NEET: विज्ञान की बुनियादी जानकारी नहीं, फिर भी ‘बबुआ’ बन सकते हैं डॉक्टर

एमबीबीएस में प्रवेश के लिए छात्र-छात्राओं को भौतिक विज्ञान में सिर्फ 5% और जीव विज्ञान में 20% लाने की जरूरत है।

नई दिल्ली। भले ही राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) में प्रवेश लेने वालो छात्र-छात्राओं के लिए यह एक अच्छी ख़बर हो लेकिन भविष्य में मेडिकल कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टर एक चिंता का विषय हैं। बीते दो सालों में एनईईटी में भौतिक विज्ञान में न्यूनतम 5 फीसदी, रसायन शास्त्र में 10 फीसदी और जीव विज्ञान में 20 फीसदी अंक लाने वाले उम्मीदवारों को भी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिला है। विज्ञान की न्यूनतम जानकारी का अभाव होने के बावजूद डॉक्टरी में दाखिला एनईईटी के अंतर्गत पर्सनटाइल प्रणाली द्वारा संभव हो सका है, जिसे इसलिए लागू किया गया था ताकि गैर-मेधावी छात्रों को बाहर किया जा सके.
2016 में प्रवेश के लिए उम्मीदवारों को थी 50 फीसदी अंकों की थी जरूरत
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में एनईईटी में प्रवेश के लिए जारी कट ऑफ लिस्ट में सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम 50 फीसदी अंक और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए 40 फीसदी अंक लाने अनिवार्य थे। लेकिन 2016 की प्रवेश परीक्षा में इसे 50 और 40 पर्सेंटाइल कर दिया गया। यानी एनईईटी में 18-20 फीसदी (पर्सेंट) अंक लाने वाले उम्मीदवारों के लिए भी मेडिकल कॉलेज के दरवाजे खुल गए.
आरक्षित वर्ग को 40 फीसदी अंकों की जरूरत
अगर बात करें 2015 के प्रवेश परीक्षा की कट-ऑफ की तो सामान्य श्रेणी में प्रवेश के लिए 50 फीसदी अंकों की आवश्यकता थी। इसलिए छात्रों को अधिकतम 720 अंकों में कम से कम 360 अंक लाना अनिवार्य था। लेकिन 2016 में इसके लिए केवल 50वें पर्सेंटाइल की जरूरत थी, जिसका मतलब था कि 720 में से केवल 145 अंक या सीधे शब्दों में केवल 20 फीसदी ही कुल अंक लाने थे। वहीं, आरक्षित वर्ग के लिए 40वें पर्सेंटाइल की जरूरत थी, जिसका मतलब 720 में से 118 या 16.3 फीसदी अंक ही लाना पर्याप्त था.
2017 में ये आंकड़े और गिर गए
फिर अंक के यह आंकड़े 2017 में और गिर गए। 2017 की प्रवेश परिक्षा के लिए सामान्य वर्ग को 131 अंक (18.3 फीसदी) और आरक्षित सीटों के छात्रों के लिए 107 अंक (14.8 फीसदी) तक लाने की अनिवार्यता रखी गई। बता दें कि अगले महीने आयोजित होने वाली इस साल की एनईईटी परीक्षा के लिए इसी कट-ऑफ को रखा गया है। यानी की प्रवेश परीक्षा में 20 फीसदी से कम अंक वाले छात्र को फिर से एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश मिल सकता है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि जो उम्मीदवार बचपन से लेकर एनईईटी प्रवेश परीक्षा तक न्यूनतम 33 फीसदी (तमाम स्कूल-कॉलेजों में अब 40 फीसदी) को पासिंग मार्क्स मानकर सफल होते आए हैं, उन्हें 20 फीसदी से भी कम अंकों में देश की प्रमुख प्रवेश परीक्षाओं में शामिल एनईईटी में दाखिला मिलना, भविष्य लिए गंभीर चिंता है. जब विज्ञान की न्यूनतम जानकारी न होने वाले उम्मीदवारों को मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल जाएगा, तो वे क्या पढ़ाई करेंगे और क्या इलाज करेंगे.
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