हिन्दुओं ने खेली होली तो मुस्लिमों ने रखा रोजा

शब-ए-रात में गुलजार हुई रातें पढें फतीहे
शहरकारी ने बताई अफो की अहमियत
लोगों को भाईचारे के साथ त्योहार मनाने की दी सीख

<p>कब्रिस्तान</p>
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
मेरठ. होली पर देश में अलग-अलग रंग देखने काे मिले। हिन्दुओं ने रंग गुलाल अबीर उड़ाया तो मुस्लिमाें ने रोजा रखकर इबादत की।
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इसी तरह से रविवार काे शब-ए-रात और हाेलिका दहन एक साथ मनाया गया। हिन्दुओं ने हाेलिका का पूजन कि तो मुस्लिमाें ने रातभर कब्रिस्तान पहुंचते रहे और अपने पूर्वजों की याद में फातिहा पढ़ें। इस दौरान शहर कारी शफीकुर्रहमान ने लोगों को अफो की अहमियत बयां की। उन्होंने कहा कि अफो अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है क्षमा करना, बख्श देना, दरगुजर करना, बदला न लेना और गुनाह पर पर्दा डालना।
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उन्हाेंने यह भी समझाया कि अफो तब होगा जब कोई व्यक्ति समर्थता व शक्ति के बावजूद किसी को माफ कर दे। गुस्से पर काबू पाने की वास्तविकता यह है कि किसी को गुस्सा दिलाने वाली बात पर खामोश हो जाए और बदला लेने की क्षमता के बावजूद सब्र व सुकून के साथ रहे। शब-ए-रात के मौके पर महानगर के सभी कब्रिस्तान रोशनी से नहाये। रातभर मस्जिदों में इबादत होती रही। इसके लिए मस्जिदों को भी सजाया गया था। दिल्ली रोड कब्रिस्तान और शाही ईदगाह के पास स्थित कब्रिस्तान समेत शहर की सभी कब्रिस्तान में पहुंचकर लोग अपनों की कब्र पर मिट्टी चढ़ाई। शब-ए- बरात यानी निजात की रात। बताया जाता है कि इस रात जो भी शख्स इबादत करता है उसके गुनाह माफ किए जाते हैं। इसीलिए लोग इस रात को रात भर इबादत करते हैं।
सोमवार को रोजा रखकर मस्जिदों में की इबादत

शब-ए-रात के दूसरे दिन सोमवार को हिन्दुओं ने रंग अबीर गुलाल उड़ाया तो मुस्लिमाें ने रोजा रखा और मस्जिदों में जाकर इबादत की। इबादत के साथ महफिले मिलाद भी सजाई गई। दोनों ही त्याैहारों पर कोरोना का असर साफ देखने काे मिला।
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