युवाओं के दिमाग में चढ़ी बेरोजगारी, गनीमत है करवा रही सकारात्मक कार्य

पढ़-लिखकर भी नहीं मिला काम तो वे सडक़ों पर लगा रहे झाडू

<p>युवाओं के दिमाग में चढ़ी बेरोजगारी, गनीमत है करवा रही सकारात्मक कार्य</p>
किसान पिता ने जैसे-तैसे पूरी करावाई पढ़ाई
इसके बाद काफी प्रयासों पर भी नौकरी नहीं मिली तो बिगड़ी मोही के दो भाइयों की मानसिक स्थिति
प्रमोद भटनागर/गोविंद जीनगर
मोही. व्यक्ति इस मानस के साथ पढ़ाई करता है कि उसे नौकरी मिलेगी और आगे जाकर अच्छा भविष्य बनाएगा। लेकिन, जब अध्ययन पूरा करने के बाद भी रोजी के जुगाड़ में कोई ठौर नहीं मिले तो कई बार व्यक्ति की दिमागी स्थिति भी गड़बड़ा जाती है। कुछ इसी तरह की स्थिति कस्बे के एक परिवार में दो भाइयों की है। काम नहीं मिलने से उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया है, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने से उनका इलाज भी नहीं हो पा रहा है।
कस्बे में निवासरत किसान परसाराम पूॢबया (60) के दो पुत्रों में रतन ने बीएड एवं प्रकाश ने एमए कर रखी है। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों ने सरकारी से लेकर निजी संस्थानों तक नौकरी के लिए काफी हाथ-पैर मारे, लेकिन कहीं पर भी उनका काम नहीं बन पाया। ऐसे में दोनों कुछ महीनों तो गुमसुम हालत में ही रहते थे। इसके बाद वे कुछ अटपटी हरकतें करने लगे। वर्तमान में वे दोनों हर सुबह घर से अलग-अलग दिशा की ओर निकल पड़ते हैं। इसके बाद वे दिनभर इधर-उधर घूमते रहते हैं और शाम ढलने के बाद ही घर लौटते हैं। इसमें एक अच्छी बात यह जरूर है कि वे किसी को परेशान नहीं करते, बल्कि कस्बे में जहां कहीं गंदगी या कचरे का ढेर लगा दिखता है तो वे आसपास की दुकान से झाडू लेकर उसे साफ करने में लग जाते हैं। सफाई करके वे कूड़ा-करकट कचरा पात्रों में ही डालते हैं। बताया गया कि पिता किसान होने से उसकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं होने से वह अपने पुत्रों का उपचार भी नहीं करवा पा रहा है। इसको लेकर ग्रामीणों का कहना है कि अगर परिवार को भामाशाहों से मदद मिलती है तो ही दोनों भाइयों का उपचार हो पाएगा।
बड़े भाई का एक हाथ कटा
रतन पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी नहीं लगी तो गांव में ही एक मार्बल पर कार्य करने लगा। काम के दौरान मार्बल की कटाई करते समय उसका एक हाथ कट गया, जिसके बाद उसके हाथ से वह काम भी जाता रहा। इसके चलते उसे विकलांगता पेंशन जरूर मिलती है।
सरकारी सहायता नहीं
परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद उन्हें राशन की दुकान से गेहूं तक नहीं मिलता है। ऐसे में परिवार का गुजर-बसर चलाना भी काफी मुश्किल हो रहा है।
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