मेरठ। दिल्ली—एनसीआर में दौड़ने वाली आरआरटीएस यानी रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम में 50 फीसदी सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा। यानी रैपिड सौर ऊर्जा की मदद से रफ्तार भरेगी। इससे जहां पर्यावरण को राहत मिलेगी वहीं दमघोटने वाली हवा में सांस लेने वाले एनसीआर वासियों को भी राहत की सांस प्रदान करेगी। इसके लिए रैपिड कारिडोर के हर प्लेटफार्म पर सोलर पैनल लगाए जाएंगे। देश के इस पहले रैपिड रेल कारिडोर को हर स्तर से पर्यावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास हो रहा है। 82 किलोमीटर लंबे इस कारिडोर की शुरूआत दिल्ली के सराय काले खां से होकर और मेरठ के मोदीपुरम में समाप्त होगा।
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बता दें कि रैपिड के 82 किमी लंबे इस मार्ग में कुल 22 स्टेशन बनाए जाएंगे। ये यमुना नदी, हिंडन नदी, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस वे (ईपीई) को पार करेगी और दिल्ली, गाजियाबाद एवं मेरठ की घनी आबादी के बीच से भी गुजरेगी। पूरे कारिडोर पर परिचालन 2025 से शुरू होगा। एनसीआर परिवहन निगम ने इस कारिडोर पर नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल की योजना बनाई है। साथ ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के तमाम प्रभावों को कम करने के लिए सौर ऊर्जा को निरंतर उपयोग में लाया जाएगा। इसमें कुल ऊर्जा की आवश्यकता का 50 फीसद भाग सौर ऊर्जा से प्राप्त होगा। इसके लिए आरआरटीएस के सभी स्टेशनों,डिपो और भवनों की छतों पर लगभग 10 मेगावाट तक की सौर ऊर्जा उत्पन्न की जाएगी। साथ ही सौर ऊर्जा को अन्य स्थानों पर उत्पन्न करके उसे आरआरटीएस नेटवर्क में इस्तेमाल करने के लिए किसी सौर उत्पादक एजेंसी से भी अनुबंध किया जाएगा।
यह भी देखें: महाशिवरात्रि पर जलाभिषेक करने जा रहे कांवड़िये आपस में भिड़े पर्यावरण संरक्षण में होगी मददगार दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस कारिडोर से एनसीआर क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन का उपयोग 37 से 63 फीसद तक बढ़ने का अनुमान है। इससे साल भर में ही दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से लगभग एक लाख वाहन कम हो जाएंगे।
रैपिड रेल का परिचालन पूर्णतया पर्यावरण अनुकूल होगा। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल भी बड़े पैमाने पर किया जाएगा। यह ट्रेन निश्चित तौर पर दिल्ली-एनसीआर के सार्वजनिक परिवहन का चेहरा बदलेगी।
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