आंदोलन खत्म कराने को बेताब सरकार, जानिए वे 5 वजहें जिसने तीनों कानून डेढ़ साल तक स्थगित रखने का प्रस्ताव देने पर किया था मजबूर

Highlights. – सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कानून पर त्वरित रोक लगा दी, जिसकी सरकार को उम्मीद नहीं थी – संघ भी आंदोलन से खुश नहीं, पार्टी में भी विभाजन और गुटबाजी के मिल रहे संकेत – गणतंत्र दिवस पर टै्रक्टर रैली और 29 जनवरी से शुरू हो रहा बजट सत्र बढ़ा सकता है और मुसीबत

नई दिल्ली।
तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने पर अड़े कुछ किसान संगठन के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच आज 11वें दौर की वार्ता होनी है। इससे पहले, 10वें दौर की वार्ता गत बुधवार 20 जनवरी को हुई थी। इस दिन गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती भी थी। इस बैठक में सकारात्मक हल निकालने के लिए सरकार ने किसान नेताओं को प्रस्ताव दिया कि तीनों कृषि कानून अगले डेढ़ साल के लिए स्थगित कर दिए जाएंगे, किसान संगठन अपने आंदोलन को वापस ले लें।
हालांकि, किसान प्रतिनिधियों ने इस बारे में तुरंत कोई जवाब नहीं दिया और अगले दिन यानी 21 जनवरी को किसान संयुक्त मोर्चा के नेताओं से बात करने के बाद शुक्रवार यानी आज अपना पक्ष रखने की पेशकश की थी। मगर, सूत्रों की मानें तो किसान नेताओं की संयुक्त मोर्चा प्रतिनिधियों से हुई वार्ता किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची। इसमें सरकार के डेढ़ साल के कानून स्थगित करने के प्रस्ताव पर भी सहमति नहीं बनी।
अब शुक्रवार को होने वाली 11वें दौर की वार्ता का नतीजा क्या निकलेगा यह तो बैठक के बाद सामने आएगा, मगर बैठक से पहले सरकार निराश जरूर होगी। किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए बेताब दिख रही सरकार ने मजबूरी में ही सही मगर काफी सोच-समझकर डेढ़ साल तक तीनों कानून के स्थगन का प्रस्ताव दिया था। सरकार को उम्मीद थी कि उसका यह प्रस्ताव काम करेगा, लेकिन किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने इसे भी नकार कर यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि वह तीनों कानून के रद्द होने तक आंदोलन वापस लेने के मूड में नहीं दिख रही।
बहरहाल, अब हम आपको बता रहे हैं कि वे कौन से पांच कारण रहे, जिन्होंने सरकार को तीनों कृषि कानून को डेढ़ साल तक स्थगित रखने का प्रस्ताव देने पर मजबूर कर दिया।

