इंदौर

महाराष्ट्र की चीनी मिलें लाभ में, उत्तर प्रदेश की मिलें इंतजार में

गन्ना किसानों के बकाया की समस्या खत्म करने के लिए सख्त कदम

इंदौरJun 25, 2018 / 05:19 pm

विशाल मात

महाराष्ट्र की चीनी मिलें लाभ में, उत्तर प्रदेश की मिलें इंतजार में

इंदौर. सरकार ने गन्ना किसानों के बकाया की समस्या खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाया है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि गन्ना किसानों की बकाया रकम के भुगतान में इन कदम से कितनी मदद मिल पाएगी। गन्ना किसानों का कुल बकाया 22000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। सरकार ने हाल ही में कुछ कदम उठाए हैं। इनमें बफर स्टॉक तैयार करना और चीनी जारी करने का आदेश दुबारा लागू करना जैसे उपाय शामिल हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चीनी मिलों को दूसरे चरण में राहत देने को मंजूरी दी ताकि वे किसानों की बकाया रकम का भुगतान कर सकें। लेकिन सरकार के इस फैसले के एक दिन बाद उत्तर प्रदेश में 7 जून तक किसानों को करीब 12500 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना था। यह हालत तब है जब उत्तर प्रदेश गन्ना आयुक्त के आंकड़े कहते हैं कि सितंबर 2018 में खत्म हो रहे 2017-18 के सीजन के लिए मिलों ने राज्य के किसानों को 22300 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया है। गन्ने की बकाया रकम बढ़ गई है क्योंकि 201-18 के सीजन के दौरान उत्पादन करीब 3.3 करोड़ टन तक पहुंच सकता है।
महाराष्ट्र मिलों को राहत पैकेज
उद्योग से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों का आमतौर पर यही मानना है कि सरकार ने पिछले कुछ दिनों में जिस राहत पैकेज की घोषणा की है। उससे महाराष्ट्र की चीनी मिलों को करीब 1700 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान करने में मदद मिलेगी। हालांकि यह बात उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों के लिए सही नहीं है जिनकी गन्ने में अच्छी.खासी हिस्सेदारी है और जिनका बकाया 12500 करोड़ रुपये तक है। बकाया राशि का भुगतान करना तब तक मुश्किल हो सकता है जब तक कि 3350 रुपये प्रति क्विंटल के मौजूदा स्तर से एक्स.मिल कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होती। इसकी वजह सामान्य है। बिक्री कीमतों में सुधार के बावजूद उत्तर प्रदेश में प्रति क्विंटल चीनी उत्पादन की लागत इसकी बिक्री कीमत के मुकाबले अब भी ज्यादा है।
7000 करोड़ रुपए पैकेज पर सवाल
सरकार के राहत पैकेज को लेकर भी कुछ विशेषज्ञों और उद्योग से जुड़े लोगों की अलग.अलग राय है। आधिकारिक बयान में इस पैकेज के करीब 7000 करोड़ रुपये तक रहने का दावा किया गया है लेकिन इसको लेकर कई सवाल हैं। उद्योग विशेषज्ञों और चीनी मिलों का कहना है कि करीब 7000 करोड़ रुपये के राहत पैकेज में से केंद्र सरकार का वास्तविक खर्च करीब 4100 करोड़ रुपये तक रहेगा। इस राहत पैकेज में से करीब 1540 करोड़ रुपये सीधे किसानों के बैंक खाते में जाएंगे। उनको 5.50 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से प्रोत्साहन राशि मिलेगी। करीब 30 लाख टन तक का बफर स्टॉक अनुमानतरू 1175 करोड़ रुपये का होगा। नई एथेनॉल फैक्टरी लगाने के लिए 4400 करोड़ रुपये तक का कर्ज दिया जाना है जिससे केंद्र पर करीब 1332 करोड़ रुपये के ब्याज का बोझ होगा। इस तरह यह कुल राशि करीब 4100 करोड़ रुपये होती है न कि 7000 करोड़ रुपये जैसा कि केंद्र सरकार ने दावा किया है।
3.3 करोड़ टन से ज्यादा उत्पादन की उम्मीद
न्यूनतम बिक्री कीमत तय करने बफर स्टॉक तथा एथेनॉल फैक्टरी तैयार करने के बावजूद उत्तर भारत में एक्स.मिल बिक्री कीमतों में पर्याप्त तेजी नहीं आई है ताकि चीनी मिलें गन्ने का बकाया पर्याप्त तरीके से चुका सकें। उन्हें प्रत्येक क्विंटल गन्ना पेराई में 150 रुपये का घाटा हो रहा है। अधिकारियों का मानना है कि उत्तर भारत में चीनी की मासिक बिक्री की सीमा तय किये जाने से एक्स.मिल कीमतों में तेजी शुरू होगी। उसेक बाद ही मिलें गन्ने का बकाया चुकाने की बेहतर स्थिति में होंगी। हालांकि इन दावों की सच्चाई का परीक्षण अभी होना है। कई विशेषज्ञों को नहीं लगता कि अतिरिक्त चीनी की समस्या अभी खत्म होगी क्योंकि अक्टूबर में 2018-19 के नए सीजन में उत्पादन शुरू होगा जिसमें भी 3.3 करोड़ टन से ज्यादा उत्पादन की उम्मीद है। एक महीने से भी कम अवधि के दौरान केंद्र ने दो दफा एक के बाद एक राहत पैकेज मुहैया कराया है। बावजूद प्रदेश में मिलें गन्ने की बकाया राशि चुकाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। हालांकि महाराष्ट्र की चीनी मिलें ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। राज्य की चीनी मिलों का मानना है कि आने वाले दिनों में वे सभी बकाया राशि का भुगतान कर देंगी और अगले 100 दिनों में शुरू होने वाले पेराई सीजन के लिए उनके पास कुछ नकदी भी रहेगी। महाराष्ट्र में जैसे ही चीनी की बोरियां तैयार होने लगेंगीए मिलें राज्य और जिला सहकारी बैंकों से चीनी की बोरी के औसत मूल्य का 85 फीसदी तक का ऋण ले सकेंगी। इस औसत मूल्य की गणना पिछले तीन महीने की कीमतों के आधार पर की जाएगी। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना हैए श्अगर ऐसा नहीं होता तो महाराष्ट्र की चीनी मिलें फंसे हुए कर्ज में तब्दील हो जातीं।
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