सात जिलों के 154 गांवों में कृष्णा काली और हिंडन फैला रही कैंसर

ग्रामीणों के के अनुसार जानलेवा बन गया है दूषित हो रही नदियों का पानी, सफाई के नाम पर कारोड़ों फूंकने के बाद भी नहीं नहीं बदले हालात

<p>दूषित होती नदियां</p>
मेरठ. काली नदी के किनारे बसे गांवों में तेजी से कैंसर फैल रहा है। इन गांव के लोगों का कहना है कि नदियों के दूषित होने की वजह से आस-पास का पानी पीने के लायक नहीं रहा जिसकी वजह से कैंसर रोग आस-पास के गांवों में फैल रहा है।
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यह बात सिर्फ गांव वाले ही नहीं कह रहे, काली नदी से लिए गए सैंपल में सीसा समेत दर्जनों कैंसरकारक तत्व मिले हैं। नदी का पानी किसी भी कसौटी पर खरा नहीं उतर सका। ऐसा नहीं है कि यह कैंसर सिर्फ काली नदी ही फैला रही हो, काली के अलावा कृष्णा और हिंडन ( Krishna Kali and Hindon river ) के किनारे बसे 154 गांवों में भी कैंसर तेजी से फैल रहा है। ये तीनों नदियां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सात ज़िलों से होकर निकलती है जिसके किनारे क़रीब 154 गांव बसे हुए हैं। जिन गांव के किनारों से नदी निकल रही है उन गांवों में कैंसर की स्थिति काफी भयावह है। इनमें मुख्य रूप से मेरठ, बागपत, बड़ौत, शामली, सहारनरपुर, मुजफ्फरनगर, और गाज़ियाबाद में हालात खराब है। इन नदियों का ‘जानलेवा पानी’, ग्रामीणों के लिए अभिशाप बन रहा है। दरअसल कृष्णा और काली नदी, हिंडन नदी में मिलती हैं और वही हिंडन नदी मेरठ और गाज़ियाबाद होते हुए, दिल्ली में कालिंदी कुंज के पास यमुना नदी में मिल जाती है। दरअसल कृष्णा और काली नदी, हिंडन नदी में मिलती हैं और वही हिंडन नदी मेरठ और गाज़ियाबाद होते हुए, दिल्ली में कालिंदी कुंज के पास यमुना नदी में मिल जाती है।

नदियों के किनारे स्थित इंडस्ट्री का जहरीला पानी कैसर का कारण
इन ज़िलों से होकर बहने वाली तीनों नदियों के किनारों पर कई फैक्ट्रियां हैं जिनमें शुगर मिल्स और पेपर मिल्स हैं। इसके साथ ही चमड़ा उद्योग से जुड़े कारखाने और अवैध पशु कटान भी इन नदियों के किनारों पर होता है। इन सभी जगहों से निकलने वाला कचरा सीधा इन नदियों में आकर गिरता है जिसकी वजह से इन नदियों का पानी हैवी कैंसर को पनपने वाले जानलेवा तत्व और बेहद खतरनाक कैमिकल से भर चुका है और यही सीधे तौर पर कैंसर की सबसे बड़ी वजह बन रहा है।
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इन गांवों के पानी में जानलेवा हैवी मैटल्स जैसे लेड, अर्सेनिक,क्रोमियम,मैगनेशियम की मात्रा, तय सीमा से कई सौ गुना ज़्यादा है। उत्तर प्रदेश जल निगम की लैब टैस्टिग रिपोर्ट में पानी में घुले जानलेवा रसायनों की मात्रा का पता चलता है। इन नदियों की टेस्टिग एनलेसिस रिपोर्ट के मुताबिक, नदियों के किनारे बसे सभी ज़िलों की 400 से ज़्यादा इंडस्ट्रीज से निकलने वाले ज़हरीले अवशेष सीधे नदियों में आकर गिरते हैं जो हर बीतते दिन के साथ पानी में लगातार घुलते जा रहे हैं और पानी ज़हरीला बन चुका है।

एनजीटी के आदेशों की होती है अनदेखी
एनजीटी लगातार राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के अलावा संबंधित विभागों को ये आदेश देती रही हैं कि इन गांवों में रहने वाले लोगों के लिए तुरंत साफ पानी की व्यवस्था की जाए। वैज्ञानिकों की मानें, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वाली काली और हिंडन नदी के पानी से ‘ऑक्सीजन’ ग़ायब हो चुकी है। इस नदी में फिलहाल जो बह रहा है, वो पानी नहीं है, बल्कि एक ऐसा ‘तेजाब’ है, जो पिछले एक दशक में सैकड़ों जिंदगियां बर्बाद कर चुका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल कैंसर की वजह से 5 लाख लोग मारे जाते हैं। ये एक बहुत बड़ा आंकड़ा है और इसे एक अलार्म मानना चाहिए।
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वर्तमान स्थिति की बात करें तो वो भी काफी डराने वाली है। आईसीएमआर के मुताबिक 2020 में भारत में कैंसर के 25 लाख 50 हज़ार मरीज़ थे। नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है, और नदियों से ही अक्सर किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता का पता चलता है। भारतीय संस्क़ृति में भी अलग-अलग नदियों को मां की उपमा दी गई है, और अक्सर उनके साथ मां जैसा व्यवहार भी किया गया है लेकिन आज की दुखद सच्चाई यही है, कि अब नदियों का प्रयोग कारखानों से निकले कचरे और रासायनिक पदार्थों को बहाने के लिए किया जाता है।
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