world heritage day 2021: तांत्रिकों की यूनिवर्सिटी कहलाने वाले इस मंदिर की प्रतिकृति है भारत का संसद भवन

world heritage day : जमीन से 100 फीट ऊंचाई पर बने इस मंदिर का निर्माण करीब 1000 साल पहले हुआ था..इसे लोग तांत्रिकों की यूनिवर्सिटी भी कहते हैं…
 

मुरैना. भारत के संसद भवन को जिस मंदिर की प्रतिकृति माना जाता है उस मंदिर का नाम है चौंसठ योगिनी मंदिर। मुरैना जिले के से करीब 35 किलोमीटर दूर मितावली में बने चौंसठ योगिनी मंदिर को तांत्रिकों की यूनिवर्सिटी भी कहा जाता है। जमीन से करीब 100 फीट की ऊंचाई पर बना ये मंदिर गोलाकार है और इसमें 64 कमरे हैं जिनमें से हर कमरे में एक शिवलिंग स्थापित है और हर शिवलिंग के पास देवी योगिनी की प्रतिमाएं स्थित हैं इसलिए इसे चौंसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। इसे इकन्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

आज world heritage day पर patrika.com आपको बता रहा है एक ऐसे मंदिर के बारे में जो तांत्रिक को यूनिवर्सिटी कहलाता है और इसकी भारत के संसद भवन को इसकी प्रतिकृति माना जाता है।


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1323 ई. में हुआ था निर्माण
चौंसठ योगिनी माता मंदिर का निर्माण प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने 1323 ईस्वी में कराया था। मंदिर का निर्माण वृत्तीय क्षेत्र में किया गया है और इसमें 64 कमरे हैं। हर कमरे में एक शिवलिंग स्थापित किया गया था और शिवलिंग के पास देवी योगिनी की प्रतिमाएं भी स्थापित थीं। लेकिन देखरेख के अभाव में अब कई कमरों में रखे शिवलिंग और मूर्तियां या तो चोरी हो चुके हैं या फिर उन्हें खंडित कर दिया गया है और कुछ देश के विभिन्न संग्रहालयों में संरक्षित कर रख दी गई हैं। अद्भुत शिल्पकला का नमूना ये मंदिर 100 से ज्यादा खंभों पर टिका हुआ है। इस मंदिर को तांत्रिकों की यूनिवर्सिटी भी कहा जाता है। बताया जाता है कि एक साथ 64 शिवलिंग और एक मुख्य गर्भगृह वाला यह मंदिर अनोखा है। इसीलिए यहां तांत्रिक विद्या में विश्वास रखने वाले लोग सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना करते हैं। दशहरा, दीपावली सहित अन्य विशेष दिनों पर यहां तंत्र साधना की जाती है।


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इसी मंदिर की प्रतिकृति है संसद भवन
साल 1920 में बना भारत का संसद भवन मितावली के चौसठ योगिनी माता मंदिर की ही प्रतिकृति माना जाता है। दोनों की बनावट बिलकुल एक जैसी नजर आती है। आर्कियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित मितावली का गुप्तकालीन शिव मंदिर वैसे तो काफी अद्भुत है लेकिन ठीक ढंग से रखरखाव न होने और सरकारों व जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते ये मंदिर अब गुमनाम होता जा रहा है।

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