चीन इस कोशिश में है कि जो बाइडन के सत्ता संभालने के बाद अमरीका से संबंध सुधर जाएं, परंतु यह तभी संभव है जब अमरीका ट्रम्प सरकार की नीतियों को जारी न रखे, चीन का बर्ताव भुला दे और यह मान ले कि दोनों देशों के संबंध सामान्य हैं। अब यह तो बाइडन पर ही निर्भर है कि वे क्या रुख अपनाएंगे। कार्यकाल के अंतिम चरण में ट्रम्प प्रशासन ने चीन के आर्थिक मोर्चे पर हावी होने, जासूसी करने व मानवाधिकारों का दुरुपयोग पर गंभीर रुख अपनाया है। दूसरी ओर चीन, ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसी ही कोशिश में है। चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खनिज निर्यात उद्योगों से प्रतिबंध हटाने के ऐवज में कुछ शर्तें रखी हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया को ताइवान, हॉंन्गकॉंन्ग और उइगर मसले पर चुप रहना होगा। चीनी कंपनियों के लिए अपने दरवाजे खोलने होंगे और कोरोना के मौलिक स्रोत के बारे में स्वतंत्र जांच की मांग बंद करनी होगी।
बाइडन से महत्वपूर्ण मुद्दों पर सलाह लेते थे ओबामा
बाइडन को साफ करना होगा रुख
बाइडन पर भले ही चीन के साथ दोस्ती करने के लिए उसकी मांगें मानने का घरेलू दबाव हो लेकिन यह अमरीकियों के हित में नहीं होगा और बाइडन के चुनावी वादे पर भी प्रश्न चिह्न लगाएगा, जिसमें उन्होंने शी का मुकाबला करने की बात कही थी। बाइडन को जल्द ही स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे चीनी मांगों और घरेलू दबावों के आगे नहीं झुकेंगे। अगर वे ऐसा करते हैं तो दोनों देशों को नुकसान होगा। बाइडन को जल्द ही स्पष्ट कर देना चाहिए कि वे चीनी मांगों और घरेलू दबावों के आगे नहीं झुकेंगे। अगर वे ऐसा करते हैं तो वे दोनों देशों के बीच बिगड़े संबंधों के घाव को ऐसा नासूर बना देंगे जो दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक हित में नहीं है।