नहीं मिट रही खानाबदोशों के बच्चों की भूख

लगातार बढ़ रहा कफ्र्यू, भोजन का जुगाड़ करना हो रहा मुश्किल

<p>नहीं मिट रही खानाबदोशों के बच्चों की भूख</p>

मंडला. लगातार बढ़ रहे कोरोना कफ्र्यू ने खानाबदोशों की चिंता बढ़ा दी है। 8 अप्रैल से लगे नाइट कफ्र्यू और दो दिन के लॉकडाउन के बाद से इनकी रोजी-रोटी छिन गई है। अब 30 अप्रैल तक का कफ्र्यू बढ़ा दिया गया है। अब अपने डेरे में बैठे कोरोना कफ्र्यू खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। इनकी माने तो कोरोना की दूसरी लहर को काबू करने के लिए तालाबंदी मुसीबत साबित हो रही है, क्योंकि कोरोना के पहले फेज में तो खानाबदोशों से लेकर जानवरों तक की सुध ली गई थी। लेकिन संक्रमण के दूसरे दौर में इनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। न तो सरकारी एजेंसियों ने इन लोगों का पेट भरने का इंतजाम किया है न इस बार समाज की सेवा करने की दंभ भरने वाले आगे आए हैं। संक्रमण की मार खामियाजा इन बेवसों को रुला रही है। शहर में ऐसे तमाम लोग हैं जो सड़क किनारे जिंदगी काट रहे हैं। उनकी गुजर बसर का जरिया भी सीमित है। इनमें से ज्यादातर बाजार व शहरों में फेरी लगाकर सामान बेचने, मजदूरी के भरोसे हैं। कुछ उम्रदराज दूसरों से मांग कर पेट भरने वाले हैं। कोरोना की दूसरी लहर को थामने के लिए कोरोना कफ्र्यू की वजह से शहर बंद है। ऐसे में इन परिवारों के सामने रोटी बड़ा सवाल बन गई है। इन लोगों की टीस है कि वह खुद तो भूखे सो सकते हैं, लेकिन बच्चों को भूख सहन करना कैसे सिखाएं। इस बार पर उनकी मदद के लिए कोई कोई हाथ आगे नहीं आया है।


कोरोना की पहली लहर में लॉकडाउन के साथ सड़कों पर जिंदगी गुजारने वालों की सुध लेने के लिए सरकारी एजेंसियां और समाज की सेवा करने वाले आगे आए थे। लेकिन संक्रमण के दूसरे फेज में सब गायब हैं। कोरोना कफ्र्यू की वजह से सब बंद है तो यह बेवस भूख की मार झेल रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि उन्हें भी पता था कोरोना की वजह से बाजार, कामधाम सब बंद हो रहा है, लेकिन उनकी हैसियत इतनी नहीं है कि एक माह के लिए खाने का इंतजाम कर सकेंए इसलिए भगवान भरोसे हैं। परिवार के बड़े लोग तो हालात को समझ रहे हैं, लेकिन बच्चे भूख सहन नहीं कर पाते। खाने के लिए मांगते हैं तो समझ में नहीं आता उन्हें क्या खिलाएं, क्योंकि बर्तन और जेब दोनों खाली है।


राजीव कालोनी मार्ग में सन्याल स्कूल आगे आधा दर्जन से अधिक परिवार तंबू तान कर निवास कर रहा है। खैरी मार्ग में भी दूसरे प्रदेश के लोग रूके हुए हैं। लोहे के समान, बाल खरीदकर या गुब्बारे बेचकर गुजर बसर करने इन लोगों का कहना है कि लॉकडाउन लगा है। सब कुछ बंद है। खाने के लिए जो कुछ था वह लॉकडाउन के दो चार दिन में खत्म हो गया। अब खाली हाथ हैं। किसी तरह से बच्चों की भूख मिटाने का प्रयास कर रहे हैं। बच्चों का पेट भरने के लिए आसपास की कॉलोनी में आटा, दाल मांगने भी जा रहे तो लोग दरवाजे नहीं खोल रहे। सरकारी विभाग या समाज सेवी कोई मदद के लिए नहीं आया है। समझ में नहीं आता अभी लॉकडाउन में कितने दिन और बाकी हैं। कोरोना के पहले फेज में प्रशासन ने गरीबों के लिए खाने का इंतजाम किया था। इसके अलावा समाज सेवी भी आगे बढ़कर बेसहाराओं और जानवरों तक के लिए खाने का इंतजाम कर रहे थे।

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