कर्नाटक में कोरोना के साथ ‘बंदर बुखार’ की मार, अब तक 139 केस आए सामने

Coronavirus संकट के बीच Karnataka में Monkey Fever
अब तक सामने आई 139 केस
एक मौत की भी मिल रही जानकारी

<p>बंदर बुखार ने बढ़ाई चिंता</p>
नई दिल्ली। देशभर में कोरोना वायरस ( Coronavirus in india ) का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। देश में अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 6000 का आंकड़ा पार कर चुकी है, जबकि इस घातक वायरस के चलते करीब 200 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार ( Central Govt ) के साथ राज्य सरकारें भी इस जानलेवा खतरे से निपटने के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही हैं।
इन सबके बीच एक बड़ी खबर देश के दक्षिण राज्य से सामने आई है। दरअसल कर्नाटक ( Karnatka ) अभी कोरोना के खतरे से जूझ ही रहा था कि अब ‘बंदर बुखार’ ( Monkey Fever ) ने प्रदेश के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है।
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कर्नाटक में कोरोना वायरस के कहर अभी खत्म नहीं हुआ था कि अब राज्य के शिवमोग्गा जिले में केएफडी (कसानूर वन रोग) के मामले सामने आए हैं। अधिकारियों ने जानकारी देते हुए कहा कि राज्य में आए 139 मामले अब तक सामने आ चुके हैं। आपको बता दें कि इसे इसे ‘बंदर बुखार’ के नाम से भी जाना जाता है।
में से 130 लोग ठीक हो गए हैं।

शिवमोग्गा उपायुक्त केबी शिवकुमार के मुताबिक वैसे तो ये बीमारी लगभग हर वर्ष होती है, लेकिन इस वर्ष कोरोना वायरस के चलते चिंता थोड़ी ज्यादा है। क्योंकि इस लक्षणों में बुखार, बदन दर्द आदि शामिल होते हैं।
शिवकुमार ने बताया है कि हम लगातार इस समस्या से लड़ रहे हैं और काफी हद तक इस पर काबू भी पा लिया है।
इस साल हम शिवमोग्गा जिले में कायासनूर वन रोग (केएफडी) को सफलतापूर्वक शामिल करने में सक्षम रहे। हमारे पास 139 मामले थे, जिनमें से हमने ज्यादातर मामलों को काबू कर लिया है।

KFD के कारण यहां एक मौत भी हुई फिलहाल बाकी दो मौतों के परीक्षण का इंतजार किया जा रहा है। पिछले साल, बीमारी के प्रकोप ने 23 लोगों की जान ले ली थी। वहीं उस दौरान 400 से अधिक लोग संक्रमित भी हुए थे।
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ऐसे शुरू हुआ बंदर बुखार
बंदर बुखार या मंकी फीवर की कहानी यास्नुर फॉरेस्ट से शुरू हुई थी। इसलिए इसे यास्नुर फॉरेस्ट डिजीज भी कहते है। ये पहली बार 1957 में लोगों के सामने आया था।
अब तक सेंट्रल यूरोप, ईस्टर्न यूरोप और नॉर्थ एशिया में पाया गया है। भारत में ज्यादातर गोवा, कर्नाटक और केरल में देखा गया है। नीलगिरि और बांदीपुर नेशनल पार्क में भी कुछ केस देखे गए हैं।
ये वायरस अधिकतर नवम्बर से मार्च के महीने में एक्टिवेट होता है। इस बीमारी की चपेट में सबसे पहले बंदर आए थे। अचानक से कर्नाटक के यास्नुर जंगल में बंदरों की संख्या कम होने लगी। तो खोजबीन शुरू हुई, पता चला कि ये एक तरह का वायरस है जो केवल बंदरों को ही नुकसान पहुंचा रहा है।
जैसे ही कोई बंदर इसके संपर्क में आता है उसकी तबीयत खराब होने लगती है और एक समय के बाद वो मर जाता है।

ये वायरस फ्लाविवायरस के समुदाय का था। नाम था टिक। इससे होने वाली बीमारी को टिक बॉर्न एन्सेफलाइटिस (टीबीई) कहते हैं। डॉक्टरों को उसी वक्त अंदाजा हो गया था कि इंसान भी इसके चपेट में आने वाले हैं।
मनुष्यों के लिए संक्रमण एक टिक काटने या संक्रमित जानवर के संपर्क के बाद हो सकता है, सबसे महत्वपूर्ण रूप से एक बीमार या हाल ही में मृत बंदर से भी ये फैल सकता है।
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