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West Bengal Assembly Elections 2021: वाम और राम के मुकाबले ममता का नया दांव

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिम वोट का बंटवारा रोकने के लिए चला राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता का दाव।

नई दिल्लीApr 01, 2021 / 12:13 am

अमित कुमार बाजपेयी

West Bengal Assembly Elections 2021: ममता बनर्जी बोलीं – ‘खेला होबे’, एक पांव से ही भाजपा को करूंगी बोल्ड

मुकेश केजरीवाल/कोलकाता। पश्चिम बंगाल में भाजपा जहां ‘वाम और राम’ का अनूठा नारा गढ़ कर सूबे में पहली जीत का दाव चल रही है वहीं सीएम ममता बनर्जी ने भी जवाबी पैतरा दे मारा है। राज्य की मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प पेश करने के लिए 15 गैर भाजपा विपक्षी पार्टियों से अपील कर दी है। दरअसल अपने गोत्र के ऐलान और चंडी पाठ वाले नरम हिंदुत्व के जरिए जहां ममता हिंदुओं का ध्रुवीकरण रोकने में जुटी हैं, वहीं दूसरे चरण के मतदान से ठीक पहले मुस्लिम मतों का बंटवारा रोकने के लिए यह पहल भी की है। 
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ममता भरी चिट्ठी

ममता ने बुधवार को वह चिट्ठी जारी की है जिसमें उन्होंने 15 गैर-भाजपा विपक्षी पार्टियों को से अपील की है कि वे विधानसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हो कर साझा रणनीति बना कर आगे बढ़ें। यह अपील उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के साथ साझेदारी में सरकार चला रहे एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को भी लिखी है। लेकिन विपक्षी एकता के लिए अहम भूमिका निभाने वाले चारों प्रमुख वाम दलों को इसमें शामिल नहीं किया है।
वाम और राम 

लंबे वाम शासन के दौरान सत्ता का जम कर उपयोग कर चुके वाम दलों के कार्यकर्ताओं में बहुत से तृणमूल में शामिल हो चुके हैं। बाकी ना सिर्फ राजनीतिक हाशिए पर हैं बल्कि तृणमूल का वार भी झेल रहे हैं। इन उपेक्षित और निराश वामपंथी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को साथ जोड़ने के लिए भाजपा ने रणनीतिक अभियान चलाया है। इनको लुभाने पार्टी ने कुछ इलाकों में कानाफूसी अभियान के तहत ‘2021 में राम और 2016 में वाम’ का नारा भी दिया है। ऐन चुनाव से पहले बहुत से वामपंथी कार्यकर्ता भाजपा ने शामिल भी हो रहे हैं।
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मौसमी रह गई है विपक्षी एकता

केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से कई बार अलग-अलग तरह से विपक्षी एकता की कोशिशें हुई हैं, लेकिन आपसी विरोधाभास की वजह से इनका दायरा सीमित ही रह जाता है। पिछले दिनों ही राज्य सभा में एनडीए का बहुमत नहीं होने के बावजूद सरकार दिल्ली सरकार बिल पास करवाने में कामयाब रही है। जबकि कुछ महीने पहले ही सोनिया गांधी की पहल पर 22 छोटी-बड़ी विपक्षी पार्टियों की वर्चुअल बैठक हुई थी जिसमें संसद में एकजुट रणनीति पर जोर दिया गया था।
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नरम हिंदुत्व संग कैसे थमे मुस्लिम ध्रुवीकरण

ममता के सामने एकदम नई चुनौती है। नरम हिंदुत्व का प्रदर्शन करते हुए लगभग 30 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं को जोड़े रखने की। ऐसे में वे अपना गोत्र बता रही हैं। नामांकन दाखिल करने से पहले नंदीग्राम में 19 मंदिरों पर माथा टेक रही हैं और भाजपा के जय श्री राम के मुकाबले बकायदा चंडी पाठ कर रही हैं। पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार बहुत से प्रतीकों को उन्होंने एकदम दूर कर दिया है। ना प्रचार में मुस्लिम परंपरागत कपड़ों में कोई तस्वीर इस्तेमाल हो रही है ना वे उर्दू के शब्दों का उपयोग कर रही हैं।
क्या फसल काटेंगे नए दावेदार

इस बार ममता को भाजपा के हिंदुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश का जवाब देना है, तो मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण से भी निपटना है। यहां असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम उत्साह के साथ मैदान में है। हैदराबाद से बाहर पिछले साल के बिहार चुनाव में लालू यादव की मौजूदगी में भी यह पांच सीटों पर कामयाबी का स्वाद चख चुकी है। ऊपर से वाम दलों ने भी अब्बास सिद्दीकी के कट्टर आइएसएफ को साथ ले लिया है। भाजपा का दावा है कि मुस्लिम कट्टरपंथ को बढ़ावा देती रही ममता के लिए अब यही मुश्किल बनेगा। उनकी फसल भी कोई और काट ले जाएगा।

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