कारोबार: देश में डिजिटल पेमेंट कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। बीते पांच साल के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि सालाना 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें दोराय नहीं कि डिजिटल भुगतान कारोबार अरबों रुपए का है। बाजार के जानकार मानते हैं कि इसमें अच्छी संभावनाएं हैं। इसी के चलते बड़ी कंपनियां एनयूई में दांव लगा रही हैं। केंद्र सरकार कैश की जगह डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा दे रही है
मिलेंगे कई विकल्प –
फिलहाल डिजिटल पेमेंट यूपीआइ के माध्यम से होता है। लाइसेंस हासिल करने के बाद कंपनियां डिजिटल पेमेंट के लिए अपना प्लेटफॉर्म बनाएंगी। इससे ग्राहकों को अलग-अलग विकल्प मिलेंगे। लाइसेंस होल्डर एटीएम, पॉइंट ऑफ सेल्स, आधार से जुड़ी भुगतान जैसी सेवाएं प्रदान करेंगे। यह कंपनियां बैंकों की क्लीयरिंग और सेटलमेंट सिस्टम के लिए भी काम कर सकती हैं।
एनपीसीआइ का दबदबा बरकरार-
डिजिटल पेमेंट कारोबार में नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआइ) का दबदबा है। इसके लिए एनपीसीआइ ने यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआइ) प्लेटफॉर्म बनाया है। रुपे नेटवर्क का संचालन भी यही कंपनी करती है, जिसमें इसे वीजा और मास्टर कार्ड से चुनौती मिलती है। रिजर्व बैंक चाहता है कि डिजिटल पेमेंट बाजार में भी प्रतिस्पर्धा बढ़े, जिससे आम लोगों को किफायती सेवा का लाभ मिलेगा। ऑनलाइन पेमेंट से जुड़े जोखिम भी कम होंगे।
टाटा ने किया आवेदन-
राष्ट्र्रीय स्तर पर डिजिटल पेमेंट नेटवर्क बनाने के लिए टाटा ग्रुप ने फरबिन कंपनी बनाई है। एनयूई लाइसेंस के लिए फरबिन ने आवेदन जमा कर दिया है। हालांकि टाटा की ओर से इसकी पुष्टि नहीं हुई है। फरबिन के 40 प्रतिशत शेयर टाटा के पास होंगे। मास्टर कार्ड, नाबार्ड, पेयू, फ्लिपकार्ट आदि का 30त्न हिस्सा होगा। कोटक महिंद्रा बैंक और एचडीएफसी बैंक में से प्रत्येक का 9.99 फीसदी हिस्सा होगा।