100 साल बाद इस दिन मघा नक्षत्र और त्रयोदशी का संयोग

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– पितरों की पूजा के लिए बेहद खास आने वाला सप्ताह- बन रहे संयोग में पितरों की पूजा से तृप्त होगी पितरों की आत्मा- चतुदर्शी को होगा अकाल मृत्यु से मरने वाले अपनों का श्राद्ध

मेरठ। साल में एक बार ही पित्रों की पूजा होती है। इन दिनों पित्रपक्ष चल रहे हैं पित्रपक्ष में पितरों की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। आने वाला सप्ताह पितरों की पूजा के लिए बेहद खास और महत्वपूर्ण है। आगामी 13 से 17 सितंबर तक हर दिन किए जाने वाले श्राद्ध का खास महत्व रहेगा। सौ साल बाद 15 सितंबर को मघा नक्षत्र और त्रयोदशी तिथि का संयोग बन रहा है। इससे पहले यह संयोग 1920 में बना था। इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों को संतुष्टि मिलती है।
ज्योतिषाचार्य भारत ज्ञान भूषण ने बताया कि 16 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष में खास कारणों में विशेष श्राद्ध तिथि का विधान है। घर का कोई व्यक्ति संन्यासी बन गया है और उसके विषय में ज्ञात नहीं हो तो द्वादशी तिथि को श्राद्ध का प्रावधान है।
जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु यानी जल में डूबने, विष के कारण, शस्त्र घात के कारण होती है ऐसे व्यक्तियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। वैसे तो जिस तिथि में पूर्वज की मृत्यु होती है उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है।
संन्यासी श्राद्ध :-
14 सितंबर घर का कोई व्यक्ति संन्यासी बन गया हो और उसके बारे में कुछ पता नहीं हो तो द्वादशी यानी पितृ पक्ष की बारहवीं तिथि को उसका श्राद्ध करना चाहिए। इस दिन साधु-संतों का भी श्राद्ध किया जाता है। इस बार ये तिथि सोमवार को रहेगी।
मघा श्राद्ध :-
15 सितंबर पितृ पक्ष के दौरान जब मघा नक्षत्र और त्रयोदशी तिथि का संयोग बनता है तब विशेष श्राद्ध किया जाता है। यमराज को मघा नक्षत्र का स्वामी माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों के लिए की गई विशेष पूजा करनी चाहिए। ये तिथि मंगलवार को रहेगी।
चतुर्दशी श्राद्ध :-
16 सितंबर किसी इंसान की अकाल मृत्यु यानी दुर्घटना, जहर, हथियार या पानी में डूबकर हुई हो तो ऐसे लोगों का श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी यानी चौदहवीं तिथि को करना चाहिए। इससे उन पूर्वजों को संतुष्टि मिलती है। ये तिथि बुधवार को है।
अमावस्या श्राद्ध :-
17 सितंबर परिवार के जिन लोगों की मृत्यु तिथि नहीं पता होती है। उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या किया जाना चाहिए। इससे खानदान के भूले-भटके पितरों के प्रति कृतज्ञता जताई जा सके। इससे कोई भी पितर नाराज नहीं रहते। ये पर्व गुरुवार को रहेगा।
भगवान विष्णु की पूजा से भी संतुष्ट होते हैं पितृ देवता :—
पंडित भारत ज्ञान भूषण बताते हैं कि भगवान विष्णु की पूजा से पितृ संतुष्ट होते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा और व्रत रखने का विधान है। कोई पूर्वज जाने-अनजाने में किए गए अपने किसी पाप की वजह से यमराज के पास दंड भोग रहे हों तो विधि-विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत करने उन्हें मुक्ति मिल सकती है।
इसके बाद भगवान शालिग्राम की पूजा करें। भगवान शालिग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं। पूजा में अबीर, गुलाल, अक्षत, यज्ञोपवीत, फूल होने चाहिए। इसके साथ ही तुलसी पत्र जरूर चढ़ाएं। इसके बाद तुलसी पत्र के साथ भोग लगाएं। फिर एकादशी की कथा पढ़कर आरती करनी चाहिए। इसके बाद पंचामृत वितरण कर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन पूजा तथा प्रसाद में तुलसी की पत्तियों का तुलसीदल का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।
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