खड़ाऊं पहनने से होते हैं चमत्कारी लाभ, कभी नहीं होंगे ब्लड प्रेशर, शुगर और हार्ट अटैक के शिकार

ऋषि-मुनियों के जमाने की खड़ाऊं का लौट रहा जमाना, चिकित्सक और विशेषज्ञ दे रहे खड़ाऊं पहनने की सलाह।

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
मेरठ. खड़ाऊं (Khadau) का नाम तो शायद सभी जानते होंगे। हो सकता है कभी किसी को पहने हुए भी देखा हो। ऋषि-मुनि के जमाने की इस खड़ाऊं को पहनने के लिए अब चिकित्सक और विशेषज्ञ भी सलाह दे रहे हैं। चिकित्सक और विशेषज्ञों का मानना है कि इसको पहनने के चमत्कारी फायदे हैं और सेहत के लिए ये किसी अमृत से कम नहीं है। यह ब्लड प्रेशर, शुगर और घुटनों के दर्द में काफी लाभदायक सिद्ध हो रही है। इसके अलावा पेट को भी दुरूस्त करती है।
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आयुर्वेदाचार्य डाॅ. ब्रज भूषण शर्मा का कहना है कि गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया, उसे हमारे ऋषि मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। उस सिद्धांत के अनुसार, शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तंरगें गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। वहीं, प्राकृतिक उपचार पर पिछले 5 साल से शोध कर रही योगाचार्य डाॅ. योगिता शर्मा ने बताया कि शरीर की विद्युत तंरगें गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित की जाती हैं, ये प्रक्रिया निरंतर चलने से शरीर की जैविक शक्ति समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने खडाऊं पहनने की प्रथा आरम्भ की थी, ताकि शरीर की विद्युत तरंगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ सम्पर्क न हो सके। इसी सिद्धांत के आधार पर खडाऊं पहनी जाने लगी।
पहले के लोगों को नहीं होती थीं ये बीमारियां

डाॅ. योगिता का कहना है कि 70-80 के दशक तक गांवों में लोग खड़ाऊं पहनते थे और उन्हें शुगर, ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक जैसी कोई बीमारी भी नहीं होती थी। पाचन तंत्र भी मजबूत रहता था और मस्तिष्क तरोताजा। इसकी वजह है खड़ाऊं के पीछे छिपा एक्यूप्रेशर। ये पैर ही नहीं, पूरे शरीर का एक्यूप्रेशर (Accupressure) कर देता था, जिससे लोग स्वस्थ रहते थे।
परिणाम उत्साहजनक

उन्होंने बताया कि उनके पास आने वाले कई मरीजों को वे खड़ाऊं पहनने की सलाह दे रही हैं, जिसके परिणाम उत्साहजनक और सेहतवर्धक आ रहे हैं। खड़ाऊ के तलवे वाली सतह को खुरदरा या छोटे-छोटे उभारों वाला भी बनाया जा रहा है। यानी समय के साथ खड़ाऊं में तरह-तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं। अगर मॉर्निंग या इवनिंग वाक में इसका उपयोग करें, तो चमत्कारिक लाभ होगा। हालांकि यें चीजें जानकर अपने पूर्वजों पर गर्व होता है। लेकिन, सोचनीय है कि आज के तथाकथित सभ्य समाज को अपना इतिहास केवल माइथोलॉजी नजर आता है।
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