मेरठ

आस्था और सौहार्द का प्रतीक थी सांझी, अब विलुुप्त होती जा रही गीतों की परंपरा, देखें वीडियो-

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– मोहल्लों और गांवोंं में गूंजते हैं साझी के गीत- बच्चे घर-घर जाकर गाते हैं सांझी गीत- मेरठ में अब भी कुछ ही जगहों पर हो रहा परंपरा का निर्वाह

मेरठOct 21, 2020 / 05:39 pm

lokesh verma

मेरठ. नवरात्रि पर पूरे 9 दिन तक चलने वाले पर्व पर सांझी के गीतों का अपना विशेष महत्व है। इन गीतों को गाते हुए छोटे बच्चे जब हाथ में दीपक लेकर निकलते हैं तो मोहल्ले और गांव में पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। एकता और भाईचारे की मिसाल सांझी भगवान राम के गुणों का बखान करने वाली रामलीला की भांति ही होती है। गांवों में गोबर तथा सरकंडों से सांझी दीवार पर बनाई जाती है, जिसे बच्चियां ‘सिंझा’ कहती हैं। प्रतिदिन गीत गाकर और दीपक जलाकर बच्चों का समूह अपने घर चला जाता है। 9 दिनों तक शाश्वत चलने वाली प्रक्रिया का अंत दशहरे पर होता है। सांझी के गाए जाने वाले गीतों में 15 वर्ष तक के बच्चे भाग लेते हैं।
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देवी मां के रूप में पूजी जाती है सांझी
सांझी को देवी मां की संज्ञा दी जाती है। जो नवरात्र में नौ रूपों में पूजी जाती है। भाद्रपद अमावस्या के दिन गांवों में छोटे-छोटे बच्चे एवं बच्चियां मिलकर हाथ में दीपक लेकर निकलते हैं। घरों में गोबर, चूड़ी के टुकड़े, कपड़ों की कतरन व आदि से देवी मां की झलक देने वाली सांझी दीवार पर बनाई जाती है। प्रतिदिन शाम को आस-पास के बच्चे एकत्र होकर सांझी को खाना खिलाती हैं तथा गीत गाते हैं। लेकिन, सांझी की परंपरा और उसके गीत अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। हालांकि मेरठ के गांव और कस्बों में यह परंपरा अभी भी है। जबकि शहरों में यह परंपरा कुछ मोहल्लों तक ही सीमित होकर रह गई है।
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