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जापान में स्कूली बच्चे खुद ले रहे अपनी जान, कहीं उन्हें कोरोना का डर तो नहीं सता रहा, जानिए क्या है पूरी बात

Highlights. – बीते साल कोरोनाकाल के दौरान से अब तक इसमें काफी तेजी आई है – विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश में हैं कि इसमेंं कोरोना की क्या भूमिका है – प्राइमरी, मिडिल और हायर सेकेंडरी के बच्चों में आत्महत्या की संख्या बढ़ी है
 

Feb 18, 2021 / 11:58 am

Ashutosh Pathak

नई दिल्ली।
जापान में इन दिनों काफी बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। बीते साल कोरोनाकाल के दौरान से अब तक इसमें काफी तेजी आई है। इसलिए विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश में लगे हैं कि अपनी जान लेने की विवशता में कोरोना महामारी की क्या और कितनी भूमिका है।
ऐसा भी नहीं है कि जापान में गरीबी है, रोजगार या अन्य दूसरी चिंताओं को लेकर लोग परेशान रहते हों, इसलिए अपनी जान खुद लेने की कोशिश कर रहे हैं। अगर ऐसा होता भी तो यह आत्महत्या की दर पहले भी करीब-करीब यही रहती, जितनी वर्ष 2020 यानी कोरोनाकाल से अब तक की है। बता दें कि जापान काफी संपन्न देश है। यहां के लोगों की औसत उम्र भी दूसरे देशों की अपेक्षा ज्यादा है।
दरअसल, बीते साल जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर से जूझ रही थी, तब जापान भी उससे अछूता नहीं था। लेकिन उसी समय जापान के स्कूल जाने वाले बच्चे आत्महत्या करने को भी मजबूर थे। यह उस वर्ष के आंकड़ों से स्पष्ट है और इसीलिए विशेषज्ञ चिंतित हैं, ऐसा क्या था, जिसने इन बच्चों को आत्महत्या करने के लिए विवश कर दिया।
स्कूली बच्चों की आत्महत्या चिंता का सबब
जापान के प्राइमरी, मिडिल और हायर सेकेंडरी में पढऩे वाले बच्चों में आत्महत्या की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वैसे एक बात और जो गौर करने वाली है वह यह कि जापान में आत्महत्या एक अहम मुद्दा रहा है। यहां बीते कई वर्षों से स्कूली बच्चों की आत्महत्या चिंता का सबब बनी हुई है। जापान के शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में 339 स्कूली बच्चों ने अपनी जान ली थी। इसके बाद वर्ष 2020 में यह आंकड़ा 479 तक पहुंच गया। इससे अब विशेषज्ञ तो हैरान हैं ही, यह मामला जांच में भी शामिल हो गया है कि कहीं इन बढ़ती आत्महत्याओं की वजह कोरोना महामारी तो नहीं।
आत्महत्या करने वालों में लड़किया अधिक
चौंकाने वाली बात यह है कि आत्महत्या करने वालों में लड़कियों की संख्या अधिक है और वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में यह दोगुनी होकर 138 तक पहुंच गई। इन हालातों में मंत्रालय जांच करा रहा है, जिससे स्पष्ट हो सके कि छात्र-छात्राओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढऩे की मूल वजह क्या हो सकती है। इसके अलावा हैरान करने वाली बात यह भी है कि आत्महत्या करने वालों में हायर सेेेकेंडरी के बच्चे ज्यादा है। वर्ष 2020 में प्राइमरी में 14 बच्चों ने आत्महत्या की, जबकि उससे पहले वर्ष 2019 में यह सिर्फ 6 थी। वहीं, मिडिल में वर्ष 2019 में 96 बच्चों ने आत्महत्या की, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 136 हो गया। इसके अलावा, हायर सेकेंडरी में वर्ष 2019 में यह आंकड़ा 237 था, जबकि वर्ष 2020 में यह 329 हो गया।

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