भारतीय फिल्मों की अभिनेत्री मालविका मोहनन ने बॉलीवुड डेब्यू किया है। मूवी मास्टरपीस तो नहीं है, लेकिन कुछ मायनों में काफी प्रभावित करती है।
स्क्रिप्ट:
कहानी आमिर (ईशान) और उसकी बहन तारा (मालविका) के इर्द-गिर्द घूमती है। मां-बाप की मौत के बाद आमिर तारा के घर रहता है, लेकिन तारा का शराबी पति नशे में दोनों भाई-बहन को पीटता है। इससे तंग आकर 13 साल की उम्र में आमिर तारा का घर छोड़कर चला जाता है। आमिर बड़ा आदमी बनना चाहता है। पैसे कमाने के चक्कर में वह ड्रग्स सप्लाई का काम ? करने लगता है, वहीं तारा भी पति का घर छोड़कर धोबी घाट पर काम करती है। नसीब एक बार फिर दोनों भाई-बहन को मिला देता है। दरअसल, आमिर के पीछे पुलिस पड़ी है और वह बचकर भागते हुए वहीं पहुंच जाता है, जहां उसकी बहन काम करती है। इस बीच दोनों भाई-बहन की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आ चुके हैं। धोबी घाट पर अधेड़ उम्र का अक्षी (गौतम घोष) तारा पर बुरी नजर रखता है। एक दिन जब अक्षी तारा से जबरदस्ती करने लगता है तो वह बचाव में पत्थर से उसे मारती है। जानलेवा हमला करने के जुर्म में तारा को जेल भेज दिया जाता है, वहीं गंभीर घायल अक्षी को अस्पताल। यहीं से कहानी में नया ट्विस्ट आता है।
कहानी आमिर (ईशान) और उसकी बहन तारा (मालविका) के इर्द-गिर्द घूमती है। मां-बाप की मौत के बाद आमिर तारा के घर रहता है, लेकिन तारा का शराबी पति नशे में दोनों भाई-बहन को पीटता है। इससे तंग आकर 13 साल की उम्र में आमिर तारा का घर छोड़कर चला जाता है। आमिर बड़ा आदमी बनना चाहता है। पैसे कमाने के चक्कर में वह ड्रग्स सप्लाई का काम ? करने लगता है, वहीं तारा भी पति का घर छोड़कर धोबी घाट पर काम करती है। नसीब एक बार फिर दोनों भाई-बहन को मिला देता है। दरअसल, आमिर के पीछे पुलिस पड़ी है और वह बचकर भागते हुए वहीं पहुंच जाता है, जहां उसकी बहन काम करती है। इस बीच दोनों भाई-बहन की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आ चुके हैं। धोबी घाट पर अधेड़ उम्र का अक्षी (गौतम घोष) तारा पर बुरी नजर रखता है। एक दिन जब अक्षी तारा से जबरदस्ती करने लगता है तो वह बचाव में पत्थर से उसे मारती है। जानलेवा हमला करने के जुर्म में तारा को जेल भेज दिया जाता है, वहीं गंभीर घायल अक्षी को अस्पताल। यहीं से कहानी में नया ट्विस्ट आता है।
एक्टिंग:
ईशान पहली ही फिल्म में अपने एक्टिंग टैलेंट से इम्प्रेस करने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने किरदार को अच्छी तरह समझ कर जीने की कोशिश की है। हर दृश्य में वह अलग छाप छोड़ते नजर आए हैं। उनके हाव-भाव सीन की सिचुएशन के मुताबिक परफेक्ट लगे हैं। मालविका ने भी सशक्त ढंग से अपनी भूमिका निभाई है। तनिष्ठा चटर्जी के हिस्से करने को ज्यादा कुछ नहीं है। गौतम घोष, जी वी शारदा और शशांक शिंदे अपने कैरेक्टर में फिट हैं।
ईशान पहली ही फिल्म में अपने एक्टिंग टैलेंट से इम्प्रेस करने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने किरदार को अच्छी तरह समझ कर जीने की कोशिश की है। हर दृश्य में वह अलग छाप छोड़ते नजर आए हैं। उनके हाव-भाव सीन की सिचुएशन के मुताबिक परफेक्ट लगे हैं। मालविका ने भी सशक्त ढंग से अपनी भूमिका निभाई है। तनिष्ठा चटर्जी के हिस्से करने को ज्यादा कुछ नहीं है। गौतम घोष, जी वी शारदा और शशांक शिंदे अपने कैरेक्टर में फिट हैं।
डायरेक्शन:
माजिद का कहानी कहने का अंदाज बेहतरीन है। दृश्यों का संयोजन भी खूबसूरत है। मुख्य किरदारों की जिंदगी के उतार-चढ़ाव को उन्होंने बखूबी दिखाया है, लेकिन ढीली स्क्रिप्ट और कई जगह तार्किकता की कमी फिल्म की रिदम बिगाड़ देती है।
पहला हाफ स्लो है। दूसरे हाफ में फिल्म को पेस मिलता है। ए. आर. रहमान का म्यूजिक बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। अनिल मेहता ने झुग्गी बस्तियों को शानदार ढंग से शूट किया है। वहीं हसन की एडिटिंग डीसेंट है।
माजिद का कहानी कहने का अंदाज बेहतरीन है। दृश्यों का संयोजन भी खूबसूरत है। मुख्य किरदारों की जिंदगी के उतार-चढ़ाव को उन्होंने बखूबी दिखाया है, लेकिन ढीली स्क्रिप्ट और कई जगह तार्किकता की कमी फिल्म की रिदम बिगाड़ देती है।
पहला हाफ स्लो है। दूसरे हाफ में फिल्म को पेस मिलता है। ए. आर. रहमान का म्यूजिक बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। अनिल मेहता ने झुग्गी बस्तियों को शानदार ढंग से शूट किया है। वहीं हसन की एडिटिंग डीसेंट है।
क्यों देखें:
माजिद का कहानी कहने का अंदाज बेहतरीन है। दृश्यों का संयोजन भी खूबसूरत है। मुख्य किरदारों की जिंदगी के उतार-चढ़ाव को उन्होंने बखूबी दिखाया है, लेकिन ढीली स्क्रिप्ट और कई जगह तार्किकता की कमी फिल्म की रिदम बिगाड़ देती है।
पहला हाफ स्लो है। दूसरे हाफ में फिल्म को पेस मिलता है। ए. आर. रहमान का म्यूजिक बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। अनिल मेहता ने झुग्गी बस्तियों को शानदार ढंग से शूट किया है। वहीं हसन की एडिटिंग डीसेंट है।
माजिद का कहानी कहने का अंदाज बेहतरीन है। दृश्यों का संयोजन भी खूबसूरत है। मुख्य किरदारों की जिंदगी के उतार-चढ़ाव को उन्होंने बखूबी दिखाया है, लेकिन ढीली स्क्रिप्ट और कई जगह तार्किकता की कमी फिल्म की रिदम बिगाड़ देती है।
पहला हाफ स्लो है। दूसरे हाफ में फिल्म को पेस मिलता है। ए. आर. रहमान का म्यूजिक बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। अनिल मेहता ने झुग्गी बस्तियों को शानदार ढंग से शूट किया है। वहीं हसन की एडिटिंग डीसेंट है।