जरूर पढ़ेंः ममता बनर्जी ने कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों से की BJP के खिलाफ एकजुट होने की अपील ममता भरी चिट्ठी ममता ने बुधवार को वह चिट्ठी जारी की है जिसमें उन्होंने 15 गैर-भाजपा विपक्षी पार्टियों को से अपील की है कि वे विधानसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हो कर साझा रणनीति बना कर आगे बढ़ें। यह अपील उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के साथ साझेदारी में सरकार चला रहे एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को भी लिखी है। लेकिन विपक्षी एकता के लिए अहम भूमिका निभाने वाले चारों प्रमुख वाम दलों को इसमें शामिल नहीं किया है।
वाम और राम लंबे वाम शासन के दौरान सत्ता का जम कर उपयोग कर चुके वाम दलों के कार्यकर्ताओं में बहुत से तृणमूल में शामिल हो चुके हैं। बाकी ना सिर्फ राजनीतिक हाशिए पर हैं बल्कि तृणमूल का वार भी झेल रहे हैं। इन उपेक्षित और निराश वामपंथी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को साथ जोड़ने के लिए भाजपा ने रणनीतिक अभियान चलाया है। इनको लुभाने पार्टी ने कुछ इलाकों में कानाफूसी अभियान के तहत ‘2021 में राम और 2016 में वाम’ का नारा भी दिया है। ऐन चुनाव से पहले बहुत से वामपंथी कार्यकर्ता भाजपा ने शामिल भी हो रहे हैं।
मौसमी रह गई है विपक्षी एकता केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से कई बार अलग-अलग तरह से विपक्षी एकता की कोशिशें हुई हैं, लेकिन आपसी विरोधाभास की वजह से इनका दायरा सीमित ही रह जाता है। पिछले दिनों ही राज्य सभा में एनडीए का बहुमत नहीं होने के बावजूद सरकार दिल्ली सरकार बिल पास करवाने में कामयाब रही है। जबकि कुछ महीने पहले ही सोनिया गांधी की पहल पर 22 छोटी-बड़ी विपक्षी पार्टियों की वर्चुअल बैठक हुई थी जिसमें संसद में एकजुट रणनीति पर जोर दिया गया था।
जरूर पढ़ेंः West Bengal Assembly Elections 2021: दिलीप घोष ने दिए संकेत, भाजपा में कौन होगा नरम हिंदुत्व संग कैसे थमे मुस्लिम ध्रुवीकरण ममता के सामने एकदम नई चुनौती है। नरम हिंदुत्व का प्रदर्शन करते हुए लगभग 30 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं को जोड़े रखने की। ऐसे में वे अपना गोत्र बता रही हैं। नामांकन दाखिल करने से पहले नंदीग्राम में 19 मंदिरों पर माथा टेक रही हैं और भाजपा के जय श्री राम के मुकाबले बकायदा चंडी पाठ कर रही हैं। पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार बहुत से प्रतीकों को उन्होंने एकदम दूर कर दिया है। ना प्रचार में मुस्लिम परंपरागत कपड़ों में कोई तस्वीर इस्तेमाल हो रही है ना वे उर्दू के शब्दों का उपयोग कर रही हैं।
क्या फसल काटेंगे नए दावेदार इस बार ममता को भाजपा के हिंदुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश का जवाब देना है, तो मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण से भी निपटना है। यहां असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम उत्साह के साथ मैदान में है। हैदराबाद से बाहर पिछले साल के बिहार चुनाव में लालू यादव की मौजूदगी में भी यह पांच सीटों पर कामयाबी का स्वाद चख चुकी है। ऊपर से वाम दलों ने भी अब्बास सिद्दीकी के कट्टर आइएसएफ को साथ ले लिया है। भाजपा का दावा है कि मुस्लिम कट्टरपंथ को बढ़ावा देती रही ममता के लिए अब यही मुश्किल बनेगा। उनकी फसल भी कोई और काट ले जाएगा।