अमरीका के राष्ट्रपति का चुनाव इस बार काफी दिलचस्प है। पिछले 35 वर्षों से डॉक्टर के रूप में यूएसए में होने के कारण अमरीकी राजनीति अच्छी तरह से जानता हूं। डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन की बहस सुनने के बाद लगा कि एक अचेत है और दूसरा अडिय़ल।
ध्यान रहे कि हर उम्मीदवार के 2 सकारात्मक और 2 नकारात्मक अंक हैं। ट्रम्प एक खुली अर्थव्यवस्था चाहते हैं, जबकि बाइडेन लॉकडाउन चाहते हैं। ट्रम्प प्रो लाइफ हैं और बाइडेन प्रो चॉइस हैं। ट्रम्प बिजनेसमैन हैं, वहीं बाइडेन वाशिंगटन डीसी में राजनीतिज्ञ हैं। ट्रम्प जिद्दी हैं और बाइडेन ओबामा समर्थक हैं। कुल मिलाकर दुर्भाग्य से दोनों ही नस्लवादी हैं।
राजनीतिक अनुभव यह कहता है कि यहां शुरुआती मतदान और अनुपस्थित वोटों के कारण बाइडेन का पलड़ा ऊपर रह सकता है। ब्लैक और हिस्पैनिक वोट ट्रम्प को बाइडेन और व्हाइट्स में जाते हैं। भारतीय इस दौड़ के बीच में हैं। मोदी के अनुयायी रिपब्लिकन और अन्य डेमोक्रेट को वोट देंगे, क्योंकि कमला हैरिस की मां दक्षिण भारत से हैं, लेकिन उन्हें खुद को ब्लैक कहने में मजा आता है।
यहां अधिकतर भारतीय कैलिफोर्निया, न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी में रहते हैं। ट्रंप की ओर से भारत और चीन पर एच-1 और एल-1 वीजा का अस्थायी प्रतिबंध सिर्फ इस बात का विश्लेषण करने के लिए था कि यह काम अमरीकियों को पहले क्यों नहीं दिया जाता है, क्योंकि उनका मानना है कि कंपनियों को पहले अमरीकी नागरिकों को नौकरी देनी चाहिए और यदि नौकरियां पूरी नहीं होती है तो आप दूसरे देशों के उम्मीदवारों को बुला सकते हैं। दरअसल यह कई दशकों तक चलने वाला कानून है।
अहम बात यह है कि राजनीतिक लोकतंत्र में आपको जीतने के लिए वोटों की जरूरत होती है और आपको जो भी करने की जरूरत होती है, उसके लिए आप अपनी नैतिकता भूल जाते हैं। मतदाता यह बात भूल नहीं पा रहे हैं कि कोरोना वायरस काप्रसार रोकने के लिए ट्रंप का प्रयास धीमा रहा। उन्हें सभी देशों की सभी उड़ानें 2 महीने पहले ही रद्द कर देनी चाहिए थीं। दुख की बात यह है कि ट्रंप बाइडेन के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार नहीं हैं।
तमाम पहलुओं का आकलन और अध्ययन यह कहता है कि ट्रंप फिर से कुछ अंतर से जीतेंगे जैसा, उन्होंने 4 साल पहले किया था। तब हिलेरी क्लिंटन 3 मिलियन वोटों से जीती थीं, लेकिन वे कॉलेजिएट काउंटिंग के दौरान हार गई थीं, अलबत्ता बीएलएम (ब्लैक लाइफ मैटर्स) इस महामारी के आंदोलनों और हैंडलिंग से ट्रम्प को यह सीट मिल सकती है।
(डॉ.जितेंद्रसिंह सोढ़ी पेशे से फिजिशियन हैं और न्यूयॉर्क में रहते हैं।)
(डॉ.जितेंद्रसिंह सोढ़ी पेशे से फिजिशियन हैं और न्यूयॉर्क में रहते हैं।)