1- केंद्र को सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश में आए निर्णय की उम्मीद नहीं थी
तीनों कृषि कानूनों और किसान आंदोलन से जुड़ी विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गत 12 जनवरी को अंतरिम आदेश जारी किया। यह आदेश था तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर रोक। सरकार को ऐसी उम्मीद नहीं थी। हालांकि, सरकार के लिए राहत की बात यह थी कि सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यीय एक विशेषज्ञ समिति गठित कर दी थी, जिसकी रिपोर्ट के बाद ही आगे का निर्णय होना है। मगर किसान प्रतिनिधि इस समिति और उसमें शामिल लोगों से खुश नहीं दिखे। उन्होंने सीधे तौर पर इस समिति से किसी भी तरह की वार्ता का विरोध किया।
2- संघ नेतृत्व का रुख स्पष्ट नहीं, मगर बयान अक्सर किसानों के पक्ष में दिए
सरकार के लिए निराशाजनक स्थिति संघ की ओर से भी उत्पन्न होती रही है। संघ के कुछ वरिष्ठ नेता प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसानों के समर्थन में बयान देते नजर आए। संघ के कुछ नेताओं ने तो सरकार पर किसानों के प्रति असंवेदनशील होने तक की बात भी कह दी, जबकि कुछ नेताओं ने सरकार को नसीहत दी कि वह अडिय़ल रवैये पर विचार करे और बीच का रास्ता निकालते हुए दोनों के हित में समाधान खोजने का प्रयास करे। ऐसे कई और बयानों से यह साफ संदेश दिया गया कि संघ किसानों से जुड़े इस पूरे घटनाक्रम से बिल्कुल खुश नहीं है और आंदोलन को जल्द से जल्द खत्म कराना चाहता है। यही नहीं, इन बयानों ने सरकार के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है। सरकार संघ को कभी नाराज नहीं करना चाहेगी।
3- इस मुद्दे पार्टी में तनाव, नेताओं में दो मत होने और गुटबाजी का खतरा
सूत्रों की मानें तो पार्टी में कई वरिष्ठ नेता भी तीनों कृषि कानून से खुश नहीं दिख रहे। यही स्थिति सरकार में भी है। खासकर, संघ पृष्ठभूमि के कई कद्दावर, मजबूत स्थिति और वरिष्ठ नेता अक्सर किसानों के पक्ष में खड़े दिखाई दिए। पार्टी के रणनीतिकार इसे खतरे के तौर पर भी आंक रहे हैं। उनका मानना है कि पार्टी में इस मुद्दे पर विभाजन की स्थिति देखने को मिल सकती है। साथ ही, यह पार्टी में गुटबाजी को भी बढ़ावा देगा, जो आने वाले चुनावों के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है।
4- 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली और इस पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
आंदोलन के बीच किसानों ने कई बार ट्रैक्टर रैली निकाली। मगर अब किसान 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में टैक्टर रैली निकालने पर अड़े हैं। सरकार इस कदम को कानून-व्यवस्था के लिहाज से सही नहीं मान रही। इसको लेकर उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की और अपना पक्ष रखा, लेकिन कोर्ट ने इस पर सीधे तौर पर हस्तक्षेप करने से मना कर दिया और गेंद यह कहते हुए सरकार और दिल्ली पुलिस के पाले में डाल दी कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना पुलिस का काम है और दिल्ली में कौन आएगा और कौन नहीं, यह दिल्ली पुलिस को ही तय करना होगा। गणतंत्र दिवस पर किसानों की रैली को जबरदस्ती रोककर सरकार खुद पर अलोकतांत्रिक और अराजक होने का ठप्पा नहीं लगवाना चाहती। सरकार को उम्मीद थी कि कोर्ट अगर इस मसले का हल निकाले तो रैली रोकने को लेकर उठाया गया कोई भी कदम संवैधानिक श्रेणी में आंका जाएगा और लोग कोर्ट पर सीधे सवाल खड़े नहीं करते।
5- 29 जनवरी से संसद का बजट सत्र विपक्ष को विरोध का एक मजबूत मौका देगा
सरकार के लिए अभी तक तीनों कृषि कानून का विरोध कर रहे किसान और उनका आंदोलन ही मुसीबत का सबब बना हुआ है। मगर संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू होना है और इसमें विपक्ष अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हुए सरकार को कई अन्य मोर्चो पर दबाना चाहेगा। सरकार को यह भी आशंका है कि पूरा बजट सत्र विरोध और स्थगन की भेंट चढ़ जाएगा। एनडीए में भी कई सहयोगी दल इस मुद्दे पर सरकार का खुलकर समर्थन नहीं कर रहे, जबकि पहले ही कई दल इस मुद्दे पर उसका साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में सरकार इस मुद्दे पर संसद में किसी तरह की शर्मिंदगी से बचना चाहती है। साथ ही, पिछला साल पूरी तरह कोरोना और लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया, जिससे देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। सरकार ठोस बजट पेश कर आम सहमति बनाना चाहती है, जिससे उस पर क्रियान्वयन कर देश को तरक्की के रास्ते पर लाया जा सके।
ये पांच प्रमुख वजहें ऐसी हैं, जो माना जा रहा है कि सरकार के लिए परेशानी का कारण बनी हुई हैं। इनसे निपटने के लिए सरकार आंदोलन को जल्द से जल्द खत्म कराने के लिए बेताब दिख रही है। ऐसे में सरकार और किसान संगठन से जुड़े प्रतिनिधियों की जो बैठकें पहले लंबे अंतराल पर हो रही थीं, अब वह दो से तीन के अंतराल पर आ गई हैं, जिससे हल जल्द से जल्द निकाला जा सके। इसी कड़ी में सरकार ने मजबूर होकर डेढ़ साल तक तीनों कृषि कानूनों के स्थगन का प्रस्ताव भी दिया, मगर यह भी काम नहीं आया। अब देखना होगा कि सरकार और किसान के बीच 11वें दौर की वार्ता का नतीजा क्या रहता है और आंदोलन किस फॉर्मूले से खत्म होगा। जीत सरकार की होगी या किसानों की, यह जानना आने वाले दिनों में बेहद दिलचस्प होगा।
Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.