नारी शक्ति को सलामः पिता और पति की मौत के बाद तीन बेटियों को पढ़ाया, पंचर बनाकर गुजारी जिंदगी

मध्यप्रदेश में भी है नारी शक्ति, पढ़ें मैना सोलंकी के संघर्ष की कहानी…।

<p>International Women&#8217;s Day 2020</p>

 

मंदसौर। पति की मौत के बाद तीन छोटी-छोटी बेटियों की जिम्मेदारी एक मां पर आ गई। कोई काम नहीं आता था। बेटियों के लालन-पालन के लिए एक महिला ने पुरुषों के कपड़े पहन लिए। देखते ही देखते वो पुरुषों के काम करने लगी। वो पिछले 25 सालों से ट्रकों के पंचर बना रही है। इस महिला का नाम है मैना सोलंकी।

 

45 साल की मैना सोलंकी बताती है कि जब वो छोटी थी तो अपने माता-पिता की पंचर की दुकान में छोटी-मोटी मदद कर दिया करती थी। अब हालात दूसरे हैं। मैना अपने पति की मौत के बाद तीन बेटियों के लाल-पालन के लिए यह काम कर रही है। उसकी मेहनत और जज्बा ही है कि उसने दो बेटियों की शादी तकर कर दी। मैना आज भी मंदसौर में नयाखेड़ा फोरलेन पर पंचर की दुकान चलाती है।

 

फिर बन गई तीन बेटियों की पिता
मैना बताती है कि मैना की मां भी टायर बनाने का काम करती थी। उसके पिता की दुकान पर वो भी मदद करती रहती थी। मैना बड़ी हुई तो उसकी शादी मुंशी नामक व्यक्ति से कर दी। जो छोटी-मोटी मजदूरी करता था। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण पिता प्रेमचंद मदद करते थे। शादी के एक साल बाद ही पिता ने भी साथ छोड़ दिया। उसका आर्थिक सहयोग भी बंद हो गया। वो सदमे में आ गई। जैसे-तैसे तीन बच्चों के लिए वो सदमे से बाहर निकली। वो तीनों बेटियों के साथ मां के घर रहने लगी। वो बेटियों का भरण-पोषण करने में भी सक्षम नहीं थी, लिहाजा मां के साथ आए दिन झगड़ा होने लगा। वो तीन बेटियों को साथ लेकर मां से अलग रहने लगी। दर-दर ठोकरें मिलने के बाद उसने पैसा कमाने की ठानी। बगैर पेसे के या बगैर रोजगार के बेटियों का भविष्य भी खतरे में था। उसने एक दिन पिता का काम ही करने का फैसला कर लिया। उसने तीनों बेटियों का पिता बनने की ठान ली और पुरुषों के कपड़े पहन लिए। वो अब गाड़ियों का पंचर बनाने लगी थी।

 

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पुरुषों के कपड़े पहने
मैना ने पिता का पुराना एयर कंप्रेशर और कुछ औजार रख लिए और मोटरसाइकिल और साइकिलों के पंचर बनाना शुरू कर दिया। मंदसौर रतलाम के बीच में मैना ने यह दुकान खोली थी। तब उसके पास सिर छुपाने को झोपड़ी भी नहीं थी। एक तिरपाल डालकर उसने झोपड़ी बना ली। मर्द ट्रक ड्राइवरों के बीच काम करने के लिए उसने साड़ी छोड़ पुरुषों की तरह कपड़े पहनना शुरू कर दिया।

 

दिनरात की मेहनत
दिनरात वो अपने काम में व्यस्त रहती और घर का गुजारा करती रहती। 25 सालों से आज तक वो लगातार अपने काम में जुटी रहती है। उसने काम धीरे-धीरे जमा लिया और तीन बेटियों को पढ़ा-लिखाकर समझदार बना लिया। दो बेटियों की हो गई है और छोटी बेटी की शादी की तैयारी चल रही है। मैना कहती है कि जो दिन उसने देखें, वो किसी भी बेटी को देखना नहीं पड़े।

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