AAPSU : आखिर Environment Impact Assessment 2020 मसौदे से क्यों नहीं है खुश?

AAPSU ने MoEFCC के अधिकारियों से मिलकर EIA-2020 का मसौदे पर आपत्ति जताई।
EIA-2020 Draft के वर्तमान स्वरूप को Arunachal Pradesh सहित संपूर्ण पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विनाशकारी बताया।
AAPSU के मुताबिक EIA-2020 का मसौदा जनजातीय अधिकारों ( Tribal rights ) पर अंकुश लगाता है।

<p>AAPSU ने EIA-2020 Draft के वर्तमान स्वरूप को Arunachal Pradesh सहित संपूर्ण पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विनाशकारी बताया। </p>
नई दिल्ली। ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन ( AAPSU ) ने पर्यावरणीय प्रभाव आकलन 2020 मसौदा ( EIA -2020 Draft ) पर सख्त आपत्ति जताई है। इस मुद्दे पर AAPSU का एक प्रतिनिधिमंडल ( Delegation ) ने शुक्रवार को केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( MoEFCC ) के अधिकारियों से मिला। इस दौरान संघ के पदाधिकारियों ने कहा कि अगर EIA-2020 ड्राफ्ट के वर्तमान स्वरूप में मंजूरी दी जाती है तो यह न केवल अरुणाचल प्रदेश बल्कि संपूर्ण पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों के लिए यह विनाशकारी साबित होगा।
AAPSU के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश लंबे समय से भारत का कार्बन सिंक एरिया है। इसके बावजूद EIA-2020 Draft के वर्तमान स्वरूप पर अमल हुआ तो बड़े पैमाने पर पारिस्थितिक असंतुलन और विनाश के अलावा यह स्थानीय समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा साबित हो सकता है।
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संघ के नेताओं ने का कहना है कि यह मसौदा ईआईए पोस्ट फैक्टो को मंजूरी देने का प्रस्ताव करता है जो निश्चित रूप से उन परियोजनाओं के लिए अनुकूल होगा जो पहले से गैर कानूनी तरीके से इस क्षेत्र में चल रहे हैं। यह मसौदा पर्यावरणीय संतुलन ( Environmental balance ) को लेकर पहले से तय सुरक्षा मानकों ( Safety Norms ) को कमजोर करेगा।
AAPSU EIA-2020 का मसौदा जनजातीय अधिकारों पर अंकुश लगाता है। इसके उलट आपसू ने सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक परामर्श और जवाबदेही पर जोर दिया है।

यूनियन ने इस बात का भी विरोध किया कि MoEFCC सचिव की अध्यक्षता में EIA-2020 अधिसूचना मसौदा समिति को व्यक्तिगत रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी हितधारकों से मिलना चाहिए।
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केंद्र सरकार की विकास परियोजनाओं की तारीफ की

दूसरी तरफ केंद्र सरकार ( Central Government ) की विकासात्मक पहलों का स्वागत करते हुए AAPSU ने कहा कि विकास स्थायी होना चाहिए। इसके बाद उचित जवाबदेही होनी चाहिए। स्वदेशी हितधारकों की चिंताओं पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए और उन्हें संबोधित किया जाना चाहिए।
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