अन्तर्राष्ट्रीय निशानेबाज ने बिना किसी सहायता के घर पर ही खोल दिया शूटिंग रेंज

गोलियों की आवाज के बीच बीता बचपन तो इसी को बनाया करियर, गरीब परिवार की बेटियों को निशानेबाजी सिखा देश के लिए तैयार कर रहे शूटर

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मेरठ बचपन गोलियों की आवाज के बीच गुजरा तो बड़े होने पर गोलियां चलानी भी सीख ली। बाद में इसी को करियर बना लिया। जमकर निशानेबाजी की और उसके बाद देश विदेश में अपने निशानेबाजी की धाक जमाई
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यह कहानी है मेरठ के रहने वाले अमोल प्रताप सिंह की। अमोल आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। निशानेबाजी में आमोल प्रताप अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं। शास्त्री नगर जे ब्लाक निवासी आमोल बताते हैं कि आज हर कोई समाज के लिए कुछ न कुछ करना चाहता है। उन्हाेंने भी कुछ ऐसा ही सोचा, आर्थिक रूप से इतना सम्पन्न नहीं था इसलिए सोचा कि अपने हुनर को ही समाज के प्रति समर्पित कर दूं। यहीं सोचकर घर पर ही तीसरी मंजिल पर निशानेबाजी के लिए एक शूटिंग रेंज खोल दी। आज आमोल प्रताप के शूटिंग रेंज में 35 बच्चे शूटिंग की बारीकियां सीख रहे हैं।
पांच बच्चियों को सिखा रहे निशुल्क
आमोल बताते हैं कि उन्होंने गरीब परिवार की पांच बच्चियों का चयन किया है। पहले बच्चियों के परिजन इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन जब उन्हें समझाया कि इसमें उनका कुछ नहीं लगना है तो वे इसके लिए तैयार हुए। ये पांच बच्चियां मेरठ के अलावा हापुड़ से भी आतीं हैं। आमोल अपने पास से बच्चियों को आने-जाने का किराया भी देते हैं। आमोल का कहना है कि लड़कियों के सीखने की क्षमता लड़कों से अधिक होती है। इसके अलावा वे अपने दिमाग को केंद्रित बहुत अच्छे से करती हैं। शूटिंग दिमाग को केंद्रित कर निशाना लगाने का ही एक हुनर है। जिसने यह कला सीख ली वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर कमाल मचा देता है।
1987 से 1996 तक रहे अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी
आमोल बताते हैं कि उनके घर में हथियार थे, जिस पर अक्सर बाबा जी और पिता जी हाथ अजमाया करते थे। बचपन से ही गोलियों की आवाज सुनकर वे बड़े हुए। थोड़ा बड़े हुए तो वे भी हथियार चलाना सीख गए। यहीं हथियार चलाना उनके लिए उनका करियर बन गया। उसके बाद 1987 से लेकर 1996 तक वे अंतराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे। देश के लिए कई शूटिंग टूर्नामेंट जीते विदेशों में देश का नेतृत्व किया। इसके बाद 1997 में उन्होंने अपनी ही शूटिंग रेंज खोल ली और नई प्रतिभाओं को शूटिंग की बारिकियां बताने लगे।
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