नई दिल्ली। बैंकों के बढ़ते एनपीए से सरकार और आरबीआई पहले से ही परेशान है। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी हर रोज नए मामले सामने आते जा रहे है। पहले पीएनबी का घोटाला, अब देश के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई का नाम भी एक लोन मामले में सामने आ रहा है। हालांकि बैंक बोर्ड ने इस आरोप को महज अफवाह बताया है। बैंक बोर्ड कहना है कि बैंक का कोई भी व्यक्ति अपने पद पर इतना सक्षम नहीं है कि बैंक की क्रेडिट से जुड़े फैसलों को प्रभावित कर सके। लेकिन सवाल है कि जब कोई व्यक्ति फैसले नहीं कर सकता तो बैंक ने आखिर 3250 करोड़ की लोन कैसे दी और फिर कुछ ही साल बाद कुल लोन का 86 फीसदी हिस्सा एनपीए क्यों घोषित कर दिया।
ऐसे हुआ 2810 करोड़ रुपए के एनपीए का खेल
आपको बता दें कि पूरे मामले की शुरुआत दिसंबर 2008 में हुई थी। इस साल दिसबंर में में वीडियोकॉन समूह के मालिक वेणुगोपाल धूत ने बैंक की सीईओ और एमडी चंदा कोचर के पति दीपक कोचर और उनके दो संबंधियों के साथ मिलकर एक कंपनी बनाई थी। जिसमें दोनों के बीच 3250 करोड़ की स्वीट डील हुई। आरोप है कि 3250 करोड़ का लोन दिलाने में चंदा कोचर ने मदद की। लेकिन, इस लोन का 86 प्रतिशत यानी लगभग 2810 करोड़ रुपए 2017 में बैंक ने एनपीए घोषित कर दिया।
65 करोड़ की कंपनी 9 लाख में बिकी
एनपीए के इस पूरे खेल में जो बाद सबसे चौकातीं है वो है पहले एक 65 करोड़ की वेल्थ वाली कंपनी को केवल 9 लाख में बेच देना। दरअसल जिस कंपनी को लोन मिला वो वीडियोकॉन के मुखिया वेणुगापोल धूत की थी। लेकिन बाद में इस कंपनी को केवल 9 लाख रुपए में उस ट्रस्ट को सौंप दिया गया जिसके मालिक चंदा कोचर के पति दीपक कोचर थे।
डिफॉल्टर कंपनी को कैसे मिला इतना बड़ा लोन
गौरतलब है कि वीडियोकॉन की हालत कई सालों से खराब चल रही है। आरबीआई की तरफ से जारी डिफॉल्टर की लिस्ट में वीडियोकॉन का भी नाम शामिल है। साल 2012 में 2जी घोटाले के बाद वीडियोकॉन का लाइंसेंस भी कैसिंल कर दिया गया था। उसके बाद कंपनी की हालत और खराब होती चली गई। लेकिन इसी साल आईसीआईसी बैंक की तरफ से वीडियोकॉन को 3250 करोड़ का लोन कैसे मिला।
किस बैंक पर कितना एनपीए
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि बैंकों पर कुल 7.34 लाख करोड़ का एनपीए हैं। लेकिन इतना एनपीए होने के बावजूद लोन डिफॉल्टर की लिस्ट लगातार बढ़ती जा रही है।
5,983 करोड़
बैंक एनपीए की मार से आम आदमी त्रस्त
बैंक तो एनपीए की मार से जुझ ही रहे हैं लेकिन इसका खामियाजा भी आम आदमी को भुगतना पर रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल बैड लोन में मिडिल क्लास की हिस्सेदारी केवल 19 फीसदी की है। लेकिन एनपीए से निपटने के लिए कई बैंकों ने लोन लेने की शर्तें कड़ी कर दी है। जिसके चलते एक सैलरीपेशा या साधारण कारोबारी को लोन मिलने में पहले के मुकाबले अब ज्यादा दिक्कतें हो रही है।