खुदा हाफिज की कहानी लखनऊ के समीर चौधरी (विद्युत जामवाल) और नरगिस (शिवालीका ओबेराय) की है। दोनों ही मिडिल क्लास से ताल्लुक रखते हैं। दोनों शादी के बाद सेटल होने की कोशिश कर ही रहे होते हैं कि साल 2008 में मंदी आ जाती है। दोनों अपनी नौकरी गंवा बैठते हैं। ऐसे में दोनों विदेश में खुद के लिए नौकरी की तलाश करते हैं। जिसके बाद एक दगाबाज एजेंट झासा देकर नरगिस को नोमान भेज देता है। लेकिन यहां नगरिस सेक्स रैकेट और ह्यूमन ट्रेफिकिंग गैंग के बीच फंस जाती हैं। ऐसे में अपनी पत्नी को ढूंढने समीर चौधरी निकल पड़ता नोमान।
नोमान पहुंचकर समीर की मुलाकात अन्नू कपूर से होती है। जो वहां एक टैक्सी ड्राइवर का काम करते हैं। समीर नोमान पहुंच तो जाता है लेकिन वहां साजिशों के जाल में फंस जाता है। उसके बाद कैसे वह अपनी पत्नी नरगिस को बचाता है ये आपको फिल्म में देखने को मिलेगा।
फिल्म में विद्युत जामवाल की एक्टिंग और एक्शन सही काम तो करता है लेकिन लेखक- निर्देशक फारूक कहानी को लेकर कन्फ्यूजन में लगते हैं। आर्थिक मंदी के दौर में भारत से अरब देशों में लड़किया सप्लाई करने का मुद्दा एक अच्छे विषय के तौर पर सामने आ सकता था। लेकिन भारत से निकला समीर चौधरी जब ओमान पहुंचता है तो कहानी भी काल्पनिक होती जाती है। बात करें एक्टिंग की तो विद्युत जामवाल को जरूरत है अब कुछ नया करने की। क्योंकि एक्शन वो कई फिल्मों में कर चुके हैं अब दर्शक उनसे कुछ नया करने की उम्मीद कर रहे हैं। वैसे भी नेपोटिज्म का मुद्दा जब से गरमाया है तभी से लोग विद्युत की फिल्म का इंतजार कर रहे थे। लेकिन खुदा हाफिज की कहानी लोगों को निराश कर सकती है।
विद्युत के अलावा शिवालिका ओबेरॉय भी लीड रोल में हैं। लेकिन फिल्म में उन्हें कुछ खास करने का मौका नहीं दिया गया। टैक्सी ड्राइवर के रोल में अन्नू कपूर की एक्टिंग इम्प्रैस करती है। फिल्म देखने से पहले किसी संस्पेंस की उम्मीद न करें वरना आपके हाथ निराशा ही लगेगी।